Shree Siddhi Vinayak Stotram
श्री सिद्धिविनायक स्तोत्रम्
भगवान श्रीगणेश को विघ्नकर्ता और विघ्नहर्ता दोनों ही माना जाता है | माना जाता है कि ऋद्धि सिद्धि दायक श्री गणेश प्रसन्न हो जाएँ तो समस्त प्रकार के विघ्न बाधाओं और व्याधियों से मनुष्य को मुक्त कर देते हैं, किन्तु यदि रुष्ट हो जाएँ तो व्यक्ति का कल्याण नहीं होता | इसीलिए किसी भी शुभ कार्य के आरम्भ में श्री गणेश का आह्वाहन करने का विधान है | भगवान् श्री गणेश विघ्नरूपी अन्धकार का नाश करने के लिए सूर्य के समान हैं, विघ्नरूपी सर्पों का मर्दन करने के लिए गरुड़ के समान हैं, विघ्नरूपी पर्वतों को चूर्ण करने के लिए वज्र के समान हैं, विघ्नरूपी समुद्रों को भस्म करने के लिए वडवानल के समान हैं, और विघ्नरूपी मेघों को छाँटने के लिए प्रचण्ड तूफ़ान के समान हैं | आज गणेश चतुर्थी के अवसर पर शुभकामनाओं सहित प्रस्तुत है मुद्गलपुराण में वर्णित श्री गणेश स्तुति : श्री सिद्धिविनायक स्तोत्रम्…
|| अथ श्रीमुद्गलपुराणे विघ्ननिवारकं श्रीसिद्धिविनायकस्तोत्रम् ||
विघ्नेश विघ्नचयखण्डननामधेय श्रीशंकरात्मज सुराधिपवन्द्यपाद |
दुर्गामहाव्रतफलाखिलमंगलात्मन् विघ्नं ममापहर सिद्धिविनायक त्वम् ||
हे विघ्नेश ! (भगवान् गणेश को विघ्नेश भी कहा जाता है | इसके लिए एक कथा उपलब्ध होती है कि राजा अभिनन्दन के यज्ञ से घबराकर इन्द्र ने उस यज्ञ का विध्वस करने के लिए काल का आह्वाहन किया जो विघ्नासुर के नाम से उत्पन्न हुआ और उसने अभिनन्दन के यज्ञ में विघ्न डालने आरम्भ कर दिए | तब ब्रह्मा जी के कहने पर श्री गणेश का आह्वाहन किया गया और उन्होंने विघ्नासुर के उपद्रव को शान्त किया | उस समय घबराकर विघ्नासुर भगवान् गणेश की ही शरण में चला गया और भगवान् श्री गणेश “विघ्नेश” कहलाने लगे), हे सिद्धिविनायक ! समस्त विघ्नों को नष्ट करने वाले, भगवान् शंकर के पुत्र, माता पार्वती के महान व्रत के उत्तम फल तथा इन्द्र भी जिनके चरण कमलों की वन्दना करते हैं – ऐसे मंगलस्वरूप आप हमारे समस्त विघ्नों को दूर करें |
सत्पद्मरागमणिवर्णशरीरकान्ति: श्रीसिद्धिबुद्धिपरिचर्चितकुंकुमश्री: |
दक्षस्तने वलयितातिमनोज्ञशुण्डो विघ्नं ममापहर सिद्धिविनायक त्वम् ||
हे सिद्धिविनायक ! आपके शरीर की कान्ति उत्तम पद्मरागमणि के समान है, श्रीसिद्धि और बुद्धि अंगों में कुंकुम का लेप करती हैं, आपके दाहिने स्तन पर वलयाकार मुड़ा हुआ अत्यन्त मनोहर शुण्ड (सूंड़) है, आप हमारे समस्त विघ्नों को दूर करें |
पाशांकुशाब्जपरशुंश्चं दधच्चतुर्भिर्दोर्भिश्च शोणकुसुमस्त्रगुमांगजात: |
सिन्दूरशोभितललाटविधुप्रकाशो विघ्नं ममापहर सिद्धिविनायक त्वम् ||
उमा के अंग से उत्पन्न हुए हे सिद्धिविनायक ! आप अपने चार हाथों में पाश, अंकुश, कमल और परशु सुशोभित होते हैं, आप रक्तपुष्पों की माला से अलंकृत हैं, तथा आपके सिन्दूर से सज्जित ललाट में चन्द्रमा प्रकाशित हो रहा है, ऐसे आप हमारे समस्त विघ्नों को दूर करें |
कार्येषु विघ्नचयभीतविरंचिमुख्यै: सम्पूजित: सुरवरैरपि मोदकाद्यै: |
सर्वेषु च प्रथममेव सुरेषु पूज्यो विघ्नं ममापहर सिद्धिविनायक त्वम् ||
समस्त देवताओं में सर्वप्रथम पूजनीय हे सिद्धिविनायक ! विघ्न उपस्थित होने पर ब्रह्मा आदि श्रेष्ठ देवताओं ने भी आपकी मोदक आदि मिष्टान्नों से भली-भांति पूजा की थी | हमारी भी आपसे प्रार्थना है कि आप हमारे समस्त विघ्नों को दूर करें |
शीघ्रांचनस्खलनतुंगरवोर्ध्वकण्ठ स्थलेन्दुरुद्रणहासितदेवसंग: |
शूर्पश्रुतिश्च पृथुवर्तुलतुंगतुन्दो विघ्नं ममापहर सिद्धिविनायक त्वम् ||
हे सिद्धिविनायक ! आप अपनी द्रुतगति, उच्च स्वर, ऊर्ध्वकण्ठ तथा स्थूल शरीर के कारण समस्त समस्त देवों का मनोरंजन भी करते हैं | आपके कान सूप के समान जान पड़ते हैं, आप मोटा, गोलाकार और ऊँची तोंद (पेट) धारण करते हैं, आपसे प्रार्थना है आप हमारे समस्त विघ्नों को दूर करें |
यज्ञोपवीतपदलम्भितनागराजो मासादिपुण्यददृशीकृतऋक्षराज: |
भक्ताभयप्रद दयालय विघ्नराज विघ्नं ममापहर सिद्धिविनायक त्वम् ||
नागराज को यज्ञोपवीत के रूप में धारण करने वाले हे सिद्धिविनायक ! आप बालचन्द्र को मस्तक पर धारणकर दर्शनार्थियों को पुण्य प्रदान करते हैं | भक्तों को अभय देने वाले हे विघ्नराज ! आप हमारे समस्त विघ्नों को दूर करें |
सद्रत्नसारततिराजितसत्किरीट: कौसुम्भचारुवसनद्वय ऊर्जितश्री: |
सर्वत्र मंगलकरस्मरणप्रतापो विघ्नं ममापहर सिद्धिविनायक त्वम् ||
रत्नजडित मुकुट धारण करने वाले, कुसुम्भी रंग के दो मनोहर वस्त्र धारण करने वाले हे सिद्धिविनायक ! आपकी शोभा महान है तथा आपके स्मरणमात्र से सबका मंगल हो जाता है | आपसे प्रार्थना है आप हमारे समस्त विघ्नों को दूर करें |
देवान्तकाद्यसुरभीतसुरार्तिहर्ता विज्ञानबोधनवरेण तमोऽपहर्ता |
आनन्दितत्रिभुवनेश कुमारबन्धो विघ्नं ममापहर सिद्धिविनायक त्वम् ||
देवान्तक आदि असुरों से डरे हुए देवताओं की पीड़ा दूर करने वाले तथा विज्ञानबोध के वरदान से सबके अज्ञानान्धकार को हर लेने वाले हैं, त्रिभुवनपति इन्द्र को आनन्दित करने वाले कुमारबन्धु हे सिद्धिविनायक ! आपसे प्रार्थना है कि आप हमारे समस्त विघ्नों को दूर करें |
|| इति श्रीमुद्गलपुराणे विघ्ननिवारकं श्रीसिद्धिविनायकस्तोत्रं सम्पूर्णम् ||