Meditation and it’s practices
ध्यान और इसका अभ्यास
हिमालयन योग परम्परा के गुरु स्वामी वेदभारती जी की पुस्तक Meditation and it’s practices के कुछ अंश ध्यान के साधकों के लिए…
ध्यान क्या है
सम्पूर्ण विश्व में प्रत्येक समाज में लोग उन योग्यताओं में निपुण होते हैं जो अपनी संस्कृति के अनुसार कार्य करने और जीवन जीने के लिए उपयोगी होती हैं – जैसे: किस तरह वार्तालाप करना है, किस प्रकार के विचार होने चाहियें, किसी कार्य को किस प्रकार करना चाहिए, किस रूप में वस्तुओं को देखना परखना चाहिए और बाह्य जगत को किस प्रकार अनुभव करना चाहिए | जिस संसार में हम रहते हैं उसे समझने की प्रक्रिया में हम बायोलोजी (जीवविज्ञान), ईकोलोजी (पर्यावरण विज्ञान), कैमिस्ट्री (रसायन विज्ञान) जैसे विज्ञानों का अध्ययन करते हैं | किन्तु कोई विद्यालय, महाविद्यालय या विश्वविद्यालय ऐसा नहीं है जिसमें सिखाया जाता हो कि अपनी अन्तःचेतना को – अपने भीतर के जगत को – कैसे जाना जाए | हम अपने भीतर और बाहर को जाने बिना केवल यही सीखते रहते हैं कि किस प्रकार अपने लक्ष्य को प्राप्त किया जाए, हमारे समाज की कार्यप्रणाली कैसी है और हमारे सामाजिक मूल्य क्या हैं | जिसका परिणाम होता है कि हम स्वयं को ही नहीं समझ पाते और दूसरों की सलाह और सुझावों पर आश्रित हो जाते हैं |
ध्यान एक पूर्ण रूप से पृथक, विलक्षण और नियमबद्ध प्रक्रिया है | लक्ष्य पर एकाग्रचित्त होने के लिए और स्वयं को शारीरिक, मानसिक और श्वास जैसे विभिन्न स्तरों पर समझने के लिए एक सरल सी प्रक्रिया है | जैसे जैसे ध्यान की अवधि बढ़ती जाती है वैसे वैसे आपको ध्यान के अनके सकारात्मक परिणामों का अनुभव होने लगता है – जैसे आप आनन्द में वृद्धि का अनुभव करने लगते हैं, आपको अपने मस्तिष्क की स्पष्टता में वृद्धि का अनुभव होने लगता है तथा चेतनता में वृद्धि का अनुभव होने लगता है | जैसे जैसे आप शान्ति का अनुभव करने लगते हैं वैसे वैसे आपके शरीर, स्नायु मण्डल और मस्तिष्क में तनाव के सारे लक्षण दूर होते जाते हैं |
आरम्भ में ध्यान चिकित्सकीय होता है अर्थात रोग निदान में सहायता करता है | यह स्थूल और सूक्ष्म दोनों प्रकार की माँसपेशियों तथा आपके स्वाधीन स्नायुतन्त्र के तनाव को दूर करता है, साथ ही मानसिक तनाव से भी मुक्ति दिलाता है | ध्यान का साधक शान्त मस्तिष्क को प्राप्त करता है और तनाव के प्रति मन की प्रतिक्रियाओं को कम करके रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि करता है | आप देखेंगे कि कुछ दिनों के निष्ठा पूर्ण प्रयास से न केवल आपकी क्षुधा नियन्त्रित होगी बल्कि क्रोध जैसी कुछ प्रतिक्रियाओं पर भी नियन्त्रण होगा | ध्यान नींद की आवश्यकता में कमी लाने के साथ साथ शरीर और मस्तिष्क को भी और अधिक ऊर्जावान बनाता है |
प्रायः सभी लेखक, कवि और दार्शनिक अपनी सृजनात्मकता और कल्पनाशीलता में वृद्धि करना चाहते हैं | उनकी इच्छा होती है कि ज्ञान के प्रत्येक क्षेत्र का भली भाँति विस्तार हो | ध्यान एक ऐसी वैज्ञानिक पद्धति है जिससे आपके दैनिक जीवन में आपकी जन्मजात प्रतिभा में वृद्धि होती है |
ध्यान का स्वास्थ्य पर भी व्यापक प्रभाव पड़ता है | आज के युग में बहुत सारे लोग ऐसे हैं जो किसी सीमा तक मानसिक विकारों से ग्रस्त होते हैं और जो उनकी अपनी सोच तथा भावनाओं की ही उपज होते हैं | हाल ही में वैज्ञानिक इस निष्कर्ष पर पहुँचे हैं कि इस प्रकार के रोगों का निदान किसी प्रकार की परम्परागत औषधियों अथवा मनोवैज्ञानिक चिकित्सा द्वारा नहीं किया जा सकता | क्योंकि जब रोग आपके मस्तिष्क अथवा किसी प्रकार की भावनात्मक प्रतिक्रियाओं की देन है तो किसी प्रकार की बाह्य चिकित्सा ही किस प्रकार उसका निदान कर सकती है ? यदि आप अपने मस्तिष्क और भावनाओं को समझे बिना केवल बाह्य चिकित्सा पद्धति का ही सहारा लेते हैं तो आप सदा के लिए चिकित्सकों पर निर्भर हो जाते हैं | इसके विपरीत ध्यान की पद्धति आत्मनिर्भरता उत्पन्न करती है और जीवन में हर प्रकार की समस्याओं से प्रभावशाली ढंग से जूझने के लिए आवश्यक आत्मबल आपमें उत्पन्न करती है |