Constellation – Nakshatras

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रेवती

ज्योतिष में मुहूर्त गणना, प्रश्न तथा अन्य भी आवश्यक ज्योतिषीय गणनाओं के लिए प्रयुक्त किये जाने वाले पञ्चांग के आवश्यक अंग नक्षत्रों के नामों की व्युत्पत्ति और उनके अर्थ तथा पर्यायवाची शब्दों के विषय में हम बात कर रहे हैं | इस क्रम में अब तक अश्विनी, भरणी, कृत्तिका, रोहिणी, मृगशिर, आर्द्रा, पुनर्वसु, पुष्य, आश्लेषा, मघा, दोनों फाल्गुनी, हस्त, चित्रा, स्वाति, विशाखा, अनुराधा, ज्येष्ठा, मूल, पूर्वाषाढ़, उत्तराषाढ़, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषज, पूर्वा भाद्रपद और उत्तराभाद्रपद नक्षत्रों के विषय में हम बात कर चुके हैं | आज चर्चा रेवती नक्षत्र के विषय में |

रेवती नक्षत्र में 32 तारे होते हैं | भारतीय वैदिक ज्योतिष  की गणनाओं के लिये

रेवती
रेवती

महत्वपूर्ण माने जाने वाले 27 नक्षत्रों में से रेवती को 27वां तथा अन्तिम नक्षत्र माना जाता है | साथ ही इसी नक्षत्र के साथ पंचकों की भी समाप्ति हो जाती है | रेवती का शाब्दिक अर्थ है धनवान अथवा धनी और इसी के अनुसार Astrologers इस नक्षत्र को धन सम्पदा की प्राप्ति तथा सुखमय जीवन के साथ जोड़ कर देखते हैं | पानी में तैरती हुई एक मछली को रेवती नक्षत्र के प्रतीक चिन्ह के रूप में माना जाता है | कुछ लोग मानते हैं कि मछली का जल में तैरना उस आत्मा का प्रतीक है तो भवसागर में अनेकों तूफ़ानों को झेलते हुए निरन्तर आगे बढ़ने का तथा मोक्ष का मार्ग ढूँढ़ रही है | इस मान्यता के पीछे सम्भवतः एक कारण यह भी हो सकता है कि रेवती नक्षत्र का सम्बन्ध मीन राशि से है, और मीन राशि राशि चक्र की अन्तिम राशि होने के कारण मृत्यु के पश्चात के जीवन तथा मोक्ष की यात्रा की प्रतीक भी मानी जाती है | साथ ही एक मान्यता यह भी है कि जिस प्रकार मछली जल में ही प्रसन्न रहती है तथा उसके चारों अथाह जल रहता है उसी प्रकार रेवती नक्षत्र के जातक इस संसार में सदा सुखी रहते हैं और समस्त प्रकार की सुख सुविधाओं का उपभोग करते हैं |

रेवती नक्षत्र के सम्बन्ध में श्रीमद्देवीभागवत में एक प्रसंग उपलब्ध होता है कि ऋत्वाक मुनि का पुत्र रेवती नक्षत्र के अन्तिम चरण में हुआ था – जिसे ज्योतिषी गण्डान्त मानते हैं | गण्डान्त में जन्म होने के कारण वह अत्यन्त दुराचारी बन गया था | ऋषि ने इसका सारा दोष रेवती नक्षत्र को दिया और उसे अपने श्राप से नक्षत्र मण्डल से नीचे गिरा दिया | जिस पर्वत पर रेवती का पतन हुआ उसे ऋत्विक अथवा रेवतक पर्वत कहा जाने लगा तथा उस पर्वत का सौन्दर्य कई गुना बढ़ गया | जिससे प्रभावित होकर प्रमुच मुनि ने अपनी रूपवती दत्तक पुत्री का नाम भी रेवती रख दिया | उसके विवाहयोग्य होने पर स्वयंभुव मनु के वंशज राजा दुर्दम ने उसके साथ विवाह की इच्छा प्रकट की तब रेवती ने कहा कि ठीक है, मैं विवाह के लिए तैयार हूँ, लेकिन अपने नाम वाले रेवती नक्षत्र में ही मैं विवाह संस्कार कराना चाहती हूँ | मुनि प्रमुच जानते थे कि रेवती को तो अब नक्षत्र मण्डल में कोई स्थान प्राप्त है नहीं तो उस नक्षत्र में विवाह कैसे सम्पन्न हो सकता है ? तब रेवती ने अपने पिता से कहा कि यदि एक ऋषि ने अपने क्रोधवश अकारण ही रेवती को पदच्युत कर दिया तो आप भी उतने ही महान ऋषि हैं, आप क्या उसे फिर से उसका स्थान नहीं दिला सकते ? तब प्रमुच ऋषि ने रेवती को फिर से सोममार्ग में उसका स्थान वापस दिलाया | इस प्रकार रेवती नक्षत्र इस बात का भी प्रतीक माना जाता है कि यदि किसी कारण वश किसी व्यक्ति का सब कुछ नष्ट हो भी जाए तो भी वह गुरु कृपा से सब कुछ पुनः प्राप्त कर सकता है |

रेवती का देवता पूषा को माना जाता है और पूषा आत्मा, प्रकाश तथा जीवनी शक्ति के कारक सूर्य का ही एक नाम है | साथ ही पूषा समृद्धि का देवता भी माना जाता है | सूर्य संचार प्रणाली के भी द्योतक माना जाता है | इस प्रकार ज्योतिषियों की यह मान्यता भी दृढ़ हो जाती है कि जो व्यक्ति रेवती नक्षत्र के प्रभाव में होते हैं वे धनवान, उदार तथा आधुनिक समय में मीडिया आदि से सम्बन्धित किसी कार्य में संलग्न हो सकते हैं |

भगवान श्री कृष्ण के बड़े भाई बलराम की पत्नी का नाम रेवती था | गाय के लिए तथा नींबू के वृक्ष के लिए भी रेवती शब्द का प्रयोग किया जाता है | माना जाता है कि शनि की उत्पत्ति भी रेवती के गर्भ से हुई थी और इसीलिए शनि का एक नाम “रेवतीभव” भी है | स्पष्ट करना, प्रदर्शन करना, चमकना, आनन्दोत्सव मनाना तथा सौन्दर्य आदि के लिए भी इस शब्द का प्रयोग किया जाता है | अन्य नाम हैं अन्त्य – क्योंकि नक्षत्र मण्डल का अन्तिम नक्षत्र होता है | उदार पीड़ा के निवारण के लिए किसी विशेष वृक्ष की मूल का उपयोग किया जाता है – उसे भी रेवती कहा जाता है | आरोह अर्थात ऊपर चढ़ने के क्रम में सबसे अन्तिम संख्या के लिए भी इस शब्द का प्रयोग किया जाता है | अगस्त सितम्बर के महीनों में यह नक्षत्र आता है |