आज उत्तर भारत में महिलाएँ अहोई अष्टमी के व्रत का पालन करेंगी | अहोई अष्टमी व्रत का पालन मूलतः उत्तर भारत में ही किया जाता है | यह व्रत करवाचौथ के चार दिन बाद यानी कार्तिक कृष्ण अष्टमी को और दीपावली से आठ दिन पूर्व किया जाता है | प्राय: अहोई अष्टमी उसी वार की होती है जिस वार की दीपावली होती है | जैसे इस वर्ष 19 अक्टूबर यानी बृहस्पतिवार को दीपावली का पर्व है और आज भी बृहस्पतिवार ही है | यह पर्व आँचलिक लोक पर्व है | इस दिन सभी माताएँ अपनी सन्तानों की दीर्घायु, सुख समृद्धि तथा मंगल कामना से सारा दिन उपवास रखकर सायंकाल अहोई माता की पूजा करके लोक परम्परा अथवा अपने अपने परिवार की परम्परा के अनुसार तारों अथवा चन्द्रमा को अर्घ्य देकर व्रत का पारायण करती हैं | उत्तर भारत में ही कई स्थानों पर नि:सन्तान माताएँ सन्तानप्राप्ति की कामना से भी इस व्रत का पालन करती हैं | पूजा के समय अहोई अष्टमी की कथा भी सुनने की प्रथा है |
वैष्णव इस दिन बहुला अष्टमी मनाते हैं | जो मुख्यतः राधा-कृष्ण को समर्पित है | माना जाता है कि वृन्दावन में स्थित राधा कुण्ड और श्याम कुण्ड बहुला अष्टमी के दिन ही प्रकट हुए थे | अहोई अष्टमी की ही तरह इन कुण्डों के विषय में भी मान्यता है कि नि:सन्तान लोग यदि आज के दिन अर्द्धरात्रि को (निशीथ काल में) इन कुण्डों में स्नान करते हैं तो उन्हें सन्तान की प्राप्ति होती है |
मूलतः सभी अष्टमी माँ दुर्गा को समर्पित होती हैं और अहोई माता भी शक्ति का ही एक रूप है जो समस्त कष्टों से परिवार की रक्षा करके सुख समृद्धि प्रदान करती हैं |
एक और बात, केवल भारत में ही नहीं, बल्कि संसार के हर देश में जो भी धार्मिक कथाएँ कही सुनी या पढ़ी जाती हैं उन सबके पीछे कोई न कोई नैतिक शिक्षा अवश्य होती है | कथाओं के माध्यम से जो सीख लोगों को दी जाती है वह सहजगम्य होती है, इसीलिए सम्भवतः इस प्रकार की नैतिक कथाओं को पर्वों के साथ जोड़ा गया होगा | अहोई अष्टमी की भी अलग अलग स्थानीय परम्पराओं – अलग अलग स्थानीय जीवन शैलियों के आधार पर कई तरह की कहानियाँ प्रचार में हैं जिनको व्रत की पूजा के दौरान पढ़ा और सुना जाता है | यदि उन पर ध्यान दें तो पाएँगे कि उन सबमें दो नैतिक शिक्षाएँ प्रमुख रूप से निहित हैं – एक ये कि कोई भी कार्य भली भाँति सोच विचार कर करना चाहिए, बिना सोचे समझे किया गया कार्य अन्त में कष्ट का कारण बनता है | और दूसरी ये कि जीव ह्त्या नहीं करनी चाहिए, यदि भूल से ऐसा हो भी जाए तो उसका पता चलने पर हृदय से उसके लिए पश्चात्ताप तथा प्रायश्चित अवश्य करना चाहिए |
हम सभी सोच विचार कर हर कार्य करते हुए तथा जीव ह्त्या से बचते हुए आगे बढ़ते रहें, इसी भावना के साथ सभी माताओं तथा उनकी सन्तानों को अहोई अष्टमी और बहुला अष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ…