Constellation – Nakshatras
महाभारत में नक्षत्र विषयक सन्दर्भ
रामायण के ही समान महाभारत में ज्योतिष विद्या के स्पष्ट प्रमाण उपलब्ध होते हैं | महाभारत का युद्ध आरम्भ होने से पूर्व ही समस्त ज्योतिषियों, सर्वतोभद्र चक्र के ज्ञाताओं, प्रश्न मर्मज्ञों और मुहूर्तविदों ने उस समय की ग्रह नक्षत्रों आदि की स्थितियों को देखते हुए भविष्यवाणी कर दी थी कि समस्त कौरव कुल तथा सृन्जय वंश के लोगों का बड़ा भारी संहार होने वाला है (उद्योगपर्व 48/98,99) | जिस दिन दोनों पक्ष युद्ध के लिए आगे बढे उस दिन चन्द्रमा मघा नक्षत्र पर था तथा आकाश में सात महाग्रह अग्नि के समान उद्दीप्त दिखाई दे रहे थे | सूर्यदेव भी उदयकाल में दो भागों में विभक्त दिखाई दे रहे थे (महाभारत भीष्मपर्व 17/2,3)
महाभारत के ही उद्योगपर्व में ग्रहों तथा नक्षत्रों के अशुभ योगों का विस्तार से वर्णन किया गया है | श्री कृष्ण जब कर्ण से भेंट करने जाते हैं तो कर्ण कहते हैं “शनि जैसा उग्र ग्रह रोहिणी नक्षत्र को पीड़ित कर रहा है, जो प्रजा के लिए बहुत अशुभ है | ज्येष्ठा नक्षत्र में स्थित मंगल वक्र होकर गोचर में अनुराधा नक्षत्र में संचार करने वाला है | यह स्थिति राजा के मित्रों के लिए अशुभ है | तथा महापात नामक ग्रह चित्रा नक्षत्र को पीड़ित कर रहा है, यह स्थिति स्वयं राजा के लिए शुभ नहीं है:
प्राजापत्यं हि नक्षत्रं ग्रहस्तीक्ष्णो महाद्युति: |
शनैश्चर: पीडयति पीडयन् प्राणिनोSधिकम् ||
कृत्वा चांगारको वक्रं ज्येष्ठायां मधुसूदन |
अनुराधां प्रार्थयते मैत्रं संगमयन्निव || (उद्योगपर्व 143/8-11)
साथ ही आगे और भी लिखा है कि चन्द्र भी अपनी राशि बदल चुका है | साथ ही सूर्य को भी राहु का ग्रहण लगने वाला है | यह सारी की सारी ही ग्रहस्थिति ऐसी है जो किसी अशुभ घटना की ओर संकेत करती है | भीष्मपर्व में भी ऐसी ही अनिष्टकारी ग्रहस्थिति का वर्णन है |
भीष्मपर्व के तृतीय अध्याय में व्यास जी कहते हैं कि राहु सूर्य के निकट आ रहा है | केतु चित्रा का अतिक्रमण करके स्वाति पर स्थित हो रहा है (इसका अभिप्राय यही रहा होगा कि राहु केतु उन्हीं अंशों पर थे जिन पर सूर्यदेव थे |) अत्यन्त भयंकर धूमकेतु पुष्य नक्षत्र को आक्रान्त करके वहीं स्थित हो रहा है | जो दोनों सेनाओं का भयंकर अमंगल करेंगे | मंगल वक्र होकर मघा पर, बृहस्पति श्रवण पर तथा सूर्यपुत्र शनि पूर्वा फाल्गुनी को पीड़ित कर रहे हैं | शुक्र पूर्वा भाद्रपद पर प्रकाशित हो रहा है और सब ओर घूम फिर कर परिघ नामक उपग्रह के साथ उत्तर भाद्रपद पर दृष्टि लगाए है | श्वेतकेतु नामक उपग्रह अग्नि के समान प्रज्वलित होकर ज्येष्ठा नक्षत्र पर स्थित है | चित्रा व स्वाति के मध्य में स्थित क्रूर ग्रह राहु सदा वक्री होकर रोहिणी व चन्द्र और सूर्य को पीड़ित कर रहा है तथा अत्यन्त प्रदीप्त होकर ध्रुव के बांयी ओर जा रहा है | यह स्थिति अत्यन्त ही अमंगलसूचक है | (चित्रा व स्वाति के मध्य स्थित होकर राहु सर्वतोभद्र चक्र के वेध के अनुसार कृत्तिका को पीड़ित करेगा) | ऐसे में युद्ध आदि के साथ भयंकर आँधी और तूफ़ान की भी सम्भावना रहती है |
मघा में स्थित होकर मंगल बार बार वक्री होकर बृहस्पति से युक्त श्रवण नक्षत्र को देख रहा है | इस सबका प्रभाव रेवती पर भी प्रतिकूल पड़ रहा है (भीष्मपर्व 3/11/19) इसी अध्याय में आगे (श्लोक 27,28) और भी लिखा है कि वर्षपर्यन्त एक ही राशि पर रहने वाले दो प्रकाशमान ग्रह बृहस्पति और शनि तिर्यग्वेध के द्वारा विशाखा के समीप पहुँच गए हैं | प्रायः पक्ष 14 से 16 दिनों के होते हैं, किन्तु इस समय तेरह दिन का ही पक्ष हो रहा है | और एक ही मास में एक ही दिन त्रयोदशी को चन्द्र और सूर्य का ग्रहण हो रहा है | यह स्थिति भयंकर वर्षा व उत्पातों की सूचक है | इसी अध्याय में आगे (श्लोक 31) यह भी बताया गया है कि अश्विनी से लेकर सभी नक्षत्रों को तीन भागों में बाँटने पर जो नौ नौ नक्षत्रों के तीन समुदाय होते हैं वे क्रमशः अश्वपति, गजपति तथा नरपति के छत्र कहलाते हैं | अर्थात अश्विनी, भरणी, कृत्तिका, रोहिणी, मृगशिरा, आर्द्रा, पुनर्वसु, पुष्य और आश्लेषा इन नौ नक्षत्रों का समूह अश्वपति के अन्तर्गत, मघा, पूर्वा फाल्गुनी, उत्तरा फाल्गुनी, हस्त, चित्रा, स्वाति, विशाखा, अनुराधा और ज्येष्ठा का वर्ग गजपति के अन्तर्गत, तथा मूल, पूर्वाषाढ़, उत्तराषाढ़, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषज, पूर्वा भाद्रपद, उत्तर भाद्रपद और रेवती नक्षत्रों का समूह नरपति के छत्र के अन्तर्गत आता है | ये सब अथवा इनमें से कोई भी जब पापग्रहों से आक्रान्त होते हैं तो क्षत्रियों के विनाश के सूचक होते हैं और इन्हें नक्षत्र-नक्षत्र कहा जाता है | इन तीनों समुदायों अथवा सम्पूर्ण नक्षत्र-नक्षत्रों में यदि शीर्ष स्थान पर वेध हो तो वह ग्रह महान उत्पातकारक होगा |
अस्तु, हमारे प्राचीन इतिहास ग्रन्थों में ज्योतिष का इतना विशद विवेचन यही इंगित करता है कि उस समय न केवल धर्माचार्य, अपितु जनसाधारण भी ज्योतिष में रूचि और ज्योतिष का ज्ञान रखते थे | और ज्योतिष का प्रयोग केवल मनुष्यों के लिए फलकथन तक ही सीमित नहीं था, वरन युद्ध, वर्षा, आँधी, तूफ़ान अदि के विषय में मनुष्यों को पहले से ही चेतावनी देने के लिए भी ज्योतिष का प्रयोग किया जाता था | और बाढ़ या सूखे आदि से होने वाली तबाही से काफी हद तक बचने का प्रयास किया जाता था और साथ ही शान्ति विधान आदि के लिए उपयोगी पूजा पाठ आदि का विधान भी बताया जाता था | महाभारत के ही अनुशासन पर्व के चौसठवें अध्याय में समस्त नक्षत्रों की सूची दी गई है तथा यह बताया गया है कि किस नक्षत्र में दानादि करने से किस प्रकार का पुण्य प्राप्त होता है | भीष्मपर्व में उत्तरायण और दक्षिणायन में मृत्यु के फल बताए गए हैं | सत्ताईस नक्षत्रों के सत्ताईस देवता तथा उन देवताओं के स्वरूप और स्वभाव के अनुसार उन पर प्रकाश डाला गया है | साथ ही एक तथ्य और भी स्पष्ट हो जाता है कि उस समय ग्रहों के साथ साथ नक्षत्रों का सबसे अधिक महत्त्व था | या यों कहिये कि उस समय ज्योतिष नक्षत्र प्रधान था |