Rahu
पौराणिक सन्दर्भों में राहु को धोखेबाज़ों, विदेशी भूमि की ख़रीद फ़रोख्त करने वालों, ड्रग्स तथा विष विक्रेताओं, निष्ठाहीन तथा अनैतिक कृत्य करने वालों का प्रतीक माना जाता रहा है | बौद्ध धर्म में तो इसे कहते ही क्रोध का देवता हैं | किन्तु साथ ही ऐसी भी मान्यता है कि व्यक्तियों को शक्तिवान बनाने में तथा शत्रु को भी मित्र बनाने में सहायक होता है | राहु की कथा सबको ज्ञात ही है अतः उसकी पुनरावृत्ति से कोई लाभ नहीं |
इसे प्रायः बिना धड़ के सर्प के रूप में दिखाया जाता है | वैदिक ज्योतिष ग्रन्थों के अनुसार प्रत्येक दिन में एक भाग राहुकाल अवश्य होता है जो अशुभ माना जाता है | यह तमोगुणी, कृष्ण वर्ण तथा स्वाभाविक पापग्रह माना जाता है | माना जाता है कि जिस स्थान पर यह बैठता है उसकी प्रगति को रोकता है | यह सदा वक्री होता है तथा प्रत्येक राशि में इसके अंश कम होते जाते हैं | मिथुन राशि राहु की उच्च राशि होती है तथा धनु राशि में यह नीच का माना जाता है | कुम्भ में छह अंशों तक मूल त्रिकोण में रहता है | शुक्र तथा शनि के साथ इसकी मित्रता है, सूर्य, चन्द्र और मंगल इसके शत्रु ग्रह हैं तथा बुध और गुरु के साथ यह तटस्थ भाव में रहता है | एक राशि से दूसरी राशि में संचार करने में इसे 18 माह का समय लगता है | इसकी दशा 18 वर्ष की होती है | राहु और केतु को सूर्य और चन्द्रमा के परिक्रमा मार्गों को मध्य से विभाजित करने वाले दो बिन्दुओं के रूप में माना जाता है जो पृथिवी के सापेक्ष परस्पर एक दूसरे से विपरीत दिशा में 180 अंशों के कोण पर स्थित रहते हैं | साथ ही ये कोई खगोलीय पिण्ड नहीं हैं, अपितु इन्हें छाया ग्रह माना जाता है | आर्द्रा, स्वाति तथा शतभिषज नक्षत्रों का स्वामित्व राहु को प्राप्त है और नैऋत्य कोण में इसका निवास माना गया है |
राहु के अशुभ प्रभाव को कम करने के लिए तथा इसे प्रसन्न करने के लिए प्रायः भगवान् शिव की उपासना और महामृत्युंजय मन्त्र के जाप का सुझाव Vedic Astrologer देते हैं | इसके अतिरिक्त कुछ अन्य मन्त्रों के जाप का सुझाव भी दिया जाता है | प्रस्तुत हैं उन्हीं में से कुछ मन्त्र…
महामृत्युंजय मन्त्र : ॐ त्रयम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् | उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ||
वैदिक मन्त्र : ॐ कयानश्चित्रSआभुवदूती सदावृध: सखा कया शचिष्ठया वृता
पौराणिक मन्त्र : ॐ अर्धकायं महावीर्य चन्द्रादित्यविमर्दनम्, सिंहिकागर्भसंभूतं तं राहुं प्रणमाम्यहम्
तन्त्रोक्त मन्त्र : ॐ भ्रां भ्रीं भ्रौं स: राहवे नम: अथवा ॐ ह्रीं ह्रीं राहवे नम:
बीज मन्त्र : ॐ ऎं ह्रीं राहवे नम:
गायत्री मन्त्र : ॐ नीलवर्णायविद्महे सौंहिकेयाय धीमहि तन्नो राहु: प्रचोदयात्
अथवा ॐ शिरोरूपाय विद्महे अमृतेशाय धीमहि तन्नो राहु: प्रचोदयात्
राहु सभी के लिए शुभफलदायी रहे, यही कामना है…