Aashaadhi Ekadashi

Aashaadhi Ekadashi

Aashaadhi Ekadashi

देवशयनी एकादशी, आषाढ़ी एकादशी, विष्णु एकादशी, पद्मनाभा एकादशी

हिन्दू धर्म में एकादशी तिथि का विशेष महत्त्व है | प्रत्येक वर्ष चौबीस एकादशी होती है, और अधिमास हो जाने पर ये छब्बीस हो जाती हैं | इनमें से आषाढ़ शुक्ल एकादशी को देवशयनी एकादशी के नाम से जाना जाता है | साथ ही आषाढ़ मास में होने के कारण इसे आषाढ़ी एकादशी भी कहते हैं | इसी दिन से पंढरपुर यात्रा संपन्न होती है और पंढरपुर में भगवान श्री कृष्ण के ही एक रूप विट्ठल महाराज के मंदिर में इस दिन विशेष पूजा अर्चना की जाती है | इस एकादशी को पद्मनाभा एकादशी भी कहा जाता है | तथा उसके लगभग चार माह बाद सूर्य के तुला राशि में आ जाने पर आने वाली कार्तिक शुक्ल एकादशी देव प्रबोधिनी या देवोत्थान एकादशी के नाम से जानी जाती है | इस वर्ष शुक्रवार 12 जुलाई को 25:03 (अर्द्धरात्र्योत्तर यानी बारह जुलाई को एक बजकर तीन मिनट) के लगभग एकादशी तिथि (देवशयनी एकादशी) का आगमन होगा और 13 जुलाई को रात्रि बारह बजकर तीस मिनट के लगभग द्वादशी तिथि का आगमन हो जाएगा, अतः एकादशी का उपवास बारह तारीख को ही रखा जाएगा |

“आषाढ़ शुक्लपक्षे तु शयनी हरिवासर: |

दीपदानेन पलाशपत्रे भुक्त्याव्रतेन च

चातुर्मास्यं नयन्तीह ते नरा मम वल्लभा: ||” – पद्मपुराण उत्तरखण्ड / 54/24, 32

मान्यता है कि इन चार महीनों में – जिन्हें चातुर्मास कीं संज्ञा दी गई है – भगवान विष्णु क्षीर सागर में शयन हेतु प्रस्थान कर जाते हैं | भगवान विष्णु की इस निद्रा को योग निद्रा भी कहा जाता है | इस अवधि में यज्ञोपवीत, विवाह, गृह प्रवेश आदि संस्कार वर्जित होते हैं |

भारतीय संस्कृति में व्रतादि का विधान पूर्ण वैज्ञानिक आधार पर मौसम और प्रकृति को ध्यान में रखकर किया गया है | चातुर्मास अर्थात आषाढ़ शुक्ल एकादशी से लेकर श्रावण, भाद्रपद, आश्विन तथा कार्तिक शुक्ल एकादशी तक चार महीने – यानी आषाढ़ मास की देवशयनी एकादशी से लेकर कार्तिक मास में देवोत्थान एकादशी तक के चार महीने वर्षा के माने जाते हैं | इस प्रकार इस वर्ष 13 जुलाई से लेकर 8 नवम्बर तक का समय चातुर्मास के अन्तर्गत रहेगा | भारत कृषि प्रधान देश है इसलिए वर्षा के ये चार महीने कृषि के लिए बहुत उत्तम माने गए हैं | किसान विवाह आदि समस्त सामाजिक उत्तरदायित्वों से मुक्त रहकर इस अवधि में पूर्ण मनोयोग से कृषि कार्य कर सकता था | आवागमन के साधन भी उन दिनों इतने अच्छे नहीं थे | साथ ही चौमासे के कारण सूर्य चन्द्र से प्राप्त होने वाली ऊर्जा भी मन्द हो जाने से जीवों की पाचक अग्नि भी मन्द पड़ जाती है | साथ ही वर्षा के कारण जो स्वच्छ और ताज़ा हवा प्राप्त होती है वह समस्त प्रकृति को एक अनोखे आनंद से भर देती है | ऐसे सुहावने मौसम में भला किसका मन होगा जो सामाजिक उत्तरदायित्वों के विषय में सोच विचार करे | अस्तु, इन्हीं सब बातों को ध्यान में रखते हुए जो व्यक्ति इन चार महीनों में जहाँ होता था वहीं आनंदपूर्वक निवास करते हुए अध्ययन अध्यापन करते हुए आध्यात्मिक उन्नति का प्रयास करता था तथा खान पान पर नियन्त्रण रखता था ताकि पाचन तन्त्र उचित रूप से कार्य कर सके | और वर्षा ऋतु बीत जाते ही देव प्रबोधिनी एकादशी से समस्त कार्य पूर्ववत आरम्भ हो जाते थे |

सुप्तेत्वयिजगन्नाथ जगत्सुप्तंभवेदिदम् । विबुद्धेत्वयिबुध्येतजगत्सर्वचराचरम् ॥

हे जगन्नाथ ! आपके सो जाने पर यह सारा जगत सो जाता है तथा आपके जागने पर समस्त चराचर पुनः जागृत हो जाता है तथा फिर से इसके समस्त कर्म पूर्ववत आरम्भ हो जाते हैं…

इसके अतिरिक्त चातुर्मास का प्रथम माह श्रावण भगवान् शंकर के लिए समर्पित होता है | दूसरा माह भाद्रपद पर्वों का महीना होता है – गणेश चतुर्थी और श्री कृष्ण जन्माष्टमी जैसे बड़े पर्व इसी मास में आते हैं | चातुर्मास का तीसरा महीना होता है आश्विन का महीना – जिसमें नवरात्र और दुर्गा पूजा की धूम रहती है | और अंतिम तथा चतुर्थ माह होता है प्रकाश के महान पर्व से प्रकाशित कार्तिक माह |

देवशयनी एकादशी के साथ ही चातुर्मास का आरम्भ हो रहा है… देवशयनी एकादशी सभी के लिए शुभ हो और चातुर्मास में सभी अपने अपने कर्तव्य धर्म का सहर्ष पालन करें… यही शुभकामना अपने साथ ही सभी के लिए…