Meditation and it’s practices
ध्यान और इसका अभ्यास
ध्यान – खोज मन के भीतर :
जीवन का यदि हम स्पष्ट रूप से अवलोकन करें तो हम पाएँगे कि हमें बचपन से ही केवल बाह्य जगत की वस्तुओं को परखना और पहचानना सिखाया गया है और किसी ने भी हमें यह नहीं सिखाया कि अपने भीतर कैसे झाँकें, कैसे अपने भीतर खोज करें और कैसे अपने भीतर के उस परम सत्य को जानें | यही कारण है कि एक ओर दूसरों को जानने का प्रयास करते रहते हैं और दूसरी ओर अपने स्वयं के प्रति अपरिचित बने रहते हैं | आत्मज्ञान के इसी अभाव के कारण हमारे सम्बन्धों में प्रगाढ़ता नहीं आने पाती और जीवन में सन्देह और कुंठाएँ पलती रहती हैं |
हमारे मन का एक बहुत छोटा सा भाग ही इस औपचारिक शिक्षा से पोषित हो पाता है | मन का एक बहुत बड़ा भाग जो सपने देखता है, सोचता है, सोता है, अचेतन का एक बहुत बड़ा भाग जिसमें अनुभव एकत्रित होते रहते हैं हमारे लिए अनजाना और अननुशासित ही रह जाता है | यह सत्य है कि “सम्पूर्ण शरीर मन में है”, किन्तु यह भी सत्य है कि “सम्पूर्ण मन शरीर में नहीं है” | ध्यान के अभ्यास के अतिरिक्त और कोई विधि ऐसी नहीं है जिससे हम अपने मन को नियन्त्रित कर सकें |
हमें सिखाया गया है कि हम बाह्य जगत में किस प्रकार विचरण करें और किस प्रकार व्यवहार करें | किन्तु हमें यह कभी नहीं बताया गया कि हम किस प्रकार स्थिर होकर आत्म निरीक्षण कर सकें | साथ ही शान्ति प्राप्त करने और स्थिरता प्राप्त करने की प्रक्रिया सीखना किसी प्रकार का उत्सव अथवा धार्मिक अनुष्ठान भी नहीं होना चाहिए | यह तो मानव शरीर की सार्वभौमिक प्राथमिक आवश्यकता है | जब हम स्थिर होकर बैठना सीखते हैं तो हमें एक अवर्णनीय आनन्द का अनुभव होता है | मनुष्य इस आनन्द की पराकाष्ठा को केवलमात्र ध्यान के द्वारा ही प्राप्त कर सकता है | संसार के समस्त आनन्द क्षणिक हैं, केवल ध्यान के द्वारा प्राप्त आनन्द ही गहन और अक्षुण्ण होता है | और यह कोई अतिशयोक्ति नहीं है | यह तो एक ऐसा सत्य है जिसका अनुमोदन हमारे महान सन्तों ने किया है – चाहे उन्होंने संसार का परित्याग करके इस सत्य को जाना हो अथवा संसार में रहते हुए भी उसमें लिप्त हुए बिना |
क्रमशः……..