Mahaveer Jayanti

Mahaveer Jayanti

Mahaveer Jayanti

कल चैत्र शुक्ल त्रयोदशी को भगवान् महावीर स्वामी की जयन्ती का पावन पर्व है | सभी को महावीर जयन्ती की हार्दिक शुभकामनाएँ…

महावीर स्वामी जैन धर्म के चौबीसवें और अन्तिम तीर्थंकर थे | तीर्थं करोति स तीर्थंकर: – अर्थात जो अपनी साधना के माध्यम से स्वयं संसार सागर से पार लगाने वाले तीर्थों का निर्माण करें वह तीर्थंकर | तीर्थंकर वे साधक होते हैं जिन्होंने अपने क्रोध, अभिमान, छल, इच्छा इत्यादि समस्त भावों पर विजय प्राप्त कर ली हो | जैन धर्म में भी तीर्थंकर – अरिहन्त – जिनेन्द्र – उन चौबीस साधकों के लिए प्रयुक्त होता है जिन्होंने स्वयं तप के माध्यम से कैवल्यज्ञान प्राप्त किया |

आत्मज्ञान प्राप्त करने के बाद तीर्थंकर का कर्तव्य होता है कि वे अन्यों को भी आत्मज्ञान के मार्ग पर अग्रसर करने का प्रयास करें | इसी क्रम में प्रथम तीर्थंकर हुए आचार्य ऋषभदेव और अन्तिम अर्थात चौबीसवें तीर्थंकर हुए भगवान् महावीर – जिनका समय ईसा से 599-527 वर्ष पूर्व माना जाता है | णवकार मन्त्र में सभी तीर्थंकरों को नमन किया गया है “ॐ णमो अरियन्ताणं” | समस्त जैन आगम अरिहन्तों द्वारा ही भाषित हुए हैं | इनमें महावीर बुद्ध के समकालीन माने जाते हैं |

जैन दर्शन का सामान्य अभिमत है कि संसार की समस्त वस्तुओं में उत्पाद्य-व्यय-ध्रौव्य सतत् वर्तमान हैं | अर्थात् जो उत्पन्न हुआ है वह नष्ट भी होगा और उसकी स्थिति भी रहेगी | प्रत्येक वस्तु में नित्य और अनित्य दोनों की ही सत्ता भी सदैव ही रहती है | इस जगत का निर्माता कोई ईश्वर नहीं है | प्राकृतिक तत्वों के निश्चित नियमों के अनुसार सृष्टि का निर्माण स्वाभाविक रूप से होता रहता है और स्वाभाविक रूप से ही वस्तु के पर्यायों का परिवर्तन होता रहता है | अतः प्रत्येक वस्तु अनन्तधर्मात्मक है और संसार की समस्त वस्तुएँ सदसदात्मक हैं | यह संसार शाश्वत और नित्य है क्योंकि पदार्थों का अर्थात वायु, जल, अग्नि, आकाश और पृथिवी का मूलतः विनाश नहीं होता अपितु उनका रूप परिवर्तित होता रहता है | मोक्ष प्राप्ति के लिये आवश्यक है कि मनुष्य “त्रिरत्न” के अनुशीलन और अभ्यास के द्वारा अपने पूर्वजन्म के कर्मफल का नाश करे तथा इस जन्म में किसी प्रकार भी कर्मफल संग्रहीत न करे | ये त्रिरत्न हैं : सम्यक् श्रद्धा अर्थात् सत् में विश्वास, सम्यक् ज्ञान अर्थात सद्रूप का शंकाविहीन और वास्तविक ज्ञान, तथा सम्यक् आचरण अर्थात बाह्य जगत के विषयों के प्रति सम सुख-दुःख भाव से उदासीनता | भारत के अन्य दर्शनों की ही भाँति जैन दर्शन का भी अन्तिम लक्ष्य निर्वाण प्राप्ति ही है | भगवान् महावीर ने जैन दर्शन की इस दृष्टि के द्वारा समाज को निर्वाण प्राप्ति का मार्ग दिखाने का प्रयास निरन्तर किया | ऐसे भगवान् महावीर को शत शत नमन…

हे महावीर श्रद्धा से नत शत वार तुम्हें है नमस्कार

है कर्म श्रृंखला देव तुम्हारी इस सारे जग का श्रृंगार ||

तुमने दे दी हर प्राणी को जीवन जीने की अभिलाषा

ममता के स्वर में समझा दी मानव के मन की परिभाषा |

बन गीत और संगीत जगत को हर्ष दिया तुमने अपार

हे महावीर श्रद्धा से नत शत वार तुम्हें है नमस्कार ||

तुमको पाकर रानी त्रिशला के संग धरती माँ धन्य हुई

विन्ध्याचल पर्वत से कण कण में करुणाभा फिर व्याप्त हुई |

तुमसे साँसों को राह मिली, जग में अगाध भर दिया प्यार

हे महावीर श्रद्धा से नत शत वार तुम्हें है नमस्कार ||

तुम श्रम के साधक कर्म विजेता आत्मतत्व के ज्ञानी तुम

सम्यक दर्शन, सम्यक चरित्र और अनेकान्त के साधक तुम |

सुख दुःख में डग ना डिगें कभी, समता का तुमने दिया सार

हे महावीर श्रद्धा से नत शत वार तुम्हें है नमस्कार ||