हमने अपने पिछले लेखों में पञ्चांग के पाँचों अंगों के साथ साथ कुछ अन्य शुभाशुभ मुहूर्तों जैसे राहुकाल, यमगण्ड, गुलिका तथा अभिजित आदि मुहूर्तों पर चर्चा की | अब बात करते हैं यात्रा विषयक मुहूर्त गणना की…
यात्रा तो हर व्यक्ति करता है – कभी किसी आवश्यक कार्य के लिए, तो कभी यों ही केवल भ्रमण के लिए – क्योंकि मनुष्य की प्रवृत्ति भ्रमणशील है | भ्रमण करने से न केवल मनोरंजन होता है, बल्कि साथ ही ज्ञानवृद्धि भी होती है | यात्राएँ कभी तो बहुत सुखद होती हैं और रोज़मर्रा की भाग दौड़ भरी दिनचर्या से कुछ दिनों के लिए अवकाश प्राप्त कर यात्रा से जब वापस लौटते हैं तो एक नवीन स्फूर्ति का अनुभव करते हुए पूर्ण उत्साह के साथ अपने कर्तव्य कर्मों में लग जाते हैं | किन्तु कभी कभी यात्राओं के दौरान कुछ बाधाओं का भी सामना करना पड़ जाता है | इसीलिए सदा से ही लोग प्रायः यात्रा आरम्भ करने के लिए शुभ मुहूर्त खोजते रहे हैं |
यात्रा के लिए मुहूर्त निकालते समय मुख्य रूप से दिशाशूल, नक्षत्र, योगिनी, ताराबल और चन्द्रबल आदि पर विचार किया जाता है | इसके अतिरिक्त नन्दा, जया और पूर्णा तिथियाँ यात्रा के लिए उपयुक्त मानी जाती हैं | किन्तु इनमें भी भद्रा अर्थात विष्टि करण को त्याज्य माना जाता है | नक्षत्रों में अश्वनी, मृगशिरा, पुनर्वसु, पुष्य, हस्त, अनुराधा, श्रवण, धनिष्ठा तथा रेवती नक्षत्रों को यात्रा के लिए उत्तम माना जाता है | विशेष रूप से अनुराधा, पुष्य, अश्वनी और हस्त नक्षत्र ऐसे नक्षत्र हैं जिनमें किसी भी दिशा में यात्रा की जा सकती है | साथ ही चन्द्रमा का शुभ राशि में होना आवश्यक है और तारा भी अनुकूल होना चाहिए | लग्न भी उत्तम होनी चाहिए | लग्न के सामने अर्थात सप्तम भाव में कोई ग्रह नहीं होना चाहिए | यात्रा के समय राहुकाल नहीं होना चाहिए | इत्यादि इत्यादि…
इस प्रकार बहुत सी तकनीकी बातों पर यात्रा का मुहूर्त निकालते समय विचार किया जाता है | किन्तु हमारा ऐसा मानना है कि प्राचीन काल में जब आवागमन के साधन भी इतने अच्छे नहीं थे, मार्ग भी इतने अच्छे नहीं थे, उस समय यात्रा के लिए मुहूर्त निकालना वास्तव में आवश्यक होता होगा | साथ ही सेनाएँ जब युद्ध आदि के लिए जाती होंगी तो उस समय भी मुहूर्त का ज्ञान निश्चित रूप से किया जाता होगा |
किन्तु आजकल की परिस्थितियाँ कुछ भिन्न हैं | आजकल तो कार्य के सिलसिले में ही हर दिन काफ़ी भाग दौड़ हो जाती है तो हर दिन तो मुहूर्त देखकर चलना वास्तव में असम्भव है, क्योंकि मुहूर्त जैसा भी हो – कार्य के लिए तो जाना ही है | इसके अतिरिक्त, मान लीजिये किसी नौकरी के इण्टरव्यू के लिए बुलावा आया है और जिस दिन इण्टरव्यू होना है उस दिन मुहूर्त अच्छा नहीं निकल रहा है, तो क्या व्यक्ति उस इण्टरव्यू के लिए जाएगा ही नहीं ? इसका परिणाम क्या होगा ? यही कि वह नौकरी किसी अन्य को मिल जाएगी और व्यक्ति को फिर नए सिरे से दूसरे स्थानों पर आवेदन भेज कर कुछ और समय ख़ाली बैठकर इण्टरव्यू के बुलावे की प्रतीक्षा करनी होगी | या फिर जिस शहर में जाना है वहाँ मुहूर्त के अनुसार हो सकता है कुछ दिन पहले पहुँचना पड़ जाए और होटल आदि में ठहरने की व्यवस्था करनी पड़े | एक तो वैसे ही हाथ में नौकरी नहीं ऊपर से होटलों के किराए की मार…
अतः, आवश्यक कार्य के लिए जाना हो तो किसी Vedic Astrologer से यात्रा के लिए मुहूर्त निकलवाएँ अवश्य, किन्तु किसी अन्धविश्वास का शिकार न बनें | केवल दो तीन आवश्यक बातें जान लेना ही काफ़ी होगा – जैसे यात्रा आरम्भ करते समय प्रयास करें कि चन्द्रमा अष्टम में न हो और लग्न अनुकूल हो | यदि ऐसा सम्भव नहीं भी हो सके तो इतना विचार अवश्य कर लें कि लग्न के सामने अर्थात सप्तम भाव में कोई ग्रह न हो – क्योंकि इसका अर्थ होता है कि आपके कार्य में बाधा उत्पन्न हो सकती है | और तारा अवश्य शुभ हो – अर्थात जन्म नक्षत्र से 3, 5, 7, 12, 14, 16, 21, 23, और 25वाँ नक्षत्र न हो – क्योंकि इन्हें विपत, प्रत्यरि और वध नक्षत्र माना जाता है |
अन्त में इतना अवश्य कहेंगे कि यदि कोई अच्छा मुहूर्त नहीं भी निकल रहा हो और यात्रा आवश्यक हो तब भी मुहूर्त का दोष निवारण करके यात्रा आरम्भ कर दीजिये… अपनी योग्यताओं पर, यात्रा के लिए आवश्यक तैयारियों पर तथा ईश्वर की कृपा पर भरोसा रखकर यात्रा के निकलिए… यात्रा सुखद और सफल रहेगी…