Akshaya Tritiya

Akshaya Tritiya

अक्षय तृतीया

ॐ जमदग्न्याय विद्महे महावीराय धीमहि तन्नो परशुराम: प्रचोदयात

कल बुधवार 18 तारीख़ को अक्षय तृतीया का अक्षय पर्व है, जिसे भगवान् विष्णु के छठे अवतार परशुराम के जन्मदिवस के रूप में भी मनाया जाता है | सर्वप्रथम सभी को अक्षय तृतीया की हार्दिक शुभकामनाएँ…

यों तो हर माह की तृतीया जया तिथि होने के कारण शुभ मानी जाती है, किन्तु वैशाख शुक्ल तृतीया स्वयंसिद्ध तिथि मानी जाती है | पौराणिक ग्रन्थों के अनुसार इस दिन जो भी शुभ कार्य किये जाते हैं उनका अक्षत अर्थात कभी न समाप्त होने वाला शुभ फल प्राप्त होता है | भविष्य पुराण तथा अन्य पुराणों की मान्यता है कि भारतीय काल गणना के सिद्धान्त से अक्षय तृतीया के दिन ही सतयुग और त्रेतायुग का आरम्भ हुआ था जिसके कारण इस तिथि को युगादि तिथि – युग के आरम्भ की तिथि – माना जाता है |

परशुराम के अतिरिक्त भगवान् विष्णु ने नर-नारायण और हयग्रीव के रूप में अवतार भी इसी दिन लिया था | ब्रह्मा जी के पुत्र अक्षय कुमार का अवतार भी इसी दिन माना जाता है | प्रसिद्ध तीर्थ स्थल बद्री-केदार के कपाट भी इसी दिन खुलते हैं | माना जाता है कि महाभारत के युद्ध और द्वापर युग का समापन भी इसी दिन हुआ था तथा महर्षि वेदव्यास ने इसी दिन महान ऐतिहासिक महाकाव्य महाभारत की रचना आरम्भ की थी |

Parashuraam
Parashuraam
Maharishi Vedavyaasa
Maharishi Vedavyaasa

इस प्रकार विभिन्न पौराणिक तथा लोकमान्यताओं के अनुसार इस तिथि को इतने सारे महत्त्वपूर्ण कार्य सम्पन्न हुए इसीलिए सम्भवतः इस तिथि सर्वार्थसिद्ध तिथि माना जाता है और इसीलिए सम्भवतः इसे अक्षय – जिसका कभी क्षय न हो – तिथि भी कहा जाता है | किसी भी शुभ कार्य जैसे विवाह, गृह प्रवेश, किसी संस्था अथवा व्यावसायिक प्रतिष्ठान या दूकान आदि का उद्घाटन करने के लिए यदि कोई अनुकूल समय न उपलब्ध हो रहा हो तो अक्षय तृतीया के दिन ये कार्य किये जा सकते हैं | इसके अतिरिक्त नवीन वस्त्राभूषण, ज़मीन तथा वाहन आदि खरीदने के लिए भी अक्षय तृतीया को सर्वोत्तम मुहूर्त माना जाता है | पौराणिक मान्यता तो यह भी है कि इन दिन पितरों के लिए अथवा किसी अन्य भी कारण से किया गया दान अत्यन्त शुभफलदायी होता है तथा इन शुभ फलों का कभी क्षय नहीं होता : “अस्यां तिथौ क्षयमुर्पति हुतं न दत्तम्, तेनाक्षयेति कथिता मुनिभिस्तृतीया | उद्दिष्य दैवतपितृन्क्रियते मनुष्यै:, तत् च अक्षयं भवति भारत सर्वमेव ||”

साथ ही पद्मपुराण के अनुसार यह तिथि मध्याह्न के आरम्भ से लेकर प्रदोष काल तक अत्यन्त शुभ मानी जाती है | इसका कारण भी सम्भवतः यह होगा कि पुराणों के अनुसार भगवान् परशुराम का जन्म प्रदोष काल में हुआ था |

जैन धर्म में भी अक्षय तृतीया का महत्त्व माना जाता है | प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ को उनके वर्षीतप के सम्पन्न होने पर उनके पौत्र श्रेयाँस ने इसी दिन गन्ने के रस के रूप में प्रथाम आहार दिया था | श्री आदिनाथ भगवान ने सत्य व अहिंसा का प्रचार करने एवं अपने कर्म बन्धनों को तोड़ने के लिए संसार के भौतिक एवं पारिवारिक सुखों का त्याग कर जैन वैराग्य अंगीकार किया था | सत्य और अहिंसा के प्रचार करते करते आदिनाथ हस्तिनापुर पहुँचे जहाँ इनके पौत्र सोमयश का शासन था | वहाँ सोमयश के पुत्र श्रेयाँस ने इन्हें पहचान लिया और शुद्ध आहार के रूप में गन्ने का रस पिलाकर इनके व्रत का पारायण कराया | गन्ने को इक्षु कहते हैं इसलिए इस तिथि को इक्षु तृतीया अर्थात अक्षय तृतीया कहा जाने लगा | आज भी बहुत से जैन धर्मावलम्बी वर्षीतप की आराधना करते हैं जो कार्तिक कृष्ण पक्ष की अष्टमी से आरम्भ होकर दूसरे वर्ष वैशाख शुक्ल तृतीया को सम्पन्न होती है और इस अवधि में प्रत्येक माह की चतुर्दशी को उपवास रखा जाता है | इस प्रकार यह साधना लगभग तेरह मास में सम्पन्न होती है |

Aadinaath Rishabhdeva
Aadinaath Rishabhdeva

सांस्कृतिक दृष्टि से इस दिन विवाह आदि माँगलिक कार्यों का आरम्भ किया जाता है | कृषक लोग एक एथल पर एकत्र होकर कृषि के शगुन देखते हैं साथ ही अच्छी वर्षा के लिए पूजा पाठ आदि का आयोजन करते हैं | ऐसी भी मान्यता है इस दिन यदि कृषि कार्य का आरम्भ किया जाए जो किसानों को समृद्धि प्राप्त होती है | इस प्रकार प्रायः पूरे देश में इस पर्व को हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है तथा भगवान् विष्णु के साथ ही श्री लक्ष्मी गणेश की उपासना की जाती है |

जनसाधारण की मान्यता है कि इस दिन यदि स्वर्ण खरीदा जाए तो वह दुगुना हो जाता है अथवा उसका कभी क्षय नहीं होता | पर जैसे ऊपर लिखा है, हम जो भी शुभ कार्य – दान-जप-तप-अध्ययन-साधना आदि करते हैं उनके पुण्य फलों का कभी क्षय नहीं होता | अन्यथा, वास्तविकता तो यह है कि यह समस्त संसार ही क्षणभंगुर है | ऐसी स्थिति में हम यह कैसे मान सकते हैं कि किसी भौतिक और मर्त्य पदार्थ का कभी क्षय नहीं होगा ? हमारे मनीषियों के कथन का तात्पर्य सम्भवतः यही रहा होगा कि हमारे कर्म सकारात्मक तथा लोक कल्याण की भावना से निहित हों, जिनके करने से समस्त प्राणीमात्र में आनन्द और प्रेम की सरिता प्रवाहित होने लगे तो उस उपक्रम का कभी क्षय नहीं होता अपितु उसके शुभ फलों में दिन प्रतिदिन वृद्धि ही होती है – और यही तो है जीवन का वास्तविक स्वर्ण | किन्तु परवर्ती जन समुदाय ने – विशेषकर व्यापारी वर्ग ने अपने व्यक्तिगत लाभ के लिए इसे भौतिक वस्तुओं – विशेष रूप से स्वर्ण – के साथ जोड़ लिया | लोग अपने आनन्द के लिए प्रत्येक पर्व पर कुछ न कुछ नई वस्तु खरीदते हैं तो वे ऐसा कर सकते हैं, किन्तु वास्तविकता तो यही है कि इस पर्व का स्वर्ण की ख़रीदारी से कोई सम्बन्ध नहीं है | वैसे भी यह समय वसन्त ऋतु के समापन और ग्रीष्म ऋतु के आगमन के कारण दोनों ऋतुओं का सन्धिकाल होता है | इस मौसम में गर्मीं और उमस वातावरण में व्याप्त होती है | सम्भवतः इसी स्थिति को ध्यान में रखते हुए इस दिन सत्तू, खरबूजा, खीरा तथा जल से भरे मिट्टी के पात्र दान देने की परम्परा है अत्यन्त प्राचीन काल से चली आ रही है | साथ ही यज्ञ की आहुतियों से वातावरण स्वच्छ हो जाता है और इस मौसम में जन्म लेने वाले रोग फैलाने वाले बहुत से कीटाणु तथा मच्छर आदि नष्ट हो जाते हैं – सम्भवतः इसीलिए इस दिन यज्ञ करने की भी परम्परा है |

अस्तु, ऊँ नारायणाय विद्महे वासुदेवाय धीमहि तन्नो विष्णु प्रचोदयात्…

Shree Lakshami Narayana
Shree Lakshami Narayana

श्री लक्ष्मी-नारायण की उपासना के पर्व अक्षय तृतीया तथा परशुराम जयन्ती की सभी को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ… सभी के जीवन में सुख-समृद्धि-सौभाग्य-ज्ञान की वृद्धि होती रहे तथा हर कार्य में सफलता प्राप्त होती रहे यही कामना है…