पञ्चांग और उसके अंग

हम लोग अपने दैनिक धार्मिक और आध्यात्मिक कर्तव्यों को पूर्ण करने के लिए तथा अन्य महत्त्वपूर्ण कार्यों का आरम्भ करने के लिए पञ्चांग देखते हैं | शादी ब्याह के लिए, यात्रा आरम्भ करने के लिए, नया कार्य आरम्भ करने के लिए, नूतन गृह प्रवेश के लिए, शिक्षा आरम्भ कराने आदि समस्त कार्यों के लिए मुहूर्त निकालने के लिए पञ्चांग का ही आश्रय लिया जाता है | पञ्चांग आख़िर कहते किसे हैं ? इसका सीधा सा उत्तर तो यही है कि वैदिक कलेण्डर पञ्चांग कहलाता है |

Vedic Astrology के पाँच अंग होते हैं, जिन्हें सम्मिलित रूप में पञ्चांग कहा जाता है | ये पाँच अंग हैं – वार, तिथि, नक्षत्र, योग और करण | इनके अतिरिक्त शुभाशुभ मुहूर्त की जानकारी के लिए राहुकाल, यमगंड, गुलिका, अभिजित मुहूर्त, अमृत काल आदि का भी विचार बहुत से Vedic Astrologers करते हैं |

प्रकृति का सिद्धान्त है कि हर क्रिया की प्रतिक्रिया होती है – हर action का reaction होता है | अतः जब हम अपने चारों ओर के वातावरण से सामंजस्य स्थापित करके कोई कार्य करते हैं तो सारी प्रकृति मानों हमारे अनुकूल हो जाती है और वह कार्य हमारे लिए शुभ फलदायी हो जाता है | शुभ मुहूर्त में कार्य आरम्भ करके हम प्रकृति और कर्म के मध्य सामंजस्य स्थापित करने का प्रयास करते हैं |

पञ्चांग का प्रथम अवयव है दिन अथवा वार – अर्थात सप्ताह के सातों दिन | व्यक्ति मुहूर्त निकालते समय अपनी सुविधा का भी ध्यान रखता है – किस दिन उसके पास समय है और किस दिन नहीं है | अतः सातों दिनों में से जिस दिन उसके पास समय होता है उस दिन का मुहूर्त निकालने का प्रयास हर कोई करता है |

इस प्रकार पञ्चांग के सभी अवयव वैदिक ज्योतिष में अत्यन्त महत्वपूर्ण होते हैं…