Increase in pollution and odd-even
बढ़ता प्रदूषण और Odd-Even
कल रात कहीं बड़े जोर शोर से आतिशबाज़ी चल रही थी | ऐसा प्रतीत होता था शायद कहीं आतिशबाजी की प्रतियोगिता चल रही थी | हम क्यों नहीं इस बात को समझ पा रहे हैं कि आतिशबाज़ी का धुआँ प्रदूषण का बहुत बड़ा कारण है इसी तरह से बहुत सी आतिशबाज़ी, वाहनों का धुआँ, फैक्ट्री आदि का धुआँ मिलकर धुएँ का एक ऐसा गुबार खड़ा कर देते हैं कि लगता है हम लोग गैस चेम्बर में जी रहे हैं | समझ नहीं आता हम जा किस दिशा में रहे हैं…
पिछले कुछ दिनों से एक समाचार सुर्ख़ियों में है – दिल्ली सरकार नवम्बर से Odd-Even Formula फिर से लागू करने जा रही है | दिल्ली में एक तो त्यौहारों और शादियों के मौसम में आतिशबाजी, दूसरे मौसम बदलने के कारण आतिशबाज़ी और कार आदि से निकला धुआँ ऊपर नहीं उठ पाता जिसके कारण प्रदूषण की मात्रा बढ़ जाती है | इससे बचने के लिए ये उपाय वास्तव में कारगर होता रहा है और सम्भवतः कोई भी इसका विरोध नहीं करेगा | लेकिन विचारणीय प्रश्न ये है कि क्या हम सब दिल्ली सरकार के इस क़दम का “वास्तविक अर्थों” में समर्थन करने के लिए तैयार हैं ?
शायद हमारी ये बात आपको कुछ अजीब लगे, किन्तु सत्य है | अभी से कुछ मित्र सम्प्रदायवादी मैसेज फॉरवर्ड करने लगे हैं कि “अमुक सम्प्रदाय में ऐसा होने से कोई प्रदूषण आदि का प्रश्न नहीं उठता, हिन्दुओं के त्यौहारों पर ही सब याद क्यों आता है ?” ये क्या वही बात नहीं हुई कि “जब सामने वाला साफ़ सड़क पर कूड़ा फेंक रहा है तो हमारे अकेले के जागरूक होने से क्या होगा ? सरकार को पहले उन्हें रोकना चाहिए… हम भी वैसा ही करते हैं जो दूसरे कर रहे हैं…”
हमारी यही मनोवृत्ति बहुत सारे सुधारों के रास्ते में रोड़ा अटकाती है | यदि सामने
वाले ने कुछ अनुचित किया तो क्या हमें सही कार्य करके उदाहरण प्रस्तुत नहीं करना चाहिए ? क्या सारी बातों की ज़िम्मेदारी सरकारों और पुलिस वालों की है ? हमें यदि अपने अधिकारों की चिन्ता है तो क्या अपने उत्तरदायित्वों का बोध नहीं होना चाहिए ?
अभी शादी ब्याह का मौसम चलेगा और लोग रात रात भर बैंड बाजे के साथ ही डी जे का भी शोर मचाएँगे | साथ में भयंकर रूप से आतिशबाज़ी भी होगी | ये बैंड बाजे वाले, डी जे और आतिशबाजी वाले तो महीनों पहले से बुक हो जाते हैं | साथ में दीपावली की आतिशबाज़ी – जो बस शुरू ही होने वाली है | कहीं किसी पुराण अथवा धर्मशास्त्र में नहीं लिखा कि आतिशबाज़ी अथवा शोर के अभाव में दीपावली का पर्व अधूरा रहा जाएगा अथवा ब्याह शादी सफल नहीं होगी | ये सब करते हुए
क्या कभी हमारी आत्मा ने हमें धिक्कारा है कि जो प्रकृति हमारे जन्म का कारण है, जो प्रकृति हमें स्वस्थ और दीर्घायु बनाए रखने के लिए स्वच्छ और स्वस्थ जलवायु तथा भोजन वस्त्रादि के रूप में अन्य अनेकों सुविधाएँ प्रदान करने में तत्पर रहती है उसके साथ कितना जघन्य अपराध कर रहे हैं ध्वनि और वायु प्रदूषण की मात्रा में वृद्धि करके ? और यदि हमारा पर्यावरण प्रदूषण इसी प्रकार बढ़ता रहा तो क्या हम स्वस्थ और सुखी रह पाएँगे ?
इसलिए मित्रों, आप सभी से करबद्ध अनुरोध है कि इस दीवाली और शादियों के मौसम में किसी भी प्रकार की “धर्म सम्प्रदाय” की भावना से ऊपर उठकर आतिशबाज़ी के धुएँ और अन्य प्रकार के व्यर्थ के शोर शराबे से बचने का प्रयास करें, अपनी माता सरीखी प्रकृति का सम्मान करें ताकि हम और हमारे बाद आने वाली पीढ़ियाँ स्वच्छ और स्वस्थ हवा में साँस ले सकें और व्यर्थ के शोर से रहित शान्त तथा हर्षोल्लासपूर्ण वातावरण में अपने व्यक्तित्वों का विकास कर सकें… और यदि हम ऐसा करने में क़ामयाब हो गए तो फिर किसी सरकार को किसी प्रकार के Odd-Even Formula को लागू करने की आवश्यकता ही नहीं रह जाएगी…