गन्तव्य

कल एक युवक मेरे पास आया | काफ़ी समय से उसका समय कुछ अनुकूल नहीं चल रहा है | कहीं विदेश से उच्च शिक्षा प्राप्त करके आने के बाद भी किसी अच्छे संस्थान में नौकरी नहीं मिली तो एक कॉल सेंटर में ही नौकरी करके अपने खर्च निकाल रहा है | घरवाले उसकी जन्मपत्री यहाँ वहाँ दिखाते रहते हैं और अक्सर उन्हें यही सुनने को मिलता है कि लड़के की तो मारक दशा है, बहुत बड़ी गड़बड़ होने वाली है, बहुत बड़ी उथल पुथल उसके जीवन में होने वाली है | पण्डित लोग पूजा जापादि के नाम पर पैसा ऐंठते रहते हैं | उसकी सारी उँगलियों में न जाने कितने पत्थर पहना रखे हैं | किसी ने बोल दिया कि ड्राइविंग में दुर्घटना के योग हैं इसलिए कुछ महीने उसे ड्राइविंग नहीं करनी चाहिए | अब स्थिति ये हो गई है कि भय और डिप्रेशन का शिकार होकर कमरे में ही पड़ा रहता है | काम पर जाना भी बन्द कर दिया है |

तो सबसे पहले तो उन माता पिता से यही कहना चाहेंगे कि इतने सारे पत्थर पहनकर पत्थरों की दुकान सजाने से कुछ नहीं होता | कोई भी अच्छा Astrologer कभी न तो ऐसी दुकान सजाने की सलाह देगा न ही किसी ग्रहदशा से आपको डराने का प्रयास करेगा | अपितु सलाह देगा कि स्वयं अपने इष्ट का ध्यान करते हुए अपने कर्तव्य कर्म का निष्ठापूर्वक पालन करते रहे तो लक्ष्य अवश्य प्राप्त होगा | जीवन की परिवर्तनशीलता के साथ ग्रहों की दशाएँ भी बदलती ही रहेंगी, इसी का नाम गति है | उन सबसे घबराकर कर्तव्यविमुख होकर बैठना उचित नहीं | प्रयास करना मनुष्य का धर्म है | जीवन सरिता के प्रवाह के साथ बहना यदि सीख जाएँगे तो किसी तट पहुँच ही जाएँगे | सम्भव है जो हमें आज अपना गन्तव्य नहीं लग रहा हो, प्रकृति ने वही हमारा गन्तव्य निश्चित किया हो |

अस्तु, अपनी योग्यताओं और कर्म के प्रति आस्थावान रहिये, लक्ष्य स्वयं निकट आ जाएगा…