Independence Day and Raksha Bandhan

Independence Day and Raksha Bandhan

Independence Day and Raksha Bandhan

स्वतंत्रता दिवस और रक्षा बन्धन

अभी बारह अगस्त को भाईचारे के प्रतीक ईद का त्यौहार सारे देश ने हर्षोल्लास के साथ मनाया, और अब कल समूचे देश के लिए एक और बहुत ही उत्साह का दिन है

Happy Independence Day
Happy Independence Day

| कल एक ओर पन्द्रह अगस्त को सारा देश आज़ादी की तिहत्तरवीं सालगिरह मनाएगा तो कल ही भाई बहन के पावन प्रेम का प्रतीक रक्षा बन्धन का उल्लासमय पर्व भी है यानी श्रावण पूर्णिमा – जिसे समूचे देश में अलग अलग नामों से मनाया जाता है – कहीं नारिकेल पूर्णिमा के नाम से तो कहीं अन्वाधान के नाम से | कल गायत्री जयन्ती, भगवान् विष्णु के अवतार हयग्रीव जयन्ती जैसे पर्व भी हैं और कल यजुर्वेदीय उपाकर्म का दिन भी है | मान्यता है कि हयग्रीव ने वेदों की पुनर्स्थापना की थी | सर्वप्रथम सभी को इन सभी पर्वों की हार्दिक शुभकामनाएँ…

इष्टि और अन्वाधान हिन्दू परम्परा में बहुत महत्त्व रखते हैं | श्रावण कृष्ण अमावस्या को इष्टि का दिन होता है और इस दिन विशेष रूप से वैष्णव सम्प्रदाय के लोग दिन भर उपवास रखकर यज्ञ का आयोजन करते हैं | उसके बाद श्रावण शुक्ल पूर्णिमा को अन्वाधान अर्थात अग्निहोत्र कर लेने के पश्चात् अग्नि को प्रज्वलित रखने के लिए ईंधन डालने का कार्य करते हैं | और ये कार्य केवल श्रावण माह में ही नहीं होते अपितु प्रत्येक माह की अमावस्या को इष्टि और पूर्णिमा को अन्वाधान की प्रक्रिया का पालन किया जाता है |

उपाकर्म अर्थात आरम्भ | इस दिन शिष्य गुरु के सान्निध्य में विधि विधान पूर्वक नवीन यज्ञोपवीत धारण करके वेदाध्ययन आरम्भ करता था | वैदिक परम्पराओं का पालन जो लोग करते हैं आज भी वहाँ उपाकर्म का विशेष महत्त्व है | यजुर्वेदीय शाखा में श्रावण पूर्णिमा को उपाकर्म सम्पन्न किया जाता है और ऋग्वेदीय शाखा में श्रावण में उस दिन उपाकर्म संपन्न किया जाता है जिस दिन श्रावण माह में श्रवण नक्षत्र होता है | इस प्रकार संभव कुछ दिनों का अन्तर हो जाए, किन्तु भावना एक ही है | तमिलनाडु और आंध्रप्रदेश प्रदेश में भी उपाकर्म का उतना ही महत्त्व है, तमिलनाडु में इस अवनिअट्टम कहा जाता है और आंध्र में थालाई अवनिअट्टम |

पूर्णिमा तिथि का आरम्भ आज दोपहर बाद तीन बजकर पैंतालीस मिनट के लगभग हो चुका है और कल सायं लगभग छह बजे तक रहेगी | कल सूर्योदय पाँच बजकर पचास मिनट पर होगा अतः रक्षा बन्धन का शुभ मुहूर्त भी इसी समय से आरम्भ होगा और सामान्यतः पूरा दिन भाइयों की कलाइयों पर बहनें राखी बाँधेंगी |

येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबल: |

तेन त्वामपि बध्नामि रक्षे मा चल मा चल ||

जिस रक्षासूत्र से महाशक्तिशाली दानवेन्द्र राजा बलि को बाँधा गया था उसी सूत्र से हम तुम्हें बाँधते हैं – हे रक्षासूत्र तुम अडिग रहना और रक्षा के अपने संकल्प से कभी विचलित न होना – रक्षासूत्र बाँधते समय इस भावना से संकल्प लिया जाता है | और ये रक्षा केवल भाई बहनों के पारस्परिक स्नेह तक ही सीमित नहीं है, प्राचीन काल में जब युद्धों का युग था तो वीर सेनानियों की पत्नियाँ भी युद्ध के मैदान में जाते अपने भाइयों के साथ ही अपने पतियों की कलाइयों पर भी इसी भावना के साथ रक्षासूत्र निबद्ध करती थीं कि युद्धक्षेत्र में गया वीर शत्रुओं पर विजय प्राप्त करके सकुशल घर वापस लौटे | गुरु शिष्य द्वारा एक दूसरे को रक्षासूत्र बाँधने की प्रथा भी अनादि काल से चली आ रही है | इसके पीछे भावना यही है कि शिष्य ने जो ज्ञान प्राप्त किया है वह अपने भावी जीवन में उसका समुचित ढंग से प्रयोग करे ताकि वह अपने ज्ञान के साथ-साथ अपने गुरु की गरिमा की रक्षा करने में भी सफल हो | इसी परम्परा के अनुरूप आज भी धार्मिक विधि विधान से पूर्व पुरोहित यजमान को और यजमान पुरोहित को रक्षासूत्र बाँधता है | इस प्रकार दोनों एक दूसरे के सम्मान की रक्षा करने के लिये परस्पर एक दूसरे को अपने बन्धन में बाँधते हैं | भारत जैसे बहुधर्म सम्प्रदाय वाले देश में धार्मिक और साम्प्रदायिक सद्भाव के लिए विभिन्न सम्प्रदायों के लोग परस्पर एक दूसरे को रक्षासूत्र बाँधते हैं |

भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम में जन जागरण के लिए भी इस पर्व का आश्रय लिया अगया अता और श्री रवीन्द्रनाथ टैगोर ने बंग-भंग का विरोध करते हुए इसे बंगाल निवासियों के लिए पारस्परिक भाईचारे और एकता का पर्व बना दिया था |

स्कन्ध पुराण, पद्मपुराण, श्रीमद्भागवत, भविष्यपूरण, महाभारत जैसे पौराणिक ग्रंथों से इस पर्व की अतिप्राचीनता के विषय में ज्ञान होता है | इष्टि, अन्वाधान, उपाकर्म ये

वृक्षाबंधन - रक्षा बंधन
वृक्षाबंधन – रक्षा बंधन

सभी बहुत गहन परम्पराएँ हैं और साधारण बुद्धि वाला मुझ जैसा व्यक्ति इनकी समुचित व्याख्या सम्भवतः न कर पाए | अस्तु, रक्षा बंधन के इस उल्लासमय पर्व के अवसर पर इनकी व्याख्या अथवा रक्षा बन्धन की पौराणिक व्याख्या न करके केवल इतना ही कहना चाहेंगे कि रक्षा बन्धन का पर्व सामाजिक और पारिवारिक एकबद्धता अथवा एकसूत्रता का पर्याय है | क्या ही अच्छा हो यदि हम प्रकृति के साथ भी इसी एकसूत्रता की डोर में बंधने के लिए हरे भरे वृक्षों की कलाइयों पर रक्षा का ये बलशाली सूत्र आबद्ध कर दें… सभी को रक्षा बन्धन के इस महान पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ… इस कामना के साथ कि हम सब एकसूत्रता की डोर में सदा इसी प्रकार आबद्ध रहे और एक दूसरे की भावनाओं का सम्मान करते हुए अपने देश और प्रकृति की सुरक्षा और सेवा में सदा तत्पर रहे…