Constellation – Nakshatras
पौराणिक ग्रन्थों जैसे रामायण में नक्षत्र विषयक सन्दर्भ
वेदांग ज्योतिष के प्रतिनिधि ग्रन्थ दो वेदों से सम्बन्ध रखने वाले उपलब्ध होते हैं | एक याजुष् ज्योतिष – जिसका सम्बन्ध यजुर्वेद से है | दूसरा आर्च ज्योतिष – जिसका सम्बन्ध ऋग्वेद से है | इन दोनों ही ग्रन्थों में वैदिककालीन ज्योतिष का समग्र वर्णन उपलब्ध होता है | बाद में यज्ञ भाग के विविध विधानों के साथ साथ दैनिक जीवन में भी ज्योतिष का महत्त्व वैदिक काल में ही जनसामान्य को मान्य हो गया था | परवर्ती ब्राहमण और संहिता काल में तो अनेक विख्यात ज्योतिषाचार्यों का वर्णन तथा रचनाएँ हमें उपलब्ध होती ही हैं | जिनमें पाराशर, गर्ग, वाराहमिहिर, आदिभट्ट, ब्रह्मगुप्त, भास्कराचार्य तथा कमलाकर जैसे ज्योतिर्विदों के नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं | ज्योतिषीय गणना का मूलाधार वाराहमिहिर का सूर्य सिद्धान्त ही है |
परवर्ती साहित्य और इतिहास में यदि हम रामायण और महाभारत जैसे ग्रन्थों का अध्ययन करें तो यह तथ्य स्पष्ट रूप से सामने आता है कि उस काल में भी प्रत्येक आचार्य ज्योतिषाचार्य अवश्य होते थे | इन दोनों ही इतिहास ग्रन्थों में ज्योतिषीय आधार पर फल कथन यत्र तत्र बिखरे पड़े हैं |
भगवान् राम की जन्मपत्री बनाकर उनके भविष्य का फलकथन आचार्यों ने किया था | श्री राम का जन्म चैत्र शुक्ल नवमी को पुनर्वसु नक्षत्र और कर्क लग्न में हुआ था | उस समय सूर्य मेष में दशम भाव में, मंगल मकर में सप्तम में, शनि तुला में चतुर्थ में, गुरु कर्क में लग्न में, और शुक्र मीन का होकर नवम भाव में – इस प्रकार ये पाँच ग्रह अपनी अपनी उच्च राशियों में विराजमान थे | लग्न में गुरु के साथ चन्द्रमा भी था…
…….. चैत्रे नावमिके तिथौ ||
नक्षत्रेSदितिदैवत्ये सवोच्चसंस्थेषु पञ्चसु |
ग्रहेषु कर्कटे लग्ने वाक्पताविन्दुना सह ||… वा. रा. बालकाण्ड 18/8,9
भरत का जन्म पुष्य नक्षत्र और मीन लग्न में हुआ था | लक्षमण और शत्रुघ्न आश्लेषा नक्षत्र और करके लग्न में पैदा हुए थे | उस समय सूर्य भी अपनी उच्च राशि में विद्यमान थे |
पुण्ये जातस्तु भरतो मीनलग्ने प्रसन्नधी: |
सर्पे जातौ तु सौमित्री कुलीरेSभ्युदिते रवौ ||… वा. रा. बालकाण्ड 18/15
साथ ही यह भी कहा गया है कि ये चारों भाई दोनों भाद्रपद नक्षत्रों के चारों तारों के समान कान्तिमान थे (वा. रा. बालकाण्ड 18/16)
श्री राम व उनके तीनों भाइयों के विवाह का मुहूर्त बताते हुए महर्षि वशिष्ठ कहते हैं…
उत्तरे दिवसे ब्रह्मन् फल्गुनीभ्यां मनीषिण: |
वैवाहिकं प्रशंसन्ति भगो यत्र प्रजापतिः ||… वा रा. बालकाण्ड 72/13
अर्थात, आने वाले दो दिन दोनों फाल्गुनी नक्षत्रों से युक्त हैं | जिनके देवता प्रजापति भग हैं | विद्वानों ने इस नक्षत्र में किया गया वैवाहिक कर्म सबसे अधिक उत्तम माना है |
राम के राज्याभिषेक के लिए राजा दशरथ बहुत चिन्तित थे | क्योंकि ऋषियों ने कुछ इस प्रकार की भविष्यवाणियाँ की थीं जिनके अनुसार राज्याभिषेक में बाधा पड़ सकती थी | इसीलिए दशरथ चाहते थे कि भरत के ननिहाल से आने से पहले ही राम का राज्याभिषेक हो जाए तो अच्छा है (वा. रा. अयोध्याकाण्ड 4/18,25) इसी प्रकार अयोध्याकाण्ड ही 41वें सर्ग में राम के वनगमन के समय उत्पातकालिक ग्रह स्थिति का वर्णन भी देखने योग्य है | श्री राम जब अयोध्या से जा रहे थे उस समय छह ग्रह वक्री होकर एक ही स्थान पर स्थित थे |
त्रिशंकुर्लोहितांगश्च बृहस्पतिबुधावपि |
दारुणा: सोममभ्येत्य ग्रहा: सर्वे व्यवस्थिता: || वा. रा. अयोध्याकाण्ड 41/11
इसी प्रकार युद्धकाण्ड में रावण मरण के समय की ग्रहस्थिति भी दर्शनीय है | राम रावण युद्ध के समय की ग्रहस्थिति का कलात्मक वर्णन देखते ही बनता है | श्री राम रूपी चन्द्रमा को रावण रूपी राहु से ग्रस्त हुआ देखकर बुध से रहा नहीं गया और वह भी चन्द्रप्रिया रोहिणी नामक नक्षत्र पर जा बैठा | यह स्थिति प्रजा के लिए अहितकर थी | सूर्य की किरणें मन्द हो गई थीं | सूर्यदेव अत्यन्त प्रखर कबन्ध के चिह्न से युक्त धूमकेतु नामक उत्पात ग्रह से संसक्त दिखाई दे रहे थे | आकाश में इक्ष्वाकु वंश के नक्षत्र विशाखा पर – जिसके कि देवता इन्द्र और अग्नि हैं – मंगलदेव विराजमान थे (वा. रा. युद्धकाण्ड 102/32-35) यहाँ एक यह बात भी स्पष्ट दिखाई दे रही है कि उस समय किसी भी वंश का मुखिया जिस नक्षत्र में जन्म लेता होगा सम्भवतः वह नक्षत्र समस्त परिवार के लिए पूज्य हो जाता होगा | इसीलिए विशाखा नक्षत्र को इक्ष्वाकु वंश का नक्षत्र बताया गया है | ये सभी इस बात के ज्वलन्त प्रमाण हैं कि उस काल में ज्योतिष शास्त्र को परम प्रमाण माना जाता था |