Shree Guru Kavacham
गुरुकवचम्
ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं सः गुरुवे नमः
हिन्दू धर्म के नवग्रहों में देवगुरु बृहस्पति की उपासना ज्ञान और बुद्धि के साथ-साथ भाग्य वृद्धि, विवाह और सन्तान का सुख प्राप्त करने के लिए भी की जाती है | भारतीय ज्योतिष शास्त्रों तथा Vedic Astrologers के अनुसार किसी व्यक्ति की कुण्डली में गुरु यदि अच्छी अस्थिति में हों – उच्च का हो, केन्द्र अथवा मूल त्रिकोण में हो, वर्गोत्तम हो इत्यादि इत्यादि… तो वह व्यक्ति ज्ञानवान बनता है तथा अपने ज्ञान के बल पर ही उसे मान प्रतिष्ठा, धन, पुरूस्कार आदि की उपलब्धि जीवन में होती रहती है तथा उसे अच्छी और सुयोग्य सन्तान का सुख प्राप्त होता है | किन्तु यदि वही गुरु विपरीत स्थिति में हो या विपरीत प्रभाव में हो तो जातक को मानसिक कष्ट के साथ ही अनेक बाधाओं का सामना भी करना पड़ सकता है | विवाह तथा सन्तान प्राप्ति में भी बाधा का सामना करना पड़ सकता है | सन्तान की ओर से कष्ट हो सकता है | वह व्यक्ति अत्यन्त क्रोधी या चिडचिडा हो सकता है तथा अनेक प्रकार के दुर्गुण भी उसमें हो सकते हैं |
गुरु के अशुभ प्रभाव को दूर करके गुरुदेव को शान्त करने तथा बली बनाने के लिए अनेक मन्त्रों के जाप की सलाह दी जाती है, उन्हीं में से एक है “बृहस्पति कवच”, जिसका एक सरल प्रकार यहाँ प्रस्तुत है…
कवच आरम्भ करने से पूर्व गुरु गायत्री का 108 बार जप करें –
“ॐ अंगिरोजाताय विद्महे, वाचस्पते धीमहि, तन्नो गुरु: प्रचोदयात ||”
इसके बाद विनियोगपूर्वक बृहस्पति कवच का पाठ अथवा श्रवण करें:-
|| अथ श्री बृहस्पति कवचं (गुरु कवचं) ||
|| श्री गणॆशाय नम: ||
अस्य श्री बृहस्पतिकवचमहामन्त्रस्य ईश्वर ऋषि:, अनुष्टुप छन्द: बृहस्पतिर्दॆवता, गं बीजं, श्रीं शक्ति:, क्लीं कीलकम्, बृहस्पति प्रसाद सिद्ध्यर्थॆ जपॆ विनियॊग: ||
अभीष्टफलदं देवं सर्वज्ञं सुरपूजितम् |
अक्षमालाधरं शान्तं प्रणमामि बृहस्पतिम् ||
बृहस्पति: शिर: पातु ललाटं पातु में गुरु: |
कर्णौ सुरुगुरु: पातु नेत्रे मेंSभीष्टदायक: ||
जिह्वां पातु सुराचायो नासां में वेदपारग: |
मुखं मे पातु सर्वज्ञो कण्ठं मे देवता शुभप्रद: ||
भुजौ आङ्गिरस: पातु करौ पातु शुभप्रद: |
स्तनौ मे पातु वागीश: कुक्षिं मे शुभलक्षण: ||
नाभिं देवगुरु: पातु मध्यं पातु सुखप्रद: |
कटिं पातु जगदवन्द्य: ऊरू मे पातु वाक्पति: ||
जानु जङ्गे सुराचायो पादौ विश्वात्मकस्तथा |
अन्यानि यानि चाङ्गानि रक्षेन् मे सर्वतो गुरु: ||
इत्येतत् कवचं दिव्यं त्रिसन्ध्यं य: पठेन्नर: |
सर्वान् कामानवाप्नोति सर्वत्र विजयी भवेत् ||
|| इति श्री ब्रह्मयामलोक्तम् बृहस्पति कवचं सम्पूर्णम् ||
देवगुरु बृहस्पति सभी के ज्ञान का विस्तार करते हुए सभी को समस्त सुख समृद्धि प्रदान करें…