Moon – चन्द्र
ग्रहों की बात करें तो सूर्य के बाद जो सबसे अधिक निकट माना जाता है वह है शीतल अमृततुल्य हिमधवल ज्योत्स्ना से समस्त प्रकृति को रसाप्लावित करता चन्द्र, जो सदा से ही भारतीय साहित्यकारों का अत्यधिक प्रिय उपमान भी रहा है | भारतीय वैदिक ज्योतिष के अनुसार चन्द्रमा जलतत्व प्रधान ग्रह है | इसका कारण सम्भवतः चन्द्रमा की शीतल ज्योत्स्ना ही रही होगी | हमारे ऋषि मुनियों ने समझा होगा कि चन्द्रमा में जल प्रचुर मात्रा में होगा इसीलिए इसकी किरणें इतनी शीतल होती हैं | और जल सृष्टि का आदि भी है, अन्त भी है तथा जीवन का मूलभूत कारण भी है | यही कारण है कि समस्त सभ्यताओं का विकास जलाशयों के किनारे ही हुआ | और यही कारण है कि किसी भी कार्य का साक्षी बनाते समय अथवा संकल्प लेते समय जल को साक्षी बनाया जाता है तथा जातक का नाम भी उसकी चन्द्र राशि अथवा चन्द्र नक्षत्र के अनुसार रखा जाता है | प्रत्येक धार्मिक और माँगलिक अनुष्ठान में कलश स्थापना जल के महत्त्व को ही दर्शाती है – जिसमें समस्त नदियों, सागरों तथा सप्त्द्ववीपा वसुन्धरा को आमन्त्रित किया जाता है | अतः जल के गुण धर्म जिस भी वस्तु में होंगे वह वास्तव में जीवन के लिए महत्त्वपूर्ण ही होगी | चन्द्रमा पर जल कितनी मात्रा में है इस पर विचार करना अन्तरिक्ष वैज्ञानिकों का कार्य है | हम यहाँ ज्योतिष के आधार पर चन्द्रमा का विवेचन करने का प्रयास कर रहे हैं |
भारतीय वैदिक ज्योतिष के अनुसार चन्द्रमा को सबसे अधिक सौम्य तथा मन का कारक ग्रह माना जाता है | श्रीमद्भागवत के अनुसार चन्द्र अत्रि ऋषि तथा उनकी पत्नी अनुसूया के पुत्र हैं | चन्द्रमा को सोलह कलाओं से युक्त, अन्नमय, मनोमय, अमृतमय पुरुष कहा जाता है | जिस प्रकार भगवान् राम का जन्म सूर्यवंश में हुआ था उसी प्रकार भगवान् कृष्ण का जन्म चन्द्रवंश में हुआ था | चन्द्रमा को जल के साथ साथ बीज तथा औषधि का कारक भी माना जाता है | ऐसी भी मान्यता है कि 27 नक्षत्र जो वास्तव में दक्ष की 27 पुत्रियाँ हैं – का विवाह चन्द्रमा के साथ हुआ था | साथ ही जटा-जूट, सर्प, तथा पन्नगधारी गंगा के आश्रय त्रिलोक के कर्ता-धर्ता-हर्ता भगवान् शंकर के मस्तक पर शोभायमान होने वाला मुकुट भी चन्द्रमा को ही माना जाता है |
जैसा कि सभी जानते हैं, प्रत्येक ग्रह के अपने अपने चन्द्रमा हैं | जिनमें पृथिवी के चन्द्रमा को एक प्रमुख स्थान प्राप्त है – और इसका कारण रात्रि में समस्त चराचर को आनन्दित तथा प्रकाशित करती इसकी शीतल धवल ज्योत्स्ना | हमारा चन्द्रमा सत्ताईस दिन में पृथिवी का एक चक्कर पूरा करता है | मन का कारक होने का साथ ही जातक की कुण्डली में चतुर्थ भाव इसके आधिपत्य में आता है तथा यह स्वाभाविक मात्तृकारक भी माना जाता है | मानसिक शान्ति, सुख समृद्धि आदि का सम्बन्ध चन्द्रमा के साथ माना जाता है – सम्भवतः इसीलिए कि जिस प्रकार जल निरन्तर अविरत गति से प्रवाहित होता रहता है उसी प्रकार अविरत गति से मन में आनन्द और शान्ति की सरिता प्रवाहित होती रहे तथा सुख समृद्धि भी निरन्तर प्रवाहमान रहें | वैसे भी सर्वविदित है कि यदि जलाशय सूखने लग जाएँ तो वसुओं को धारण वाली वसुन्धरा भी शुष्क हो जाती है और धन धान्य का अभाव हो जाता है | जल शुद्धि और पुष्टि का कारक है | जल का महत्त्व प्रतिपादित करने के लिए ही सम्भवतः गंगा की आरती की प्रथा भी है | चन्द्रमा में भी यही सब गुण माने जाते हैं और सम्भवतः इसीलिए उसे जल तत्त्वयुक्त कर्क राशि का स्वामित्व प्रदान किया गया है | यह रोहिणी, हस्त तथा श्रवण नक्षत्रों का अधिपति ग्रह है |
चन्द्रमा कल्पनाओं, भावनाओं तथा सम्वेदनाओं का प्रतिनिधित्व करता है | वैसे भी वेदों में कहा गया है “चन्द्रमा मनसो जात:” अर्थात चन्द्रमा मन से उत्पन्न है, और मन ही समस्त प्रकार की कल्पनाओं, भावनाओं तथा सम्वेदनाओं का संचालन करता है | चन्द्रमा को वायव्य कोण का स्वामी माना जाता है | वृषभ इसकी उच्च राशि तथा वृश्चिक नीच राशि है | चन्द्रमा का शत्रु ग्रह कोई नहीं है, सूर्य और बुध मित्र ग्रह माने जाते हैं तथा मंगल, गुरु, शुक्र शनि की राशियों में यह तटस्थ भाव में रहता है | इसकी महादशा दस वर्ष की होती है तथा लगभग सवा दो दिन यह एक राशि में रहता है |
व्यक्ति की कुण्डली में यदि चन्द्रमा दोषयुक्त हो तो उसे दोषमुक्त करके बल प्रदान करने तथा उसे प्रसन्न करने के लिए Vedic Astrologer अनेक प्रकार के मन्त्रों का जाप बताते हैं | उन्हीं में से कुछ मन्त्र यहाँ प्रस्तुत हैं:
वैदिक मन्त्र :
ॐ इमं देवा असपत्नघ्वं सुवध्यं।
महते क्षत्राय महते ज्यैश्ठाय महते जानराज्यायेंन्द्रस्येन्द्रियाय इमममुध्य पुत्रममुध्यै पुत्रमस्यै विश वोsमी राज: सोमोsस्माकं ब्राह्माणानाघ्वं राजा |
पौराणिक मन्त्र :
ॐ दधिशंखतुषाराभं क्षीरोदार्णवसम्भवम् |
नमामि शशिनं सोमं शम्भोर्मुकुटभूषणम् ||
तन्त्रोक्त मन्त्र :
ॐ ऎं क्लीं सोमाय नम: अथवा ॐ श्रां श्रीं श्रौं चन्द्रमसे नम: अथवा ॐ श्रीं श्रीं चन्द्रमसे नम:
बीज मन्त्र : ॐ सों सोमाय नमः
चन्द्र गायत्री मन्त्र :
ॐ अत्रिपुत्राय विद्महे सागरोद्भवाय धीमहि तन्नो चन्द्रः प्रचोदयात् |
अथवा – ॐ अमृतांगाय विद्महे कलारुपाय धीमहि तन्नो सोम प्रचोदयात् |
अपनी सुविधानुसार इनमें से किसी भी मन्त्र का जाप चन्द्रमा को दोषमुक्त करके बली बनाने के लिए किया जा सकता है |
चन्द्रमा की शीतल धवल रश्मियाँ सबके मनों में आनन्द, प्रेम और शान्ति की सरिता निरन्तर प्रवाहित रखें तथा सभी के सुख सौभाग्य में वृद्धि करें…