गुरु-पुष्यामृत योग

गुरूवार के दिन जब चन्द्रमा पुष्य नक्षत्र में प्रवेश करता है तो उसे गुरु-पुष्यामृत योग कहा जाता है | इस योग को ज्योतिष के अनुसार इतना शुभ माना जाता है कि यदि कोई शुभ मुहूर्त नहीं मिल रहा हो तो इस मुहूर्त में कोई भी शुभ कार्य, नया कार्य अथवा बन्द पड़ा हुआ कार्य आरम्भ किया जा सकता है | लेकिन फिर भी विवाह संस्कार के लिए इस योग को निषिद्ध माना गया है | पाणिनी संहिता में लिखा है “पुष्यन्ति सिध्यन्ति अस्मिन् सर्वाणि कार्याणि इति पुष्यः |” अर्थात, पुष्य नक्षत्र में आरम्भ किये गए सभी कार्य पूर्णता को प्राप्त होते हैं | पुष्य शब्द का अर्थ ही है पुष्टिकारक | अध्यात्म के साधकों के लिए साधना आरम्भ करने के लिए यह योग बड़ा उत्तम माना गया है |

वैदिक ज्योतिषी – Vedic Astrologer – के अनुसार यह नक्षत्र स्थिर नक्षत्र होता है अतः इस योग में खरीदी गई कोई भी वस्तु स्थाई सुख समृद्धि देने वाली होती है तथा इस योग में आरम्भ किया गया कोई भी कार्य स्थाई फल देने वाला होता है |

ऋग्वेद में पुष्य नक्षत्र को तिष्य नक्षत्र भी कहा गया है | इस नक्षत्र का स्वामी शनि तथा अधिष्ठाता देवता गुरु है | किसी भी नक्षत्र पर उसके स्वामी ग्रह की अपेक्षा उसके अधिष्ठाता देवता का अधिक प्रभाव होता है | यही कारण है कि पुष्य नक्षत्र में गुरु के गुण विद्यमान हैं | और सम्भवतः इसीलिए गुरूवार को पुष्य नक्षत्र होने पर इसे एक अत्यन्त उत्तम योग माना जाता है |

आज गुरूवार को दोपहर 1:39 पर चन्द्रमा पुष्य नक्षत्र में चला जाएगा और कल दिन में 12:25 तक वहीं रहेगा और कल सूर्योदय तक गुरुपुष्यामृत योग रहेगा | इस योग में आरम्भ किये आपके समस्त कार्य सिद्ध हों…