Ketu
राहु और केतु की कथा से सभी लोग परिचित हैं, अतः पुनरावृत्ति से कोई लाभ नहीं | यहाँ हम ज्योतिष के आधार पर केतु की बात कर रहे हैं | भारतीय वैदिक ज्योतिष के अनुसार राहु और केतु सूर्य और चन्द्रमा के परिक्रमा मार्गों को परस्पर काटते हुए दो बिन्दुओं के नाम हैं जो पृथिवी के सापेक्ष परस्पर एक दूसरे से विपरीत दिशा में 180 अंशों के कोण पर स्थित होते हैं | राहु की ही भाँति केतु भी कोई खगोलीय पिण्ड नहीं है, अपितु एक छाया ग्रह ही है | यह ग्रह आध्यात्मिकता, भावनाओं तथा अच्छे और बुरे कार्मिक प्रभावों का द्योतक भी है | यह व्यक्ति को आध्यात्म मार्ग में प्रवृत्त करने के लिए उसकी भौतिक सुख सुविधाओं का नाश तक करा सकता है | केतु तर्क, बुद्धि, ज्ञान, वैराग्य, कल्पना, अन्तर्दृष्टि, मर्मज्ञता, विक्षोभ और अन्य मानसिक गुणों का कारक है। सर्पदंश तथा अन्य किसी प्रकार के विष के प्रभाव से मुक्ति दिलाने वाला भी माना जाता है | केतु की दशा में में किसी लम्बी बीमारी से भी मुक्ति प्राप्त हो सकती है | केतु को सर्प का धड़ भी माना गया है और माना जाता है कि जैसे सर के बिना केवल धड़ को कुछ भी दिखाई नहीं दे सकता उसी प्रकार केतु की दशा भी लोगों को दिग्भ्रमित कर सकती है |
मानव शरीर में केतु अग्नि तत्व का प्रतिनिधित्व करता है | कुछ Vedic Astrologer इसे नपुंसक ग्रह मानते हैं तो कुछ नर | इसका स्वभाव मंगल की भाँति उग्र माना जाता है तथा मंगल के क्षेत्र में जो कुछ भी आता है उन्हीं सबका प्रतिनिधित्व केतु भी करता है और “कुजवत केतु:” अर्थात कुज यानी मंगल के समान फल देता है | अश्विनी, मघा तथा मूल इन तीन नक्षत्रों का आधिपतित्व केतु को प्राप्त है | यह जातक की जन्मकिन्दाली में राहु के साथ मिलकर कालसर्प योग भी बनाता है | यदि किसी भाव में केतु स्वग्रही ग्रह के साथ स्थित हो तो उस भाव, उस ग्रह तथा उसके साथ स्थित अन्य ग्रहों के शुभाशुभत्व में वृद्धिकारक होता है | साथ ही यदि द्वादश भाव में केतु स्थित हो तो अपनी दशा में यह मोक्षकारक भी माना गया है | इसकी दशा सात वर्ष की होती है तथा राहु की ही भाँति इसकी विपरीत गति होती है और एक राशि से दूसरी राशि में जाने के लिए इसे 18 माह का समय लगता है |
केतु को प्रसन्न करने तथा उसके अशुभत्व को कम करने के लिए प्रायः Vedic Astrologer कुछ मन्त्रों के जाप का सुझाव देते हैं, जिनमें से कुछ यहाँ प्रस्तुत हैं…
वैदिक मन्त्र : ॐ केतुं कृण्वन्नकेतवे पेशो मर्या अपेशसे सुमुषद्भिरजायथा:
पौराणिक मन्त्र : पलाशपुष्पसंकाशं तारकाग्रहमस्तकम्, रौद्रं रौद्रात्मकं घोरं तं केतुं प्रणमाम्यहम्
तन्त्रोक्त मन्त्र : ॐ स्त्रां स्त्रीं स्त्रौं स: केतवे नम: अथवा – ॐ ह्रीं केतवे नम:
बीज मन्त्र : ॐ कें केतवे नमः
गायत्री मन्त्र : ॐ धूम्रवर्णाय विद्महे कपोतवाहनाय धीमहि तन्नो केतु: प्रचोदयात्
अथवा – ॐ अत्रवाय विद्महे कपोतवाहनाय धीमहि तन्नो केतु प्रचोदयात्
महाघोर केतु सभी का मंगल करे…