श्री गणपत्यथर्वशीर्ष स्तोत्रम्

हिन्दू धर्म में ऐसी मान्यता है कि यदि पूर्ण एकाग्रचित्त से संकल्पयुक्त होकर गणपति की पूजा अर्चना की जाए तो उसके बहुत शुभ फल प्राप्त होते हैं | प्रायः सभी Vedic Astrologer बहुत सी समस्याओं के समाधान के लिए पार्वतीसुत गणेश की उपासना का उपाय बताते हैं | और आज तो संकष्टचतुर्थी का व्रत भी है | इसी निमित्त प्रस्तुत है “श्री गणपति अथर्वशीर्ष स्तोत्रम्”…

इस समग्र गणपति स्तोत्र का भाव यही है कि भगवान गणेश ही सृष्टि का आरम्भ हैं तथा समस्त कर्मों के करता, समस्त किल्विषों के हर्ता, समस्त सुखों के दाता तथा समस्त प्रकार के ज्ञान विज्ञान के दाता हैं | भगवान गणेश किसी भी समय काल देहादि की सीमाओं से परे हैं | समस्त तत्त्व इन्हीं से हैं | ब्रह्मा, विष्णु, महेश, इन्द्राग्नि, वायु, सूर्य, चन्द्र समस्त भूर्भुवःस्व: सब भगवान गणेश ही हैं | ये समस्त चराचर जगत इन्हीं से उत्पन्न होकर इन्हीं में लय हो जाता है | जो श्रद्धाभक्ति पूर्वक इनका ध्यान करता है वह चारों पुरुषार्थों का पालन करते हुए समस्त पापों से मुक्त होकर सुख प्राप्त करता है…

ॐ नमस्ते गणपतये  

त्वमेव प्रत्यक्षं तत्वमसि, त्वमेव केवलं कर्ताऽसि
त्वमेव केवलं धर्ताऽसि, त्वमेव केवलं हर्ताऽसि
त्वमेव सर्वं खल्विदं ब्रह्मासि, त्व साक्षादात्माऽसि नित्यम् ||१||
ऋतं वच्मि, सत्यं वच्मि ||२||
अव त्व मां, अव वक्तारं, अव श्रोतारं, अव दातारं, अव धातारं, अवानूचानमव शिष्यं
अव पश्चात्तात्, अव पुरस्तात्, अवोत्तरात्तात्, अव दक्षिणात्तात्
अवचोर्ध्वात्तात्, अवाधरात्तात्, सर्वतो मां पाहि-पाहि समंतात् ||३||
त्वं वाङ्‍मयस्त्वं चिन्मय:, त्वमानंदमसयस्त्वं ब्रह्ममय:, त्वं सच्चिदानंदाद्वितीयोSसि
त्वं प्रत्यक्षं ब्रह्मासि, त्वं ज्ञानमयो विज्ञानमयोSसि ||४||

सर्वं जगदिदं त्वत्तो जायते, सर्वं जगदिदं त्वत्तस्तिष्ठति
सर्वं जगदिदं त्वयि लयमेष्यति, सर्वं जगदिदं त्वयि प्रत्येति
त्वं भूमिरापोSनलोSनिलो नभ:, त्वं चत्वारिवाक्पदानि ||५||
त्वं गुणत्रयातीत:, त्वं देहत्रयातीत:, त्वं कालत्रयातीत:, त्वं मूलाधारस्थितोSसि नित्यं
त्वं शक्तित्रयात्मक:, त्वां योगिनो ध्यायन्ति नित्यं
त्वं ब्रह्मा त्वं विष्णुस्त्वं रूद्रस्त्वं इंद्रस्त्वं अग्निस्त्वं वायुस्त्वं सूर्यस्त्वं चंद्रमास्त्वं ब्रह्मभूर्भुव:स्वरोम् ||६||

गणादिम् पूर्वमुच्चार्य वर्णादिं तदनन्तरम्
अनुस्वार: परतर:, अर्धेन्दुलसितं, तारेण ऋद्धं, एतत्तव मनुस्वरूपं
गकार: पूर्वरूपं, अकारो मध्यमरूपं, अनुस्वारश्चान्त्यरूपं, बिन्दुरूत्तररूपं
नाद: संधानं, संहितासन्धि:, सैषा गणेशविद्या, गणकऋषि:
निचृद्गायत्रीच्छंद:, गणपतिर्देवता, ॐ गं गणपतये नम: ||७||

एकदंताय विद्‍महे वक्रतुण्डाय धीमहि तन्नो दंती प्रचोदयात ||८||

एकदंतं चतुर्हस्तं पाशांकुशधारिणम्, रदं च वरदं हस्तैर्विभ्राणं मूषकध्वजम्
रक्तं लंबोदरं शूर्पकर्णकं रक्तवाससम्,
रक्तगंधानुलिप्तांगं रक्तपुष्पै: सुपूजितम् |
भक्तानुकंपिनं देवं जगत्कारणमच्युतम्,
आविर्भूतं च सृष्ट्यादौ प्रकृते: पुरुषात्परम्,
एवं ध्यायति यो नित्यं स योगी योगिनां वर: ||९||

नमो व्रातपतये, नमो गणपतये, नम: प्रमथपतये, नमस्तेSस्तु लंबोदरायैकदंताय,
विघ्ननाशिने शिवसुताय श्रीवरदमूर्तये नमो नम: ||१०||

एतदथर्वशीर्ष योSधीते स ब्रह्मभूयाय कल्पते
स सर्व विघ्नैर्नबाध्यते स सर्वत: सुखमेधते
स पञ्चमहापापात्प्रमुच्यते ||११||

सायमधीयानो दिवसकृतं पापं नाशयति, प्रातरधीयानो रात्रिकृतं पापं नाशयति, सायंप्रात: प्रयुंजानोSपापो भवति, सर्वत्राधीयानोSपविघ्नो भवति, धर्मार्थकाममोक्षं च विन्दति ||१२||

ऋद्धि सिद्धिदायक विघ्नहर्ता गणपति समस्त संसार को सदा सुखी रखें… यही कामना है…