Meditation and it’s practices

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Meditation and it’s practices

ध्यान और इसका अभ्यास

किसी विषय पर मनन करना अथवा सोचना ध्यान नहीं है :

चिन्तन, मनन – विशेष रूप से कुछ प्रेरणादायक विषयों जैसे सत्य, शान्ति और प्रेम आदि के विषय में सोचना विचारना अर्थात मनन करना – चिन्तन करना – सहायक हो सकता है, किन्तु यह ध्यान की प्रक्रिया से भिन्न प्रक्रिया है | मनन करने में आप अपने मन को एक विशेष विषय की जानकारी प्राप्त करने में, उसके अर्थ और मूल्य को समझने में लगा देते हैं | ध्यान की प्रक्रिया में चिन्तन और मनन को एक अलग अभ्यास के रूप में जाना जाता है, हाँ कभी किसी स्तर पर यह सहायक हो सकती है | जब आप ध्यान में होते हैं तो मन को किसी विषय पर सोचने का सुझाव नहीं देते हैं, बल्कि इस मानसिक प्रक्रिया से बहुत ऊपर उठ जाते हैं |

ध्यान सम्मोहन अथवा आत्म विमोहन की स्थिति भी नहीं है :

सम्मोहन में या तो किसी दूसरे व्यक्ति द्वारा अथवा स्वयं अपने ही द्वारा मन को एक सुझाव दिया जाता है | यह सुझाव कुछ इस प्रकार का हो एकता है – “आप सो रहे हैं अथवा विश्राम कर रहे हैं |” अर्थात सम्मोहन में मन की धारणाओं को जागृत करके उनमें किसी प्रकार के परिवर्तन अथवा उन्हें नियन्त्रित करने का प्रयास किया जाता है | इस प्रक्रिया के द्वारा मन को इस बात का विश्वास दिलाने का प्रयास किया जाता है कि यह क्रिया उसके लिए लाभदायक है और उसे दिए गए आदेशों एक अनुसार विचार करना चाहिए – सोचना चाहिए | कई बार इस प्रकार के सुझाव वास्तव में बहुत अच्छा प्रभाव छोड़ते हैं – क्योंकि सुझावों में प्रभाव छोड़ने की प्रबल शक्ति होती है | दुर्भाग्य से नकारात्मक सुझाव भी हम पर उतना ही गहरा प्रभाव डालते हैं और निश्चित रूप से वह नकारात्मक ही होता है |

ध्यान की अवस्था ऐसी अवस्था होती है जिसमें न तो आप मस्तिष्क को किसी प्रकार का सुझाव देते हैं और न ही उसे किसी प्रकार नियन्त्रित करने का प्रयास करते हैं | आप केवल मस्तिष्क को देखते रहते हैं और उसे शान्त एवं स्थिर होने देते हैं | अपने मन्त्र को अनुमति देते हैं कि वह आपको आपके भीतर ले जाए और आपकी आत्मा के गहनतम स्तर को जानने और अनुभव करने में आपकी सहायता करे | ध्यान में सम्मोहन जैसी प्रक्रियाओं पर एक सीमा तक रोक होती है, क्योंकि इसके अन्तर्गत दिए गए सुझावों में जिन शक्तिशाली और प्रभावशाली बाह्य अनुभवों का उपयोग किया जाता है उनके कारण मस्तिष्क में भ्रम की स्थिति उत्पन्न हो सकती है | सम्मोहन अथवा आत्मनिर्देश जैसे अभ्यासों से कुछ रोगों के निदान में सहायता मिल सकती है – क्योंकि इनका चिकित्सकीय प्रभाव हो सकता है, किन्तु ध्यान के साथ इन्हें मिलाने का प्रयास नहीं करना चाहिए | हमारे ऋषि मुनियों ने कहा है कि ध्यान की प्रक्रिया सम्मोहन से पूर्ण रूप से भिन्न प्रक्रिया है | ध्यान मन को किसी प्रकार के भ्रम से रहित और पूर्ण रूप से स्पष्ट स्थिति में ले जाता है और किसी भी प्रकार के सुझाव अथवा बाह्य प्रभाव से मुक्ति दिलाता है |

क्रमशः……..