Shukra Stotram

Venus

Shukra Stotram

शुक्र स्तोत्रम्

पिछले लेख में हमने शुक्र कवच प्रस्तुत किया था | अब प्रतुत है शुक्र स्तोत्रम्

जैसे कि हम सभी जानते हैं, समस्त प्रकार की भौतिक सुख सुविधाओं, कलाओं, शिल्प, सौन्दर्य, बौद्धिकता, राजनीति, समाज में मान प्रतिष्ठा में वृद्धि, प्रेम और रोमांस इत्यादि का कारण दैत्याचार्य शुक्र को माना जाता है | जितनी भी प्रकार की विलासिता के साधन हैं उन सबका कारक तथा स्त्री पुरुष सम्बन्धों, प्रेम, रोमांस और प्रजनन का भी सम्बन्ध शुक्र के साथ माना जाता है | अर्थात शुक्र यदि शुभ और अनुकूल स्थिति में होगा तो व्यक्ति के लिए ये समस्त सम्भावनाएँ रहती हैं | किन्तु यदि अशुभ प्रभाव में तो इन सभी बातों का अभाव भी हो सकता है | ऐसी स्थिति में शुक्र का अशुभत्व कम करके उसे बली तथा प्रसन्न करने के लिए Vedic Astrologer शुक्र कवच या शुक्र स्तोत्र आदि के पठन और श्रवण की सलाह देते हैं | वही शुक्र स्तोत्र यहाँ प्रस्तुत कर रहे हैं… यह शुक्र स्तोत्र स्कन्द पुराण से उद्धृत है… इसका पाठ करने से पूर्व – ॐ भृगुसुताय विद्महे दिव्यदेहाय धीमहि तन्नो शुक्र: प्रचोदयात

अथवा – ॐ भृगुवंशजाताय विद्महे श्वेतवाहनाय धीमहि तन्नो कवि: प्रचोदयात्

अथवा – ॐ शुक्राय विद्महे शुक्लाम्बरधरः धीमहि तन्नो शुक्र: प्रचोदयात

इन तीनों गायत्री में में से किसी एक का का 108 बार जाप करके फिर कवच अथवा स्तोत्र का पाठ आरम्भ करना चाहिए…

|| अथ श्रीशुक्रस्तोत्रम् ||

नमस्ते भार्गव श्रेष्ठ देव दानव पूजित: |
वृष्टिरोधप्रकर्त्रे च वृष्टिकर्त्रे नमो नम: ||
देवयानीपितस्तुभ्यं वेदवेदांगपारग: |
परेण तपसा शुद्ध: शंकरो लोकशंकर: ||
प्राप्तो विद्यां जीवनाख्यां तस्मै शुक्रात्मने नम: |
नमस्तस्मै भगवते भृगुपुत्राय वेधसे ||
तारामण्डलमध्यस्थ स्वभासा भासिताम्बर: |
यस्योदये जगत्सर्वं मंगलार्हं भवेदिह ||
अस्तं याते ह्यरिष्टं स्यात्तस्मै मंगलरूपिणे |
त्रिपुरावासिनो दैत्यान् शिवबाणप्रपीडितान् ||
विद्यया जीवयच्छुक्रो नमस्ते भृगुनन्दन |
ययातिगुरवे तुभ्यं नमस्ते कविनन्दन ||
बलिराज्यप्रदो जीवस्तस्मै जीवात्मने नम: |
भार्गवाय नमस्तुभ्यं पूर्वं गीर्वाणवन्दितम् ||
जीवपुत्राय यो विद्यां प्रादात्तस्मै नमोनम: ||
नम: शुक्राय काव्याय भृगुपुत्राय धीमहि ||
नम: कारणरूपाय नमस्ते कारणात्मने |
स्तवराजमिदं पुण्य़ं भार्गवस्य महात्मन: ||
य: पठेच्छुणुयाद्वापि लभते वाँछितफलम् |
पुत्रकामो लभेत्पुत्रान् श्रीकामो लभते श्रियम् ||
राज्यकामो लभेद्राज्यं स्त्रीकाम: स्त्रियमुत्तमाम् |
भृगुवारे प्रयत्नेन पठितव्यं सुसमाहितै: ||

अन्यवारे तु होरायां पूजयेद्भृगुनन्दनम् |
रोगार्तो मुच्यते रोगात् भयार्तो मुच्यते भयात् ||
यद्यत्प्रार्थयते वस्तु तत्तत्प्राप्नोति सर्वदा |
प्रात: काले प्रकर्तव्या भृगुपूजा प्रयत्नत: ||
सर्वपापविनिर्मुक्त: प्राप्नुयाच्छिवसन्निधि: ||

|| इति श्री स्कन्दपुराणे शुक्रस्तोत्रं सम्पूर्णम् ||

समस्त प्रकार की सुख सुविधाओं, कलाओं, शिल्प, सौन्दर्य, बौद्धिकता, राजनीति, समाज में मान प्रतिष्ठा में वृद्धि, प्रेम और रोमांस इत्यादि का कारण दैत्याचार्य शुक्र सभी की मनोकामनाएँ पूर्ण करें…