Mars – Mangal

Mars - Mangal

Mars – Mangal

भारतीय वैदिक ज्योतिष में मंगल को प्रथम श्रेणी का क्रूर ग्रह माना जाता है | यह इतना शक्तिशाली ग्रह है कि वैज्ञानिकों तक को अपनी ओर निरन्तर आकर्षित करता रहता है | इसकी स्वाभाविक उग्रता के ही कारण जन साधारण के मन में मंगल को लेकर भय की भावना अधिक होती है | यहाँ तक कि वर वधू के कुण्डली मिलान के समय यदि एक पक्ष माँगलिक हो और दूस्ता पक्ष माँगलिक नहीं हो तो Vedic Astrologer विवाह की अनुमति नहीं देते हैं | किन्तु यह भय व्यर्थ है, क्योंकि जिसका नाम ही मंगल हो वह भला अमंगल कैसे कर सकता है ? मंगल उग्र ग्रह अवश्य है किन्तु अशुभ ग्रह नहीं है | जिस प्रकार अन्य ग्रह अपनी स्थिति, युति, गोचर आदि के अनुसार शुभाशुभ फल प्रदान करते हैं उसी प्रकार मंगल भी करता है | किसी भी अन्य ग्रह की ही भाँति मंगल के शुभ अथवा अशुभ होने का विचार कुण्डली के समग्र अध्ययन के बाद ही किया जा सकता है | और यदि किसी जातक की कुण्डली में मंगल का फल अशुभ प्रतीत हो भी रहा है तो अन्य ग्रहों की ही भाँति मंगल का भी अशुभत्व कम करने तथा मंगल को प्रसन्न करने के उपाय हैं | अतः व्यर्थ ही भयभीत होने की आवश्यकता नहीं है |

इस ग्रह का वर्ण अग्नि के समान लाल होने के कारण इसे अंगारक अथवा अग्निपुत्र भी कहा जाता है | इसका अन्य नाम है भौम अर्थात भूमि का पुत्र, यद्यपि इसके लिए अनेक पौराणिक उपाख्यान उपलब्ध हैं, किन्तु हमारे विचार से ऐसा सम्भवतः इसलिए है कि वैज्ञानिकों ने पृथिवी और मंगल के मध्य कई समानताएँ खोज निकाली हैं और वैदिक काल के ऋषि मुनियों को अपनी अन्तर्दृष्टि से इन समानताओं का निश्चित रूप से भान रहा होगा | इसे युद्ध का देवता भी कहा जाता है तथा इसकी कुमार अवस्था मानी जाती है | बृहत्पाराशर होराशास्त्र के अनुसार – ‘‘क्रूरो रक्तेक्षणो भौमश्चपलोदारमूर्तिकः पित्तप्रकृतिकः क्रोधी कृशमध्यतनुर्द्विज’’ अर्थात स्वभाव से क्रूर, रक्त नेत्र, चंचल, उदारहृदय, पित्तप्रकृति, क्रोधी, कृश तथा मध्यम कद काठी का ग्रह है मंगल | नारदीय पुराण, जातक तत्वम् इत्यादि अन्य अनेक ग्रन्थों की भी यही मान्यता है |

मेष तथा वृश्चिक राशियों का इस ग्रह को अधिपतित्व प्राप्त है और दोनों राशियाँ एक दूसरे से षडाष्टक में हैं, जो ऊर्जा और साहस तथा विरोधियों पर विजय प्राप्त करने के लिए वास्तव में अनुकूल स्थिति है | यह मकर राशि में उच्च का तथा कर्क में नीच का होता है | दशम भाव में इसे दिग्बल प्राप्त होता है | सूर्य, चन्द्र और गुरु इसके मित्र ग्रह हैं तथा बुध शत्रु ग्रह है | शुक्र तथा शनि इसके लिए सामान्य ग्रह हैं – अर्थात इनकी राशियों में मंगल अप्रभावित रहता है | इसकी दशा सात वर्ष की होती है तथा एक राशि से दूसरी राशि में जाने में इसे लगभग 45-50 दिन का समय लगता है, किन्तु अत्तिचारी अथवा वक्री होने की स्थिति में कभी कभी कुछ अधिक दिन तक भी एक राशि में भ्रमण करता रह सकता है | जैसे इस वर्ष दो मई से लेकर छह नवम्बर तक छह माह के लगभग मकर राशि में भ्रमण करेगा |

Navagraha Mandala
Navagraha Mandala

शारीरिक ऊर्जा, आत्मविश्वास, अहंकार, शक्ति, क्रोध, वीरता जैसी साहसिक और दुस्साहसिक प्रवृत्तियों का प्रतिनिधित्व करने वाला मंगल रक्त, माँसपेशियों तथा अस्थि मज्जा का स्वामी माना जाता है | वास्तव में देखा जाए तो मंगल जातक को जो ऊर्जा प्रदान करता है और इसी ऊर्जा के सहारे व्यक्ति सांसारिक यात्रा को भली भाँति संचालित कर पाता है | मृगशिरा, चित्रा तथा धनिष्ठा नक्षत्रों का यह स्वामी ग्रह है | इसका तत्व अग्नि है तथा यह दक्षिण दिशा और ग्रीष्म ऋतु से सम्बन्ध रखता है | यह ग्रह इतना शक्तिशाली माना जाता है कि यदि यह जातक की कुण्डली में शुभ स्थिति में हो तो व्यक्ति पराक्रमी तथा शुभ कार्यों में प्रवृत्त होता है, किन्तु यदि अशुभ स्थिति में हो तो अपनी शक्ति तथा पराक्रम का अनुचित उपयोग भी कर सकता है | साथ ही मंगल यदि दुर्बल हो तो पराक्रम का ह्रास भी कर सकता है | प्रत्येक स्थिति में मंगल को प्रसन्न करने अथवा बली बनाने के लिए कुछ मन्त्रों का जाप करने का सुझाव दिया जाता है | प्रस्तुत हैं उन्हीं में से कुछ मन्त्र:

वैदिक मन्त्र : ॐ अग्निमूर्धादिव: ककुत्पति: पृथिव्य अयम् | अपा रेता सिजिन्नवति |

पौराणिक मन्त्र : ॐ धरणीगर्भसम्भूतं विद्युतकान्तिसमप्रभं, कुमारं शक्तिहस्तं तं मंगलं प्रणमाम्यहम् |

तन्त्रोक्त मन्त्र : ॐ ह्रां हंस: खं ख: अथवा ॐ हूँ श्रीं मंगलाय नमः अथवा ॐ क्रां क्रीं क्रौं स: भौमाय नमः

बीज मन्त्र : ॐ अं अंगारकाय नमः अथवा ॐ भौं भौमाय नमः

गायत्री मन्त्र : ॐ क्षिति पुत्राय विद्महे लोहितांगाय धीमहि तन्नो भौमः प्रचोदयात

अपने नाम के अनुरूप ही मंगल सभी के लिए मंगलकारक हो…