Shree Krishna Janmashtami

Shree Krishna Janmashtami

Shree Krishna Janmashtami

श्री कृष्ण जन्माष्टमी

कल से देश भर में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पावन और उल्लासपूर्ण पर्व की धूम मची हुई है | सभी को भगवान श्री कृष्ण के जन्मदिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ |

वास्तव में श्रीकृष्ण का व्यक्तित्व इतना भव्य है कि न केवल भारतीय इतिहास के लिये, वरन विश्व के इतिहास के लिये भी अलौकिक एवम् आकर्षक है और सदा रहेगा | उन्होंने विश्व के मानव मात्र के कल्याण के लिये अपने जन्म से लेकर निर्वाण पर्यन्त अपनी सरस एवं मोहक लीलाओं तथा परम पावन उपदेशों से अन्तः एवं बाह्य दृष्टि द्वारा जो अमूल्य शिक्षण मानव मात्र को दिया वह किसी वाणी अथवा लेखनी की वर्णनीय शक्ति एवं मन की कल्पना की सीमा में नहीं आ सकता |

श्री कृष्ण षोडश कला सम्पन्न पूर्णावतार होने के कारण “कृष्णस्तु भगवान स्वयम्” हैं | उनका चरित्र ऐसा है कि हर कोई उनकी ओर खिंचा चला आता है | कृष्ण एक ऐसा विराट स्वरूप हैं कि किसी को उनका बालरूप पसन्द आता है तो कोई उन्हें आराध्य के रूप में देखता है तो कोई सखा के रूप में | किसी को उनका मोर मुकुट और पीताम्बरधारी, यमुना के तट पर कदम्ब वृक्ष के नीचे वंशी बजाता हुआ प्राणप्रिया राधा के साथ प्रेम रचाता प्रेमी का रूप भाता है तो कोई उनके महाभारत के पराक्रमी और रणनीति के ज्ञाता योद्धा के रूप की सराहना करता है और उन्हें युगपुरुष मानता है | वास्तव में श्रीकृष्ण युगप्रवर्तक पूर्ण पुरूष हैं । वास्तव में श्रीकृष्ण एक ऐसे प्रेममय, दयामय, दृढ़व्रती, धर्मात्मा, नीतिज्ञ, समाजवादी दार्शनिक, विचारक, राजनीतिज्ञ, लोकहितैषी, न्यायवान, क्षमावान, निर्भय, निरहंकार, तपस्वी एवं निष्काम कर्मयोगी हैं जो लौकिक मानवी शक्ति से कार्य करते हुए भी अलौकिक चरित्र के महामानव हैं…

कहने का अर्थ यह कि कृष्ण के चरित्र में एक आदर्श पुत्र, आदर्श सखा, आदर्श प्रेमी और पति, आदर्श मित्र, निष्पक्ष और निष्कपट व्यवहार करने वाले उत्कृष्ट राजनीतिक कुशलता वाले एक आदर्श राजनीतिज्ञ, आदर्श योद्धा, आदर्श क्रान्तिकारी, उच्च कोटि के संगीतज्ञ इत्यादि वे सभी गुण दीख पड़ते हैं जो उन्हें पूर्ण पुरुष बनाते हैं | कोई भी साधारण मानव श्रीकृष्ण की तरह समाज की प्रत्येक स्थिति को छूकर, सबका प्रिय होकर राष्ट्रोद्धारक बन सकता है |

इसी अवसर पर प्रस्तुत है श्री कृष्णाष्टकम्…

भजे व्रजैकमण्डनं समस्तपापखण्डनम्, स्वभक्तचित्तरंजनं सदैव नन्दनन्दनम् |

सुपिच्छगुच्छमस्तकं सुनादवेणुहस्तकम्, अनंगरंगसागरं नमामि कृष्णनागरम् ||

मनोजगर्वमोचनं विशाललोललोचनम्, विधूतगोपशोचनं नमामि पद्मलोचनम् |

करारविन्दभूधरं स्मितावलोकसुन्दरम्, महेन्द्रमानदारणं नमामि कृष्णवारणम् ||

कदम्बसूनकुण्डलं सुचारुगण्डमण्डलम्, व्रजांगनैकवल्लभं नमामि कृष्णदुर्लभम् |

यशोदया समोदया सगोपया सनन्दया, युतं सुखैकदायकं नमामि गोपनायकम् ||

सदैव पादपंकजं मदीयमानसे निजम्, दधानमुक्तमालकं नमामि नन्दबालकम् |

समस्तदोषशोषणं समस्तलोकपोषणम्, समस्तगोपमानसं नमामि नन्दलालसम् ||

भुवो भरावतारकं भवाब्धिकर्णधारकम्, यशोमतीकिशोरकं नमामि चित्तचोरकम् |

दृगन्तकान्तभंगिनं सदा सदालिसंगिनम्, दिने दिने नवं नवं नमामि नन्दसम्भवम् ||

गुणाकरं सुखाकरं कृपाकरं कृपापरम्, सुरद्द्विषन्निकन्दनं नमामि गोपनन्दनम् |

नवीनगोपनागरं नवीनकेलिलम्पटम्, नमामि मेघसुन्दरं तडित्प्रभालसत्पटम् ||

समस्तगोपनन्दनं हृदम्बुजैकमोदनम्, नमामि कुंजमध्यगं प्रसन्नभानुशोभनम् |

निकामकामदायकं दृगन्तचारुसायकम्, रसालवेणुगायकं नमामि कुंजनायकम् ||

विदग्धगोपिकामनोमनोज्ञतल्पशायिनम्, नमामि कुंजकानने प्रवृद्धवन्हिपायिनम् |

किशोरकान्तिरंजितं दृगंजनं सुशोभितम्, गजेन्द्रमोक्षकारिणं नमामि श्रीविहारिणम् ||

यदा तदा यथा तथा तथैव कृष्णसत्कथा, मया सदैव गीयतां तथा कृपा विधीयताम् |

प्रमाणिकाष्टकद्वयं जपत्यधीत्य यः पुमान्, भवेत्स नन्दनन्दने भवे भवे सुभक्तिमान् ||

भाव है कि बृज भूमि के जो एकमात्र आभूषण हैं, समस्त पापों को जो नष्ट कर देते हैं, अपने भक्तों को जो आनन्दित करते हैं, मस्तक पर मोर मुकुट और हाथों में सुरीली वंशी धारण करते हैं, जो काम कला के सागर हैं और कामदेव का मान मर्दन करने वाले हैं, सुन्दर विशाल नेत्रों वाले, ब्रज गोपों का शोक हरण करने वाले, कर कमलों में जिन्होंने गिरिराज को धारण किया था, जिनिकी चितवन मनोहर है, जिन्होंने देवराज इन्द्र का भी मान मर्दन कर दिया था, जिनके कानों में कदम्ब पुष्पों के कुण्डल शोभायमान होते हैं, जो बृजबालाओं के एकमात्र आधार हैं, जन जन के मनरूपी सरोवर में जिनके चरणकमल विराजमान रहते हैं, अत्यन्त सुन्दर अलकों वाले, जिन्होंने पृथिवी का भार कम करने का संकल्प लिया हुआ है और जो संसार सागर के कर्णधार हैं, जिनका कटाक्ष अत्यन्त कमनीय है, नित्य नूतन लीला जो करते हैं, जिन्होंने बिजली जैसी आभा से युक्त पीताम्बर धारण किया हुआ है, जो दैदीप्यमान सूर्य के समान शोभायमान हैं और समस्त कामनाओं को पूर्ण करते हैं, सुमधुर वेणुवादन करते जो गान करते हैं, जो कुंजवन में बढ़ी हुई दावाग्नि का पान कर जाते हैं, ऐसे नन्द नन्दन को हम भजन करते हुए नमन करते हैं | हम जहाँ भी और जिस भी परिस्थिति में रहें श्री कृष्ण की कथाओं का पाठ हम निरन्तर करते रहें…

एक बार पुनः श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ…