Constellation – Nakshatras

Constellation – Nakshatras

Constellation – Nakshatras

नक्षत्रों के गण

पिछले अध्याय में हमने नक्षत्रों की योनियों पर चर्चा की थी | विवाह के लिए कुण्डली मिलान करते समय पारम्परिक रूप से अष्टकूट गुणों का मिलान करने की प्रक्रिया में नाड़ी और योनि के साथ ही नक्षत्रों के गणों का मिलान भी किया जाता है | इस विषय पर विस्तार से चर्चा “विवाह प्रकरण” में करेंगे | अभी बात करते हैं 27 नक्षत्रों को किस प्रकार तीन गणों में विभक्त किया गया है |

सामान्य रूप से समूह के लिए, संख्याओं के लिए (गण से ही गणित शब्द बना है), वर्ग विशेष के लिए गण शब्द का प्रयोग किया जाता है | सभी 27 नक्षत्र तीन गणों के अन्तर्गत आते हैं – ये तीन गण हैं – देव, मनुष्य और राक्षस | इन गणों के माध्यम से भी जातक के गुण स्वभाव का कुछ भान हो जाता है | अर्थात नक्षत्रों के गुण, धर्म, प्रकृति के आधार पर 27 नक्षत्रों का तीन समूहों में विभाजन किया गया है और सारे 27 नक्षत्रों में प्रत्येक गण में नौ नौ नक्षत्र आते हैं |

देव गण : सर्वविदित है कि स्वर्ग में देवताओं का राज्य माना जाता है | ऊर्ध्व लोक स्वर्ग लोक कहलाते हैं | देव वास्तव में हैं क्या ? “सुन्दरो दान शीलश्च मतिमान् सरल: सदा | अल्पभोगी महाप्राज्ञतरो देवगणे भवेत् ||” अर्थात जो व्यक्ति धर्म (कर्तव्य कर्म) का पालन करता है, दान (दूसरों की सहायता) करता है, बुद्धिमान है, सरलचित्त (दूसरों के प्रति दया और करुणा का भाव रखने वाला) है, अल्पभोगी अर्थात कम में भी सन्तुष्ट हो जाता है, बहुत अधिक विद्वान् है वह व्यक्ति देवगण के अन्तर्गत आता है | ऐसे व्यक्ति सदा सत्य का आचरण करते हैं | किसी को कष्ट नहीं पहुँचा सकते | अश्विनी, मृगशिरा, पुर्नवसु, पुष्‍य, हस्‍त, स्‍वाति, अनुराधा, श्रवण तथा रेवती नक्षत्र नक्षत्र देवगण के अन्तर्गत आते हैं | वास्तव में तो स्वर्ग लोक तथा उसमें निवास करने वाले देव और कोई नहीं बल्कि साधारण मानव ही हैं | सत्कर्म करने वाले मनुष्य देव कहलाने के अधिकारी होते हैं और इसी पृथिवी के जिस भी भाग में ऐसे सदाचारी मनुष्य निवास करते हैं वह भाग स्वयं ही स्वर्ग कहलाने लगता है |

मनुष्य गण : ब्रह्माण्ड के मध्य लोक पृथिवी अथवा मनुष्य लोक अथवा भूर्लोक कहलाता है | मानवमात्र का निवास स्थल भू लोक ही है | मनुष्यों में भावनाओं की प्रधानता होती है | उनके जीवन की अपनी समस्याएँ होती हैं और उनके समाधान भी होते हैं, उनके अपने उत्तरदायित्व तथा अधिकार होते हैं | अपने सुख और दुःख होते हैं | इस प्रकार मानव मात्र सुख दुःख, समस्याओं तथा उत्तरदायित्वों आदि के बन्धनों में बंधा होता है | यही कारण है कि समस्याओं से त्रस्त होता है तथा आनन्द के क्षणों में झूम उठता है | “मानी धनी विशालाक्षो लक्ष्यवेधी धनुर्धर: | गौर: पौरजन: ग्राही जायते मानवे गणे ||” मान करने वाला अर्थात आत्मसम्मान से युक्त, धनवान, विशाल नेत्र वाला, लक्ष्य का वेध करने वाला अर्थात अपने कार्यों में सफलता प्राप्त करने वाला, धनुर्विद्या में कुशल अर्थात लक्ष्य के प्रति एकाग्रचित्त, गौरवर्ण, पुर अर्थात नगरवासियों के मध्य निवास करने वाला मनुष्य का गुण और स्वभाव होता है | भरणी, रोहिणी, आर्द्रा, दोनों फाल्गुनी, दोनों आषाढ़ तथा दोनों भाद्रपद ये नौ नक्षत्र इस गण के अन्तर्गत आते हैं |

राक्षस गण : ब्रह्माण्ड का सबसे अधोभाग पाताल अथवा अधोलोक कहलाता है | अधम शब्द की निष्पत्ति अध: से ही हुई है | माना जाता है कि इन अधम लोकों में राक्षसों का वास होता है | “उन्मादी भीषणाकार: सर्वदा कलहप्रिय: | पुरुषो दुस्सहं ब्रूते प्रमेही राक्षसे गणे ||” उन्मादी – बहुत शीघ्र उत्तेजित होने वाला, क्लेश करने वाला, दुःसह (जिसकी उपस्थिति अन्य व्यक्तियों के लिए असहनीय हो) तथा प्रायः प्रमेह नामक रोग से पीड़ित रहना इस गण में उत्पन्न जातकों की प्रकृति होती है | अश्लेषा, विशाखा, कृत्तिका, चित्रा, मघा, ज्येष्ठा, मूल, धनिष्ठा, शतभिषज नक्षत्र इस गण के अन्तर्गत रखे गए हैं |

विशेष ; इसका अर्थ यह कदापि नहीं हो गया कि देवताओं में राक्षसों अथवा मानवों के गुण नहीं हो सकते या मानवों में शेष दोनों के गुण नहीं हो सकते या राक्षसों में देवों और मनुष्यों के गुण नहीं हो सकते | यदि कोई देवतुल्य व्यक्ति भी अनुचित कर्म करेगा तो उसे राक्षसों से भी अधिक निम्नस्तर का माना जाएगा तथा जिस स्थान पर उसका निवास होगा वह स्थान निश्चित रूप से नरकतुल्य कहलाएगा | इसी प्रकार यदि कोई राक्षस गण का व्यक्ति सदाचार का पालन करता है तो वह देवों के ही समान सम्मान का अधिकारी है तथा जहाँ वह निवास करता है वह स्थान निश्चित रूप से स्वर्ग के समान आनन्दपूर्ण हो जाता है | इस प्रकार प्रत्येक मनुष्य में ये तीनों ही गुण विद्यमान रहते हैं | इस प्रकार केवल गणों के आधार पर किसी जातक के रूप गुण स्वभाव का निश्चय नहीं किया जा सकता | किसी व्यक्ति की कुण्डली का निरीक्षण करते समय विस्तार के साथ ज्योतिष के अन्य सूत्रों के आधार भी उसका अध्ययन किया जाना चाहिए और तब ही किसी निष्कर्ष पर पहुँचना चाहिए | Blind Prediction अर्थ का अनर्थ भी कर सकती है |