प्रदोष व्रत

कर्पूगौरं करुणावतारं संसारसारं भुजगेन्द्रहारम् |
सदावसन्तं हृदयारविन्दे भवं भवानी सहितन्नमामि ||

आज मंगलवार है – आश्विन शुक्ल त्रयोदशी – प्रदोष व्रत – भौम प्रदोष – भगवान शिव की पूजा अर्चना का दिन |

प्रत्येक माह के शुक्ल और कृष्ण दोनों पक्षों की त्रयोदशी को प्रदोष के व्रत का पालन किया जाता है | अर्थात हर हिन्दू माह में दो प्रदोष पड़ते हैं | इस व्रत के दौरान सारा दिन निर्जल व्रत रखकर सन्ध्या समय शिव-पार्वती की पूजा अर्चना करके व्रत का पारायण किया जाता है | कार्य में सफलता के लिए, मनोकामना सिद्धि के लिए, परिवार की सुख समृद्धि के लिए तथा इन सबसे भी बढ़कर सन्तान के सुख की कामना से इस व्रत का पालन किया जाता है | जिन लोगों की सन्तान को किसी प्रकार कोई कष्ट होता है अथवा सन्तान के कार्य में कोई विघ्न आ रहा होता है उन लोगों को प्रदोष के व्रत की सलाह दी जाती है | इसके अतिरिक्त बिना किसी समस्या के भी प्रदोष का व्रत रखा जा सकता है – इस कामना के साथ कि हमारी सन्तान सुखी रहे तथा परिवार में सुख समृद्धि बनी रहे | प्रायः उन महिलाओं को भी प्रदोष के व्रत की सलाह दी जाती है जिनके कोई सन्तान नहीं हो रही है अथवा सन्तान पैदा होने में या गर्भ धारण करने में कोई समस्या आ रही है |

इस व्रत को रखने के भी दो विधान हैं | एक तो ये कि 24 घंटे का निर्जल व्रत रखकर उसके बाद अगले दिन संध्या काल में पारायण किया जाता है | व्रत की इस विधि में रात्रि जागरण करके रात भर भगवान शिव के अभिषेक किये जाते हैं | और दूसरी विधि है कि दिन भर निर्जल व्रत रखकर सन्ध्या काल में व्रत का पारायण किया जाए | दोनों ही विधियों में एक ही बात का ध्यान रखना आवश्यक होता है कि शिव-पार्वती की पूजा का समय संध्याकाळ ही होता है – अर्थात सूर्यास्त से तुरन्त पूर्व और तुरन्त बाद का कुछ समय – वही प्रदोषकाल कहलाता है | यों प्रदोष सप्ताह में सातों दिन होता है किसी न किसी तिथि का – क्योंकि संध्याकाल में कोई न कोई तिथि तो होगी ही | लेकिन इस अवधि में यदि त्रयोदशी तिथि होती है तो उस काल के प्रदोष का विशेष महत्त्व माना गया है और उसे भगवान शिव की पूजा अर्चना के लिए समर्पित किया गया है | माना जाता है कि समुद्र मन्थन के दौरान जो हलाहल समुद्र में से निकला था भगवान शंकर ने प्रदोषकाल में ही उस हलाहल का पान किया था |
ऐसी भी मान्यता है कि विशेष रूप से त्रयोदशी युक्त प्रदोषकाल भगवान शिव और पार्वती को बहुत प्रिय है और इस अवधि में वे इतने अधिक प्रसन्नचित्त होते हैं कि केवल एक दीप जलाकर प्रार्थना की जाए तब भी वे प्रसन्न हो जाते हैं और इसीलिए भक्तों की सारी मनोकामनाएँ पूर्ण कर देते हैं |

सोमवार, मंगलवार अथवा शनिवार को आने वाले प्रदोष अत्यधिक शुभ माने जाते हैं और उन्हें क्रमशः सोम प्रदोष, भौम प्रदोष तथा शनि प्रदोष के नाम से जाना जाता है |
साथ ही व्रत के पारायण के समय भोजन के विषय में भी कुछ लोकमान्यताएँ हैं जिनके अनुसार केवल एक ही प्रकार के अन्न का सेवन व्रत के पारायण के समय करना चाहिए |

किसी भी पूजा में – किसी भी धार्मिक अनुष्ठान में – रीति रिवाज़ों का पालन आवश्यक हो जाता है | किन्तु हमारे विचार से, यदि किसी कारण वश समस्त रीति रिवाज़ों का पालन नहीं भी किया जाए तब भी किसी प्रकार से चिन्तित होने की आवश्यकता नहीं है | हम किसी ऐसे स्थान पर हैं या ऐसी परिस्थिति में हैं जहाँ हमें पूजा के लिए निर्दिष्ट विशिष्ट सामग्री उपलब्ध नहीं है अथवा व्रत के पारायण के समय सेवन करने योग्य भोजन उपलब्ध नहीं है तो उसके कारण हमारी आस्था में कोई व्यवधान नहीं आना चाहिए |

किसी भी पूजा अर्चना का मर्म उस परमात्मतत्व के प्रति आस्था है | यदि मन में आस्था है तो बिना किसी रीति रिवाज़ का पालन किये भी केवल नाम जपने भर से ईश्वर प्रसन्न हो जाते हैं |

तो आवश्यकता है किसी भी प्रकार के अन्धविश्वास से बचने की, किसी भी प्रकार की कट्टरपंथी से बचने की |

ईश्वर के प्रति – अपनी आत्मा के प्रति – पूर्ण हृदय से आस्थावान रहते हुए पूर्ण निष्ठा के साथ अपने कर्तव्य कर्म करते रहें… सुख सौभाग्य स्वयमेव निकट बने रहेंगे…