वैदिक ज्योतिष के अनुसार किसी भी कार्य को करने से पूर्व उसके लिए शुभ मुहूर्त का विधान किया जाता है और अशुभ मुहूर्त को त्याग देने की सलाह दी जाती है | इसी कार्य के लिए पञ्चांग का आश्रय लिया जाता है | जैसा कि आपने देखा, वार अथवा दिन, तिथि, नक्षत्र, योग और करण – पञ्चांग के इन पाँच अवयवों पर हम पहले लिख चुके हैं | ये पाँच अंग हिन्दू पञ्चांग के मुख्य अंग हैं | किन्तु इन पाँचों अंगों के अतिरिक्त और भी कुछ शुभाशुभ मुहूर्तों का विचार वैदिक ज्योतिषी करते हैं, जैसे राहु काल, गुलिका काल, यमगंड, अभिजित मुहूर्त, अमृत काल इत्यादि…
प्रत्येक दिन का एक भाग राहुकाल माना जाता है | दिनमान को आठ भागों में विभक्त करके राहुकाल की गणना की जाती है | क्योंकि सूर्योदय और सूर्यास्त का समय अलग अलग स्थानों पर अलग अलग होता है इसलिए राहुकाल का समय और अवधि भी हर स्थान पर अलग हो सकते हैं | प्रायः इसका समय डेढ़ घंटे का रहता है जो दिनमान की अवधि के अनुसार कम अथवा अधिक भी हो सकता है | इस अवधि में कोई भी शुभ कार्य आरम्भ करने की सलाह Vedic Astrologer नहीं देते |
राहु को अशुभ ग्रह माना जाता है और राहुकाल को भी राहु से ही जोड़ा जाता है | सप्ताह के सातों दिनों के अनुसार राहुकाल की सामान्य तालिका इस प्रकार है:
रविवार 16:30 से 18:00 तक
सोमवार 07:30 से 09:00 तक
मंगलवार 15:00 से 16:30 तक
बुधवार 12:00 से 13:30 तक
गुरूवार 13:30 से 15:00 तक
शुक्रवार 10:30 से 12:00 तक
शनिवार 09:00 से 10:30 तक
जैसा ऊपर लिखा है, दिनमान तथा स्थान भेद से इस समय तथा अवधि में परिवर्तन भी आ सकता है |
अन्त में, शुभाशुभ मुहूर्त से भी ऊपर व्यक्ति का अपना कर्म होता है | व्यक्ति में सामर्थ्य और सकारात्मकता है तथा कार्य करने का उत्साह है तो वह अशुभ मुहूर्त को भी अनुकूल बना सकता है | कोई भी Good Astrologer अशुभ मुहूर्त का भय न दिखाकर उचित मार्गदर्शन ही करता है |
अस्तु, हम सभी कर्मशील रहते हुए अपने लक्ष्य को प्राप्त करें…