समय और अनुभव हमें बहुत कुछ सिखाते हैं | समय के बीतने के साथ जीवन के खट्टे मीठे अनुभव हमें मानसिक रूप से परिपक्व बनाते हैं और हमें इस बात का ज्ञान कर पाने में समर्थ बनाते हैं कि जो कुछ भी हमारे लिए आवश्यक नहीं है, अथवा हमारे अनुकूल नहीं है, अथवा जिसके भी कारण हमें कष्ट का अनुभव होता है उसे पकड़ कर रखने का प्रयास व्यर्थ है | साथ ही जिन बातों अथवा व्यक्तियों अथवा वस्तुओं इत्यादि के कारण हमें सुख का अनुभव होता है उनके प्रति हमें सहृदय रहना चाहिए | साथ ही यह भी कि व्यर्थ की बातों को पकड़ कर रखने से हमारे समय का, शक्ति का तथा आत्मविश्वास का ह्रास ही होता है | अतः कल्याण की कामना करने वाले व्यक्ति को समस्त निरर्थक बातों अथवा वस्तुओं का त्याग करके आगे बढ़ जाना चाहिए |
समय के साथ साथ हमारे कार्यों तथा हमारे चारों ओर के वातावरण के माध्यम से नित नवीन अनुभवों के साथ हमारा साक्षात्कार होता ही रहता है | और धीरे धीरे हम सत्य की ओर अग्रसर होने लगते हैं | यह सत्य जितना हमें आध्यात्मिक स्तर पर आगे बढ़ने के लिए आवश्यक है उतना ही दिन प्रतिदिन के जीवन में भी व्यावहारिक सत्य की अत्यन्त आवश्यकता होती है | तभी हम कुछ भी अनुचित करने से बच सकते हैं, और यदि कोई अन्य हमारे साथ कुछ अनुचित करना का प्रयास कर रहा है तो उससे भी हम स्वयं को बचा सकते हैं |
हमारा अनुभव ही हमारा गुरु होता है | क्योंकि अनुभव इन्द्रियजन्य प्रत्यक्ष ज्ञान पर आधारित होता है | जो कुछ भी इन्द्रियों के द्वारा जाना जा सकता है वही अनुभव कहलाता है | अनुभव अर्थात अहसास | अनुभव सुख का भी हो सकता है और दुःख का भी | अच्छा भी हो सकता है और बुरा भी | किन्तु जैसा भी होता है उससे हमें किसी न किसी प्रकार की सीख ही मिलती है और समय के साथ साथ परिपक्व मानसिकता के साथ हम आगे बढ़ते जाते हैं |
हम सभी अपने अपने अनुभवों से शिक्षा लेते हुए समय के प्रवाह के साथ आगे बढ़ते रहें यही कामना है…