होलिका दहन
साथी देख जल रही होली ||
शिखा अग्नि की लपक लपक कर, कहती नभ के ऊपर जाकर
नवयुग की नारी आई है, आज पहन रक्ताम्बर चोली ||
प्रेम प्यार का तरु मुरझाया, पतझड़ श्रद्धा के आँगन में
आज सभी के मुँह काले हैं, करते हैं बेशर्म ठिठोली ||
हुआ मरुस्थल स्नेह सरोवर, कंटक ही हैं सुमन डाल पर
रंग नहीं, ये पिचकारी भी फेंक रही बारूदी गोली ||
नहीं होलिका दहन हुआ, यह ममता का प्रह्लाद जला है
हिरणाकुश निर्द्वन्द्व, निरीह नृसिंह, कौन दे अक्षत रोली ||
आज हुलास विलास नहीं, आतंक और भी ही छाया है
सबही का मन मुरझाया है, देख देख नित रक्तिम होली ||
मशरूमों से कितने दल और कितने नेता उगते रहते
लेकिन अपनी अपनी ढफली पर गाते सब अपनी होली ||
आयोगों का गठन हैं करते, मन संगठित नहीं कर पाते
किसके हाथों में अब देखें स्नेह प्रेम की अक्षत रोली ||
आज जल रहा है नीलाम्बर, धधक रहे हैं भारी भूधर
और अग्नि से अंकमिलन हित आती है मानव की टोली ||
सृजन तत्व ने बन संहारी महाप्रलय की की तैयारी
आज मृत्यु है फाग खेलती, ले प्राणों की कुमकुम रोली ||
आइये आज हम सब मिलकर असत्य, क्रोध, घृणा, ईर्ष्या, द्वेष, दम्भ, छल और कपट जैसे समस्त दुर्भावों की होलिका का दहन करें, ताकि सद्भावों के प्रह्लाद को जीवनदान मिल सके… होलिका दहन सभी के लिए मंगलमय हो…