आज कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी को प्रायः सभी हिन्दू लोग वैकुण्ठ चतुर्दशी का पर्व मनाते हैं | यों तो लगभग समस्त भारत में हिन्दू लोग इस पर्व को मनाते हैं, लेकिन विशेष रूप से महाराष्ट्र, उज्जैन, उत्तर प्रदेश और गढ़वाल में इस पर्व को बड़ी धूम धाम से मनाया जाता है | इस पर्व को भगवान शिव तथा विष्णु के मिलन पर्व के रूप में मनाया जाता है | इस दिन भगवान विष्णु और भगवान शिव की सम्मिलित पूजा की जाती है | गढ़वाल के श्रीनगर में इस दिन धूम धाम के साथ एक विशेष मेले का आयोजन होता है |
इस दिन विभिन्न शिवालयों में पूजा अर्चना की जाती है | विशेष रूप से श्रीनगर में कमलेश्वर मन्दिर तथा थलीसैंण में बिन्सर मन्दिर में इस दिन उत्सव की धूम रहती है | कमलेश्वर मन्दिर एक पौराणिक मन्दिर माना जाता है | यहाँ के लोगों की मान्यता है कि भगवान विष्णु ने इसी स्थान पर भगवान शिव को एक हजार स्वर्णकमल चढा़ने का संकल्प लिया और अनुष्ठान आरम्भ कर दिया | जब अनुष्ठान के सम्पन्न होने का समय आया तो भगवान शिव ने विष्णु की परीक्षा लेने हेतु एक कमलपुष्प कहीं छिपा दिया | तब भगवान विष्णु ने सोचा कि लोग उन्हें कमलनयन कहते हैं, तो क्यों न पुष्प के स्थान पर अपना एक नेत्र ही शिव को अर्पित कर दें | जैसे ही वे पना नेत्र चढाने को उद्यत हुए तो भगवान शिव प्रसन्न होकर सामने उपस्थित हो गए और उन्होंने भगवान विष्णु को सुदर्शन चक्र प्रदान किया | माना जाता है कि भगवान विष्णु और शिव के इसी सम्मिलित रूप के प्रतीकस्वरूप शंकराचार्य जी ने इस मन्दिर का निर्माण कराया था और उसके बाद से ही वहाँ वैकुण्ठ चतुर्दशी के मेले का आयोजन किया जाने लगा |
वैकुण्ठ चतुर्दशी के पर्व के साथ एक और कथा भी जुड़ी हुई है | स्कन्दपुराण के केदारखण्ड के अनुसार भगवान राम ने रावणवध के पश्चात ब्रह्मह्त्या के कलंक से स्वयं को मुक्त करने के लिए दीपावली के चौदह दिन बाद भगवान शिव की उपासना इसी स्थान पर की थी और एक माह तक प्रतिदिन 108 कमलपुष्पों से भगवान शिव का अभिषेक किया था – उसी के प्रतीक स्वरूप इस स्थान का नाम कमलेश्वर महादेव पड़ा और तभी से वैकुण्ठ चतुर्दशी का उत्सव मनाया जाने लगा |
कितनी मान्यताएँ, कितनी कथाएँ, किन्तु तथ्य केवल एक – आध्यात्मिक और लौकिक उन्नति के लिए भगवान विष्णु और शिव के ऐक्य के प्रतीक वैकुण्ठ चतुर्दशी का व्रत पूरे विधि विधान से किया जाता है | सभी को वैकुण्ठ चतुर्दशी की हार्दिक शुभकामनाएँ…