Constellation – Nakshatras

Constellation – Nakshatras

Constellation – Nakshatras

नक्षत्रों के तारकसमूह, देवता, स्वामी ग्रह, संज्ञा तथा विभिन्न राशियों में उनका प्रस्तार 

       पिछले लेख में बात कर रहे थे कि 27 नक्षत्रों में प्रत्येक नक्षत्र में कितने तारे (Stars) होते हैं, प्रत्येक नक्षत्र के देवता (Deity) तथा स्वामी अथवा अधिपति ग्रह (Lordship) कौन हैं कौन हैं, प्रत्येक नक्षत्र को क्या संज्ञा दी गई है | Astrologers नक्षत्रों की संज्ञा से उनकी प्रकृति का भी बहुत कुछ अनुमाना लगा लेते हैं | हम प्रयास कर रहे थे यह बताने का कि विभिन्न राशियों में कितने अंशों तक किस नक्षत्र का प्रस्तार होता है | इस क्रम में अश्विनी नक्षत्र से लेकर आश्लेषा नक्षत्रों के विषय में हम बात कर चुके हैं | आज उससे आगे…

मघा : इस नक्षत्र में भी पाँच तारे होते हैं | इसका देवता भग को तथा स्वामी ग्रह सूर्य को माना जाता है | इसकी संज्ञा उग्र है और सिंह राशि के आरम्भ से लेकर 13°20’ अंशों तक इसका विस्तार होता है |

पूर्वा फाल्गुनी : इस नक्षत्र में दो तारे होते हैं | इसका देवता है अर्यमा तथा शुक्र इसका अधिपति ग्रह है | इसकी संज्ञा भी उग्र है और इसका प्रस्तार सिंह राशि में 13°20’ से लेकर 26°40’ अंशों तक होता है |

उत्तर फाल्गुनी : इस नक्षत्र में भी दो ही तारे होते हैं | इसका देवता रवि (सूर्य का ही एक रूप) को माना गया है तथा सूर्य को इसका स्वामित्व प्राप्त है | ध्रुव संज्ञक यह नक्षत्र सिंह राशि में 26°40’ से लेकर 30° अंशों तक तथा कन्या में शून्य से दस अंशों तक रहता है |

हस्त : पाँच तारों से युक्त इस नक्षत्र के देवता त्वष्टा को तथा अधिपति ग्रह चन्द्र को माना गया है | लघु प्रकृति के इस नक्षत्र का विस्तार कन्या राशि में दस अंशों से लेकर 23°20’ अंशों तक रहता है |

चित्रा : इस नक्षत्र में चित्रा नाम का केवल एक ही तारा होता है | इसका देवता वायु को माना गया है और मंगल को इसका स्वामित्व प्राप्त है | मृदु संज्ञा वाले इस नक्षत्र का प्रस्तार कन्या राशि में 23°20’ से लेकर 30° अंशों तक तथा तुला राशि में आरम्भ से लेकर 6°40’ अंशों तक रहता है |

स्वाति : इस नक्षत्र में भी एक ही तारा होता है | इन्द्राग्नि को इसका देवता तथा राहु को इसका अधिपति ग्रह माना गया है | इसकी संज्ञा चर है तथा तुला राशि में इसका विस्तार 6°40’ से लेकर बीस अंशों तक होता है |

विशाखा : इस नक्षत्र में चार तारे होते हैं | इसका देवता मित्र है तथा अधिपति ग्रह है गुरु | मृदुतीक्ष्ण संज्ञा वाला यह नक्षत्र तुला राशि में 6°40’ से लेकर 20°30’ अंशों तक रहता है और वृश्चिक राशि में आरम्भ से लेकर 3°20 अंशों तक रहता है |

अनुराधा : इस नक्षत्र में तीन तारे होते हैं | इसका देवता है इन्द्र तथा अधिपति ग्रह है शनि | मृदु संज्ञा वाला यह नक्षत्र वृश्चिक राशि में 3°20’ अंश से लेकर 16°40’ अंशों तक विस्तार पाता है |

ज्येष्ठा : इस नक्षत्र में भी तीन ही तारे होते हैं | नैऋति इसका देवता माना जाता है तथा बुध को इसका अधिपतित्व प्राप्त है | तीक्ष्ण संज्ञा वाले इस नक्षत्र का प्रस्तार वृश्चिक राशि में 16°40’ से लेकर अन्त तक यानी तीस अंशों तक रहता है |

मूल : इस नक्षत्र में 11 तारे एक मूल यानी वृक्ष की जड़ के रूप में विद्यमान होते हैं | इसका देवता है जल तथा अधिपति ग्रह है केतु | इसकी संज्ञा है तीक्ष्ण तथा धनु राशि में आरम्भ से लेकर 13°20’ अंशों तक इसका प्रस्तार होता है |

पूर्वाषाढ़ : इसमें चार तारे होते हैं | इसके देवता हैं विश्वेदेव तथा अधिपति ग्रह है शुक्र | इसकी संज्ञा है उग्र तथा यह धनु राशि में 13°20’ से 26°40’ तक विद्यमान रहता है |

उत्तराषाढ़ : इसमें भी चार तारे होते हैं | ब्रह्मा इसके देवता हैं तथा सूर्य इसका अधिपति ग्रह है | ध्रुव संज्ञा वाला यह नक्षत्र धनु राशि में 26°40’ अंशों से लेकर राशि के अन्त तक और उसके बाद मकर राशि के आरम्भ से लेकर दस अंशों तक रहता है |

श्रवण : इसमें तीन तारे होते हैं | विष्णु इसके देवता हैं तथा चन्द्रमा इसका अधिपति ग्रह है | चर संज्ञक यह नक्षत्र मकर राशि में दस अंशों से लेकर 23°20’ अंशों तक विस्तार पाता है |

धनिष्ठा : इस नक्षत्र में चार तारे होते हैं | वसु इसके देवता तथा मंगल इसका अधिपति ग्रह है | इसकी संज्ञा भी चर है तथा मकर राशि में 23°20’ अंशों से लेकर राशि के अन्त तक और कुम्भ राशि में आरम्भ से लेकर 6°40’ अंशों तक वियमान रहता है |

शतभिषज : नाम से ही स्पष्ट है – इस नक्षत्र में सबसे अधिक सौ तारे विद्यमान होते हैं | वरुण को इसका देवता माना गया है तथा राहु को इसका स्वामित्व प्राप्त है | इसकी संज्ञा भी चर है और कुम्भ राशि में इसका प्रस्तार 6°40’ अंश से लेकर बीस अंशों तक रहता है |

पूर्वा भाद्रपद : इस नक्षत्र में दो तारे होते हैं | अजापद को इसका देवता माना जाता है तथा गुरु इसका स्वामी ग्रह माना जाता है | इसकी संज्ञा उग्र है तथा इसका प्रस्तार कुम्भ राशि में बीस अंशों से लेकर राशि के अन्त तक और मीन राशि में उसके आरम्भ से लेकर 3°20’ अंशों तक रहता है |

उत्तर भाद्रपद : इस नक्षत्र में पाँच तारे होते हैं | अहिर्बुन्ध्य इसका देवता है और शनि इसका स्वामी ग्रह है | इसकी संज्ञा है ध्रुव तथा मीन राशि में इसका विस्तार 3°20’ अंश से लेकर 16°40’ अंशों तक रहता है |

रेवती : बतीस तारों के समूह से युक्त इस नक्षत्र का देवता पूषा को माना गया है तथा बुध को इसका स्वामित्व प्राप्त है | इसकी संज्ञा है मृदु और मीन राशि में 16°40’ अंशों से लेकर राशि के अन्त तक यह विद्यमान रहता है |