अस्तित्व और लक्ष्य

हर सुबह की एक नई कहानी / एक नया गीत

हर दिन का एक नया क़िस्सा / बन जाने को उपन्यास

गुनगुना कर भोर की मधुर रागिनी / मस्त गोरैया

समा जाएगी गुनगुनी गोद में धूप की |

दिन चढ़ेगा धीरे धीरे / लिए हुए अपनी आँखों में

“कल” के अधूरे सपने / जो पूरे करने होंगे “आज”

देखने होंगे कुछ नए सपने / बनानी होंगी कुछ नई योजनाएँ

जिन्हें पूरा करना होगा “कल” |

करने को होगा बहुत कुछ नया हर पल

भरा हुआ उत्साहों से / उमंगों से / आशाओं से

तो कभी कभी कुछ निराशाओं और हताशाओं से भी |

इसी तरह धीरे धीरे नीचे उतर आएगी शाम

होने लगेगा शान्त कोलाहल

घिरेगी रात / समा जाएगा सब कुछ आँचल में उसके

जैसे छुप जाए नन्हा कोई बालक / आँचल में अपनी माँ के

और तब बुनी जाएँगी फिर से न जाने कितनी नई कहानियाँ

चादर तले अँधेरे की |

कुछ “कल” की आधी छूटी कहानियाँ / “आज” बन जाएँगी उपन्यास

तो कुछ “आज” के नए किस्से “कल” के लिए दे जाएँगे

फिर से एक नई कहानी / या एक नया गीत

जिसे गुनगुनाएगी “कल” फिर एक गोरैया

अपनी मधुर आवाज़ में / मस्ती में / प्यार में / जोश में

और समा जाएगी फिर से गुनगुनी धूप की गोद में |

ऐसे ही लुका छिपी में दिन और रात की

जाग जाएगी और एक नई भोर

दिखाते हुए हमारे अस्तित्व का एक पक्ष नया

खिल जाएगी और एक नई सुबह

देती हुई पूरा करने को एक लक्ष्य नया |

बीतते जाएँगे इसी तरह पल छिन दिन मास युग और कल्प

यही तो है क्रम जीवन का… प्रकृति का…

निरन्तर ! शाश्वत !! चिरन्तन !!!