Constellation – Nakshatras
ज्योतिष एक वेदांग
कुछ लोगों को संशय होता है कि ज्योतिष को आयुर्वेद के समान वेद तो नहीं माना जाता ? ज्योतिष वेद है भी नहीं, वेदों का अंग है – वेदांग | ज्योतिष से सम्बन्धित ज्ञान वेदों में निहित है | ऋग्वेद में लगभग 20 मन्त्र ज्योतिष के विषय में उपलब्ध होते हैं, यजुर्वेद में 45 मन्त्र हैं तो अथर्ववेद में 165 मन्त्र उपलब्ध होते हैं | इतना अवश्य है कि वैदिक काल में ज्योतिष का उपयोग फलकथन के उद्देश्य से नहीं होता था अपितु यज्ञों के लिए लिए मुहूर्त आदि के ज्ञान के लिए किया जाता था | इसीलिए उस समय नक्षत्रों का विशिष्ट महत्त्व था | साथ ही वेदों में जो नक्षत्रों, ग्रहों, राशियों तथा प्रकृति के पञ्चमहाभूतों से सम्बन्धित मन्त्र उपलब्ध होते हैं वे वास्तव में प्रार्थनामन्त्र हैं |
वैदिक ऋषि प्रकृति में निरन्तर हो रहे परिवर्तनों से प्रभावित होते थे और अनायास ही उनके मुख से ऋचाएँ प्रस्फुटित हो जाती थीं | ऋषियों की मान्यता थी और शिक्षा भी कि व्यक्ति के विचार, व्यक्ति की ऊर्जा, उसके कर्म तथा उसकी प्रार्थनाओं में इतनी सामर्थ्य है कि उनके फलस्वरूप वह स्वयं ही वर्तमान में सुखी रहकर एक सुखद भविष्य की भी नींव रख सकता है | इसका कारण सबसे बड़ा यही था कि उस समय तक मनुष्य की इच्छाओं आकाँक्षाओं में इतनी अधिक वृद्धि नहीं हुई थी | क्योंकि उस समय तक मनुष्य आध्यात्मिक और दार्शनिक स्तरों पर बहुत अधिक प्रगति कर चुका था | इसीलिए ज्योतिष का उपयोग केवल यागों के मुहूर्त आदि के निश्चय के लिए तथा ब्रह्माण्डीय गणित और काल निर्णय के लिए अधिक होता था | क्योंकि ज्योतिष के द्वारा मुहूर्त आदि पर विचार किया जाता था इसीलिए ज्योतिष छह वेदांगों में एक वेदांग माना जाता था और इसे वेदों का नेत्र कहा जाता था |
वेदों के सर्वांगीण अध्ययन के लिए छह अंग प्रकाश में आए, जिनमें प्रथम अंग शिक्षा – अर्थात ध्वनियों का उच्चारण | दूसरा अंग कल्प – यज्ञों के लिए विधिसूत्र – इनके अन्तर्गत श्रौतसूत्र, गृह्यसूत्र, धर्मसूत्र और शुल्बसूत्र आते हैं – वेदों द्वारा निर्दिष्ट कार्यों को समर्पण भाव से सम्पन्न करना इनका उद्देश्य था | तीसरा अंग है व्याकरण – वाक्य निर्माण को समझने के लिए सन्धि, समास, उपमा, विभक्ति आदि को समझने के लिए यह अंग प्रकाश में आया | चतुर्थ अंग निरुक्त का प्रयोग शब्दों के मूल भाव को समझने के लिए किया जाता था | पञ्चम अंग छन्द का उद्देश्य था मन्त्रों के गायन के लिए लय आदि का उचित ज्ञान | तथा छठा अन्तिम अंग था ज्योतिष – जिसके द्वारा विविध गणनाओं के माध्यम से आकाशीय पिण्डों जैसे सूर्य-चन्द्र-पृथिवी-नक्षत्र आदि की गति और स्थिति का ज्ञान करने का प्रयास किया जाता था | और इस प्रकार ज्योतिष “वेद” नहीं “वेदांग” कहलाता है |
जैसे जैसे मनुष्य भौतिक स्तर पर प्रगति करने लगा उसके दैनिक जीवन में व्यस्तताएँ और भाग दौड़ में भी वृद्धि होने लगी | साथ ही इतने श्रम के द्वारा जो कुछ उसने प्राप्त किया उसके खो जाने का भय तथा और अधिक प्राप्त करने की लालसा में भी वृद्धि होने लगी | तब पौराणिक काल में ज्योतिष की गणनाओं के आधार पर विचार करके भविष्यकथन भी किया जाना आरम्भ हो गया | किन्तु, इतना निश्चित हैं कि छठा वेदांग ज्योतिष अद्वैत का विज्ञान है और उसका उद्देश्य किसी भी प्रकार से मानव मात्र को भयभीत करना नहीं है अपितु उचित मार्गदर्शन करना है |