Meditation and it’s practices

Meditation and it’s practices

Meditation and it’s practices

ध्यान और इसका अभ्यास

हिमालयन योग परम्परा के गुरु स्वामी वेदभारती जी की पुस्तक Meditation and it’s practices के कुछ अंश ध्यान के साधकों के लिए…

ध्यान किसे कहते हैं

ध्यान शब्द का प्रयोग अनेक अर्थों में किया जाता है | यही कारण है कि ध्यान क्या है और इसका अभ्यास किस प्रकार किया जाए इस विषय में ऊहापोह की स्थिति बनी हुई है | कुछ लोग समझते हैं कि ध्यान का अर्थ है सोचना विचारना | कुछ के अनुसार दिवास्वप्न देखना अथवा कल्पना जगत में विचरण करना ही वास्तविक ध्यान है | किन्तु सत्य तो यह है कि इनमें से कुछ भी ध्यान नहीं कहलाता | ध्यान एक ऐसी अलग प्रकार की और विलक्षण प्रक्रिया है जिसे पूर्णरूपेण समझना आवश्यक है |

ध्यान मस्तिष्क को विश्राम देने की तथा चेतनता की स्थिति प्राप्त करने की एक विशेष प्रक्रिया है, जो सामान्य जागृत अवस्था से पूर्ण रूप से भिन्न है | ध्यान में आप पूर्ण रूप से जागृत और सावधान तो होते हैं, किन्तु आपका मस्तिष्क बाह्य जगत और आपके आस पास घट रही घटनाओं में केन्द्रित नहीं होता | न तो आपका मस्तिष्क सो रहा होता है, न सपने बुन रहा होता है और न ही कल्पना जगत में विचरण कर रहा होता है | इसके विपरीत पूर्णरूपेण स्पष्ट, विश्रान्त और आत्मा में – भीतरी जगत में केन्द्रित रहता है – आत्मस्थ रहता है |

अंग्रेज़ी भाषा में अगर देखें तो ध्यान के लिए “Meditation” शब्द का प्रयोग किया जाता है, जिसका मूल अर्थ वही है जो “Medical” अथवा “Medicate” का होता है, और इन सब शब्दों के मूल में एक ही भाव ध्वनित होता है – उपस्थित होना अथवा एकाग्रचित्त होना – मस्तिष्क को केन्द्रित करना | ध्यान की प्रक्रिया में आप अपने जीवन – अपनी आत्मा के उन विविध आयामों पर एकाग्रचित्त होते हैं जिनके विषय में आप सम्भवतः ही कभी जान पाते हों – और वे आयाम हैं आपकी अन्तरात्मा के बहुत गहरे स्तर | आपकी आत्मा के ये आन्तरिक स्तर आपकी विचार प्रक्रिया से, किसी भी प्रकार की व्याख्या से, दिवास्वप्नों से, भावनाओं अथवा स्मृतियों के अनुभवों से कहीं अधिक गहन हैं | ध्यान में एक प्रकार की अन्तःचेतना निहित है – जो स्थिर है, केन्द्रित है और साथ साथ विश्रान्त भी है | इस प्रकार की अन्तःचेतना अपने भीतर उत्पन्न करना कोई कठिन कार्य नहीं है | आप देखेंगे कि ध्यान एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा आपके मन को पूर्ण विश्राम मिल जाता है | आरम्भ में एक ही सबसे बड़ी कठिनाई का अनुभव होता है कि मन इस प्रकार की एकाग्रता उत्पन्न करने के लिए शिक्षित नहीं होता |

क्रमशः……