वर्षीतप
आज चैत्र कृष्ण अष्टमी है और आज ही से जैन सम्प्रदाय के तपस्वियों का वर्षी तप आरम्भ हो जाता है | कल चैत्र कृष्ण नवमी है – जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर भगवान् ऋषभदेव – जिन्हें आदिनाथ के नाम से भी जानते हैं – का जन्म इसी दिन अयोध्या में हुआ था | और उन्हीं के बताए मार्ग पर चलते हुए जैन तपस्वी वर्षी तप का पालन करते हैं |
कथा है कि बहुत समय सुखपूर्वक राज्य करने का बाद महाराज ऋषभदेव अपना समस्त साम्राज्य पुत्रों को सौंपकर तपश्चर्या के लिए निकल पड़े | तपश्चर्या पूर्ण हो जाने के बाद जब कभी वे भिक्षा माँगने जाते, लोग उन्हें बहुमूल्य रत्नाभूषण प्रदान करते, किन्तु भोजन कोई नहीं देता था | इस प्रकार एक वर्ष तक भ्रमण करते हुए उनका स्वतः ही एक वर्ष का उपवास हो गया | अन्त में अक्षय तृतीया के दिन वे अपने पौत्र श्रेयाँश के राज्य हस्तिनापुर पहुँचे | श्रेयाँस ने अपने किसी कार्य के लिए उन्हें गन्ने का रस एकत्र किया हुआ था तो वही उन्हें भेंट कर दिया, जिसका पान करके उन्होंने अपने उपवास का पारायण किया | क्योंकि बहुत समय के उपवास के बाद कुछ ऐसा पदार्थ चाहिए था जो पौष्टिक हो, शीतल हो, शरीर को शक्ति भी प्रदान करे और क्षुधा को भी शान्त करे | गन्ने के रस की विशेषता है कि यह पौष्टिक, शक्ति प्रदान करने वाला, क्षुधा शान्त करने वाला तथा सहज माधुर्य युक्त होता है | पूरे विश्व में केवल एक गन्ने का पौधा ही ऐसा होता है जो जड़ से शिखर तक रस एवं मिठास लिए होता है | अन्य वृक्षों के केवल फलों में माधुर्य और रस होता है | स्वास्थ्य के लिए भी अनेक प्रकार से इसे उपयोगी माना जाता है | सम्भवतः इसी सबका विचार करके आचार्य ऋषभदेव ने इसे ग्रहण किया होगा | ऐसी भी मान्यता है कि इक्षु अर्थात गन्ने का रस ग्रहण करने के कारण उनके वंश का नाम इक्ष्वाकु वंश पड़ा |
उस उपवास के द्वारा उन्होंने जो सिद्धि प्राप्त की वह भविष्य के लिए तपसाधन का एक अद्भुत इतिहास बन गई और जैन तपस्वीजनों के लिए प्रेरणास्रोत भी | वर्षी-तप के उस इतिहास को आज भी जैन तपस्वी सुदीर्घ तप साधना कर जीवित रखे हुए हैं | इस वर्षी तप का आरम्भ चैत्र कृष्ण सप्तमी से किया जाता है | उपवास के दिनों में दो दिन तक भोजन नहीं किया जाता और भगवान् ऋषभदेव के नाम का जाप किया जाता है |
एक वर्ष तक उपवास और पारणे का क्रम चलता रहता है और एक एक वर्ष के दो तप अनुष्ठान करके एक वर्षीतप पूर्ण होता है | तपस्या का क्रम पूर्ण होने के बाद इक्षुरस से उपवास की पारणा की जाती है |
इस प्रकार यह वर्षी तप जैन तपस्वियों के लिए तो विशेष महत्त्व रखता ही है, जन साधारण के लिए भी यही प्रतीत होता है कि स्वस्थ रहने के लिए तथा आध्यात्मिक उन्नति के लिए कभी कभी उपवास तथा सुपौष्टिक और सुपाच्य भोजन से पारायण सभी को करना चाहिए…