Shree Krishna Janmashtami
श्री कृष्ण जन्माष्टमी
कल और परसों पूरा देश जन साधारण को कर्म, ज्ञान, भक्ति, आत्मा आदि की व्याख्या समझाने वाले युग प्रवर्तक परम पुरुष भगवान् श्री कृष्ण का 5246वाँ (वेद पुराणों, पण्डितों तथा Astrologers के अनुसार) जन्मदिन मनाने जा रहा है | कल स्मार्तों (गृहस्थ लोग, जो श्रुति स्मृतियों में विश्वास रखते हैं तथा पञ्चदेव ब्रह्मा, विष्णु, महेश, गणेश और माँ भगवती की उपासना करते हैं) का व्रत है और परसों वैष्णवों (विष्णु के उपासक तथा गृहस्थ धर्म से यथासम्भव दूरी बनाकर चलने वाला सम्प्रदाय) का | नन्दोत्सव भी 24 को ही है | अष्टमी तिथि का आरम्भ कल प्रातः आठ बजकर दस मिनट पर होगा और परसों प्रातः आठ बजकर बत्तीस मिनट तक अष्टमी तिथि रहेगी | अष्टमी तिथि में कल 27:48 यानी अर्द्धरात्र्योत्तर तीन बजकर अड़तालीस मिनट के लगभग कौलव करण और व्याघात योग में चन्द्रमा रोहिणी नक्षत्र पर गमन करेगा तथा 25 अगस्त को सूर्योदय से पूर्व चार बजकर चौदह मिनट तक चन्द्रमा रोहिणी नक्षत्र पर ही रहेगा | अतः कल यानी 23 अगस्त को जन्माष्टमी का व्रत रहेगा ताकि रोहिणी नक्षत्र में उसका समापन किया जा सके | जो लोग केवल दिन का व्रत रखते हैं वे उदया तिथि में 24 अगस्त को कर सकते हैं और उसी दिन रात्रि में व्रत का पारायण भी कर देंगे | 25 अगस्त को आठ बजकर दस मिनट तक नवमी तिथि है, अतः नवमी की पूजा अपनी सुविधानुसार 24 और 25 किसी भी दिन की जा सकती है, किन्तु उदया तिथि मानने वालों को 25 अगस्त को ही करनी होगी |
कृष्ण बनना वास्तव में बहुत कठिन है | क्योंकि कृष्ण, एक ऐसा व्यक्तित्व जो अव्यक्त होते हुए भी व्यक्त ब्रह्म है, जो मूलतः नर और नारायण दोनों है, जो स्वयंभू हैं | द्युलोक जिनका मस्तक है, आकाश नाभि, पृथिवी चरण, अश्विनीकुमार नासिका, सूर्य चन्द्र तथा समस्त देवता जिनकी विभिन्न देहयष्टियाँ हैं | जो प्रलयकाल के अन्त में ब्रह्मस्वरूप में प्रकट हुए तथा सृष्टि का विस्तार किया | ऐसे परम पुरुष भगवान् श्री कृष्ण का जन्म दिवस कल सारा देश मनाने जा रहा है |
देश भर में श्री कृष्ण के अनेक रूपों की उपासना की जाती है | जैसे जगन्नाथपुरी में भगवान् जगन्नाथ के रूप में समस्त जगत यानी संसार के नाथ यानी स्वामी हैं | केरल के गुरुवयूर में बालरूप में विद्यमान हैं, उडुपी में भी हाथ में मक्खन लिए हुए बालक के रूप में प्रतिष्ठित हैं – जो प्रतीक है इस तथ्य का यदि मनुष्य का मन नन्द के माखन चोर लला के समान निश्छल और मधुर रहेगा तो संसार में केवल प्रेम ही प्रेम प्रसारित होगा | विश्व प्रसिद्ध बाँके बिहारी मन्दिर में हाथ में वंशी थामे नृत्य की मुद्रा में तिरछे खड़े हैं और सन्देश दे रहे हैं कि जन मानस में परस्पर एक दूसरे के प्रति और समस्त जड़ चेतन के प्रति सद्भावना, प्रेम तथा सहयोग का भाव होगा तो विश्व में अशान्ति का कोई कारण ही नहीं होगा और जन जन का मन प्रेम की मस्ती में नृत्य कर उठेगा |
राजस्थान के प्रसिद्ध नाथद्वारा में श्रीनाथ जी के रूप में हाथ पर गोवर्धन पर्वत उठाए मानों घोषणा कर रहे हैं कि प्रकृति से भयभीत होने की आवश्यकता नहीं है, अपितु आवश्यकता है प्रकृति को हानि पहुँचाए बिना उसके साथ प्रेम और आत्मीयता का सम्बन्ध स्थापित करने की – तब प्रकृति भी प्रतिदान स्वरूप न केवल हमारी सुरक्षा करेगी अपितु हमारा समुचित भरण पोषण भी करेगी |
इसी तरह से गुजरात में श्री कृष्ण रणछोड़ के रूप में उपस्थित हैं | जरासंध के साथ युद्ध के समय कृष्ण युद्धभूमि से भाग आए | सबने समझा पीठ दिखाकर भागे हैं, किन्तु पूर्ण रूप से योजना बनाकर फिर से युद्ध के लिए वापस लौटे | रणछोड़ का चरित्र भी वास्तव में सन्देश देता है कि किसी भी कार्य को यदि सुनियोजित विधि से किया जाएगा तो सफलता निश्चित है, साथ ही ये भी कि यदि कभी असफलता का सामना हो भी जाए तो उससे घबराकर पलायन नहीं कर जाना चाहिए अपितु स्वयं को उस परीक्षा के लिए पुनः पूर्ण रूप से तैयार करके आगे बढ़ना चाहिए |
कहीं एक स्थान पर – सम्भवतः चेन्नई में – भगवान् कृष्ण मूँछों के साथ दिखाई देते हैं | मूँछें प्रतीक हैं पुरुषत्व का – और भगवान् कृष्ण का तो जन्म ही इसी कारण हुआ था कि उन्हें पृथिवी से अधर्म और अत्याचार का अन्त करके धर्म और सदाचार की पुनर्स्थापना करनी थी – और इस कार्य के लिए पूर्ण पौरुष की आवश्यकता थी |
इस प्रकार अनेक स्थानों पर भगवान् श्री कृष्ण की अनेकों रूपों में पूजा अर्चना की जाती है, किन्तु उन सभी रूपों का सन्देश केवल यही है कि समस्त जड़ चेतन के प्रति दया, करुणा, प्रेम और सहृदयता का भाव रखते हुए परस्पर सहयोग करते हुए सुनियोजित रीति से यदि कार्य किया जाएगा तो न केवल विश्व में शान्ति और आनन्द का वातावरण विद्यमान रहेगा अपितु मनुष्य को अपने लक्ष्य की प्राप्ति में भी सफलता प्राप्त होगी | और उस सबसे भी अधिक ये कि जब व्यक्ति अपने समस्त भावों का अभाव करके भक्ति की पराकाष्ठा पर पहुँच जाता है तब वह अपने ईश्वर – अपने ब्रह्म – अपनी आत्मा – के साथ एकरूप हो जाता है – कोई भेद दोनों में नहीं रह जाता – और यही है वास्तविक मोक्ष…
अस्तु, भगवान् श्री कृष्ण के महान चरित्र से प्रेरणा लेते हुए हम सभी नि:स्वार्थ भाव से कर्म करते हुए नि:स्वार्थ प्रेम, सद्भावना और सहयोग के मार्ग पर अग्रसर रहे तथा प्रकृति की रक्षा का संकल्प अपने मन में धारण करें… इसी कामना के साथ सभी को समस्त कलाओं से युक्त परम पुरुष भगवान् श्री कृष्ण के जन्म महोत्सव – श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हारिक बधाई और अनेकशः हार्दिक शुभकामनाएँ…