Saturn in Retrogression
आज अक्षय तृतीया का अक्षय पर्व है… सूर्य और चन्द्र दोनों अपनी उच्च राशियों में हैं अतः आज अक्षय तृतीया का योग अत्यन्त शुभ है… सभी को इस अक्षय तृतीया की हार्दिक शुभकामनाएँ…
आजही प्रातः लगभग 06:46 पर शनिदेव वक्री हुए हैं | इस समय शनि का भ्रमण धनु राशि और पूर्वाषाढ़ नक्षत्र में चल रहा है | वक्री चाल चलते हुए पाँच जून को वापस मूल नक्षत्र में शनि का प्रवेश होगा जहाँ वे पहले भी दो मार्च तक भ्रमण करके आ चुके हैं | छह सितम्बर तक मूल नक्षत्र में भ्रमण करने के पश्चात छह सितम्बर को 17:46 पर पुनः मार्गी होकर पूर्वाषाढ़ की ओर प्रस्थान आरम्भ कर देंगे | दो मई तक शनि के साथ मंगल भी रहेगा जो धनु राशि से द्वादशेश और पंचमेश है | वृश्चिक धनु और मकर राशियों पर शनि की साढ़ेसाती भी चल रही है | साथ ही वृषभ और कन्या राशियों पर शनि की ढैया भी चल रही है | इस प्रकार ये पाँच राशियाँ इस समय शनि के सीधे प्रभाव में हैं | Vedic Astrologer शनि के वक्री होने के विषय में अपनी अपनी धारणाओं तथा ज्योतिषीय सूत्रों के आधार पर विविध प्रकार के फलकथन भी कर रहे हैं |
तो, सबसे पहले संक्षेप में हम यह जानने का प्रयास करते हैं कि किसी भी ग्रह को वक्री कब कहा जाता है | प्रायः जब कोई ग्रह सूर्य के बहुत अधिक निकट आ जाता है तो या तो वह अस्त या दग्ध हो जाता है अथवा वक्री हो जाता है | सूर्य और चन्द्र कभी वक्री नहीं होते | राहु-केतु सदा वक्री ही रहते हैं | मंगल, बुध, गुरु, शुक्र और शनि सूर्य के अत्यधिक सामीप्य से कुछ समय के लिए वक्री या अस्त हो जाते हैं | इन ग्रहों के वक्री हो जाने पर इन्हें चेष्टा बल प्राप्त हो जाता है जिसके कारण इनके फलों में वृद्धि हो जाती है और इसी कारण से शुभ ग्रह के वक्री होने पर उसकी शुभता में वृद्धि हो जाती है तथा अशुभ ग्रह के वक्री होने पर उसका अशुभत्व बढ़ जाता है | साथ ही इन ग्रहों के साथ जो अन्य ग्रह स्थित होते हैं वे भी इनके बल से प्रभावित हो जाते हैं |
वक्री ग्रहों के विषय में भी विविध धारणाएँ ज्योतिषियों की हैं | कुछ लोग मानते हैं कि वक्री ग्रह सदा अशुभ फल ही प्रदान करते हैं क्योंकि वे उल्टी दिशा में चलते हैं | कुछ विद्वानों का मानना है कि ये ग्रह अपने स्वभाव के विपरीत आचरण करने लग जाते हैं | जैसे शुभ ग्रह अपना शुभत्व त्याग देता है और अशुभ ग्रह अपनी दुष्टता त्याग देता है | कुछ के विचार से कोई भी ग्रह विपरीत दिशा में भ्रमण करने में सक्षम ही नहीं है अतः उनकी चाल वक्री होती ही नहीं, अपितु सूर्य की अत्यधिक निकटता के कारण धीमी हो जाती है और इसीलिए वक्री ग्रहों का भी प्रभाव मार्गी ग्रहों की ही भाँति देखा जाना चाहिए | और भी अनेक प्रकार के सिद्धान्त, सूत्र और गणनाएँ हैं जो एक विशद विवेचना का विषय है |
हमारा स्वयं का मानना यह है कि ग्रह वक्री तो होता है इसीलिए वह वर्तमान नक्षत्र से आगे बढ़ने की अपेक्षा पिछले नक्षत्र में पहुँच जाता है और वहाँ से पुनः आगे बढ़ना आरम्भ कर देता है | यही कारण है कि इस समय शनि का गोचर पूर्वाषाढ़ नक्षत्र में हो रहा है, जो वक्री चलते हुए वापस मूल नक्षत्र में पहुँच जाएगा, जहाँ छः सितम्बर तक घूमने का पश्चात पुनः मार्गी होकर आगे बढ़ना आरम्भ करेगा और 27 नवम्बर को 18:15 पर वापस पूर्वाषाढ़ में पहुँच जाएगा | इस प्रकार सूर्य के एक निश्चित सीमा पर सामीप्य से ग्रह वक्री हो जाते हैं |
वक्री होने पर ग्रहों के किस प्रकार के परिणाम हो सकते हैं इसे हम इस प्रकार भी समझ सकते हैं कि मान लीजिये हमें किसी इन्टरव्यू के जाना है और हम अपने बहुत ज़रूरी Documents घर भूल जाते हैं | जब हमें इस बात का पता लगता है तो हम वापस घर की ओर दौड़ पड़ते हैं और अपनी वो फाइल लेकर इन्टरव्यू के स्थान की ओर वापस दौड़ लगाते हैं | तो उस आधे रास्ते से घर का उल्टा सफ़र और फिर घर से ऑफिस तक का सफ़र हमारा जिस प्रकार का रहेगा ठीक वही स्थिति हम वक्री ग्रह की भी समझ सकते हैं | हमारे मन में चिन्ता हो रही होती है कि घर वापस पहुँच कर फाइल लेकर हम सही समय पर इन्टरव्यू के लिए पहुँच भी पाएँगे या नहीं, और इसी ऊहापोह में हम इतना भी नहीं सोच पाते कि इस भागमभाग में हमारी किसी से टक्कर हो सकती है और उस कारण हमें अथवा दूसरे को कोई हानि पहुँच सकती है | हम बस चिन्ता और जोश की मिली जुली मानसिक स्थिति में चलते रहते हैं | परिणाम कुछ परिस्थितियों में अनुकूल भी हो सकता है और कुछ में प्रतिकूल भी | या इस प्रकार भी समझ सकते हैं कि हम कार ड्राइव कर रहे हैं और सामने से अचानक कोई हाई बीम पर ड्राइव करता आ सकता है जिसके कारण हमारी आँखें कुछ पल के लिए बन्द हो सकती हैं और उस स्थिति में हम दिग्भ्रमित हो सकते हैं, हमारी गति लड़खड़ा सकती है, हमारी किसी के साथ टक्कर भी हो सकती है, इत्यादि इत्यादि…
बस इसी प्रकार वक्री ग्रहों के फलों को भो समझना चाहिए | सूर्य की एक निश्चित सीमा के भीतर आ जाने से उस ग्रह को सूर्य के अत्यधिक प्रकाश से जहाँ एक ओर वह बल मिल जाता है जिसकी उसे बहुत समय समय से प्रतीक्षा थी – अर्था चेष्टा बल, वहीं दूसरी ओर उसकी चाल भी लड़खड़ा सकती है और वह विपरीत दिशा में चलना आरम्भ कर सकता है… अथवा बली और दिग्भ्रमित होकर जोश में आकर कुछ भी कर सकता है…
अस्तु, यह एक खगोलीय घटना है और इसके कारण भयभीत होने की आवश्यकता नहीं है | वैसे भी धनु राशि का अधिपति गुरु शनि के लिए तटस्थ ग्रह है अतः घबराने की आवश्यकता नहीं है | हाँ, शनि ग्रह को स्वाभाविक क्रूर ग्रह मानते हुए हम कह सकते हैं कि जो राशियाँ इसके सीधे प्रभाव में इस समय हैं उन जातकों को सावधान रहने की आवश्यकता है | उनके स्वभाव में कोई अन्तर इस समय में नहीं आएगा किन्तु उनके व्यवहार में कुछ परिवर्तन आ जाने के कारण उसका प्रभाव उनके कार्यों पर पड़ सकता है और उसके अनुसार शुभाशुभ परिणाम उन्हें प्राप्त हो सकते हैं…
शनि का तो अर्थ ही है धीरे चलने वाला और शान्ति प्रदान करने वाला, तो हम कह सकते हैं कि जन्मकुण्डली में शनि की स्थिति के अनुसार उसके शुभाशुभ परिणाम जातक को प्राप्त होते रहेंगे, किन्तु शनै: शनै:.. यदि किसी प्रतिकूल परिणाम का अनुभव आपको हो तो शनिदेव के किसी भी मन्त्र का जाप आप कर सकते हैं…
शनिदेव सभी को कर्तव्य मार्ग पर अग्रसर रखते हुए सभी का कल्याण करें…
नीलांजनसमाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम्, छायामार्तण्डसम्भूतं त्वं नमामि शनैश्चरम्…