समत्त्व

आज का विचार:

“परम तत्त्व में लीन” होने का अर्थ मृत्यु की प्राप्ति नहीं है… न ही “मोक्ष” का अर्थ शरीर त्यागना है… अपितु “मोक्ष” अथवा “परम तत्त्व में  लीन” होने का अर्थ है द्वत्व का त्याग… द्वैत की भावना त्याग… सब कुछ के साथ समभाव हो जाना… सत्य तो यह है कि व्यक्ति जब परम तत्त्व में लीन होना चाहता है तो न तो वहाँ मोक्ष प्राप्ति की लालसा रहती है और न ही मैं का भाव… वहाँ केवल एक ही भाव शेष रहता है, और वह है “सोSमस्मि” का भाव…

व्यक्तिगत मानवीय सम्बन्ध भी इसी प्रकार होते हैं | वहाँ सभी प्रकार का “दुई” का भाव समाप्त होकर केवल “एकत्त्व” का भाव शेष रहा जाता है | और जब सब कुछ के प्रति “एकत्त्व” का भाव आ गया, सब कुछ के प्रति “समत्व” का भाव आ गया तब किसी भी प्रकार के दुर्भाव के लिए कोई स्थान शेष नहीं रह जाता…

हम सब एक दूसरे के प्रति इसी प्रकार का “एकत्व” अथवा “समत्व” का भाव रखें यही कामना है…