Surya Kavacham
सूर्यकवचम्
हम सब जानते हैं कि सूर्य आत्मा का कारक ग्रह है | स्वाभाविक दाहकत्व लिए हुए सूर्य का शाब्दिक अर्थ है सबका प्रेरक, सबको प्रकाश देने वाला, सबका प्रवर्तक होने के कारण सबका कल्याण करने वाला | यही त्रिदेव के रूप में जगत की रचना, पालन तथा संहार का कारण भी है | सूर्य को प्रसन्न करने के लिए बहुत सी स्तुतियाँ मन्त्र आदि के विषय में बताया गया है | जिनमें गायत्री मन्त्र तो सर्वश्रेष्ठ है | गायत्री मन्त्र का जाप और पुरुश्चरण आदि करने से न केवल भौतिक सुख समृद्धि और ज्ञान प्राप्त होता है अपितु व्यक्ति को अध्यात्म मार्ग पर अग्रसर होने में भी सहायता प्राप्त होती है |
गायत्री मन्त्र के अतिरिक्त और भी अनेक स्तुतियाँ और स्तोत्र आदि का जाप साधक अपने समय और सामर्थ्य के अनुसार कर सकता है | उन्हीं में से प्रस्तुत है याज्ञवल्क्य मुनि द्वारा वर्णित सूर्यकवचम्… कवच का अर्थ ही होता है रक्षा करने वाला…
याज्ञवल्क्य उवाच :
श्रणुष्व मुनिशार्दूल सूर्यस्य कवचं शुभम् |
शरीरारोग्यं दिव्यं सर्वसौभाग्यदायकम् ||
दैदीप्यमानमुकुटं स्फुरन्मकरकुण्डलम् |
ध्यात्वा सहस्त्रं किरणं स्तोत्रमेतदुदीरयेत् ||
शिरो में भास्कर: पातु ललाट मेSमितद्युति: |
नेत्रे दिनमणि: पातु श्रवणे वासरेश्वर: ||
ध्राणं धर्मं धृणि: पातु वदनं वेदवाहन: |
जिव्हां मे मानद: पातु कण्ठं मे सुरवन्दित: ||
स्कन्धौ प्रभाकर: पातु वक्ष: पातु जनप्रिय: |
पातु पादौ द्वादशात्मा सर्वांगसकलेश्वर: ||
सूर्यरक्षात्मकं स्तोत्रं लिखित्वा भूर्जपत्रके |
दधाति य: करैरस्य वशगा: सर्वसिद्धय: ||
सुस्नातो यो जपेत् सम्यग्योSधीते स्वस्थमानस: |
स रोगमुक्तो दीर्घायु सुखं पुष्टिं च विन्दति ||
याज्ञवल्क्य बोले “हे मुनिशिरोमणि ! सूर्य का कवच सुनो |
शरीर को आरोग्य देने वाले और सब सौभाग्यों के दायक, दैदीप्यमान मुकुट और मकर की आकृति वाले कुण्डल धारण किये हुए, सहस्र किरण रूपी सूर्य के इस कवच का पाठ करना चाहिए | इसका अर्थ है कि “भगवान् भास्कर मेरे सिर की रक्षा करें | द्युतिरूप सूर्य मेरे ललाट की रक्षा करें | दिनमणि मेरे नेत्रों की तथा वासरस्वामी मेरे कानों की रक्षा करें | समस्त सुगन्धियों में जो धर्म को ग्रहण करते हैं वे धृणि मेरी घ्राण अर्थात नासिका की तथा वेद जिनका वाहन हैं ऐसे देव मेरे वदन की रक्षा करें | मेरी जिह्वा, कण्ठ, दोनों कन्धों तथा वक्ष की रक्षा समस्त देवताओं द्वारा वन्दित, जनप्रिय सदा सम्मानित प्रभाकर करें | द्वादश आदित्य मेरे पैरों की रक्षा करें और सकल जगत के कारण वह परमेश्वर मेरे समस्त अंगों की रक्षा करें |”
याज्ञवल्क्य मुनि कहते हैं कि स्वस्थ मन से निष्ठापूर्वक जो व्यक्ति इस सूर्य कवच का पाठ अथवा श्रवण करता है उसे समस्त सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं तथा वह सदा नीरोगी और सुखी रहता है |
भगवान् भास्कर हम सभी की रक्षा करें…