Meditation and it’s practices

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ध्यान और इसका अभ्यास

ध्यान धर्म नहीं है :

पिछले अध्याय में हम चर्चा कर रहे थे कि भ्रमवश कुछ अन्य स्थितियों को भी ध्यान समझ लिया जाता है | जैसे चिन्तन मनन अथवा सम्मोहन आदि की स्थिति को भी ध्यान समझ लिया जाता है |

किन्तु हम आपको बता दें कि ध्यान न तो चिन्तन मनन है और न ही किसी प्रकार की सम्मोहन अथवा आत्म विमोहन की स्थिति है | ध्यान कोई ऐसा अपरिचित अभ्यास भी नहीं है जिसके कारण आपको अपनी मान्यताओं और संस्कृति को त्यागना पड़े अथवा धर्म परिवर्तन करना पड़े | बल्कि ध्यान स्वयं को प्रत्येक स्तर पर जानने की एक व्यावहारिक, वैज्ञानिक और क्रमबद्ध पद्धति है | ध्यान का सम्बन्ध संसार की किसी संस्कृति अथवा धर्म से नहीं है, बल्कि यह एक शुद्ध और सरल पद्धति है जीवन को गहराई से जानने की और अन्त में प्रकृतिस्थ हो जाने की |

कुछ लोग अपने स्वयं के प्रचार प्रसार के लिए किसी व्यक्तिगत अभ्यास की प्रक्रिया को “ध्यान” बताकर साधक को दिग्भ्रमित कर देते हैं | किन्तु वास्तव में वे लोग ध्यान का धर्म और सांस्कृतिक मूल्यों के साथ मिश्रण कर देते हैं | जिसका परिणाम ये होता है कि साधक चिन्ता में पड़ जाता है कि कहीं ऐसा तो नहीं कि ध्यान के अभ्यास से उसके धार्मिक विश्वासों में बाधा उत्पन्न हो जाएगी अथवा किसी अन्य संस्कृति या धर्म को अपनाना पड़ेगा | ऐसा कुछ भी नहीं है |

धर्म जहाँ सिखाता है कि आपकी धारणाएँ और विश्वास क्या होने चाहियें, वहीं ध्यान सीधा स्वयं को अनुभव करना सिखाता है | धर्म और ध्यान इन दोनों प्रक्रियाओं के बीच किसी प्रकार का संघर्ष है ही नहीं | पूजा अर्चना धर्म के अंग हैं, जिनके द्वारा दिव्य शक्ति से सम्पर्क साधने का प्रयास किया जाता है | आप एक साथ दोनों ही हो सकते हैं – पूजा अर्चना करने वाले धार्मिक व्यक्ति भी और ध्यान का अभ्यास करने वाले साधक भी | लेकिन ध्यान के अभ्यास के लिए ऐसी कोई शर्त नहीं कि आप जिस धर्म का पालन कर रहे हैं वही करते रहे अथवा उसे छोड़ दें और कोई नया धर्म अपना लें |

ध्यान का अभ्यास शुद्ध सरल भाव से व्यवस्थित और क्रमबद्ध रीति से करने की आवश्यकता होती है | ध्यान के क्रम में जिन प्रमुख बातों को सीखने की आवश्यकता होती है वे हैं:

  • शरीर को किस प्रकार विश्राम कराया जाए |
  • ध्यान के लिए किस प्रकार सुविधापूर्ण और स्थिर आसन में बैठना है |
  • श्वास की प्रक्रिया को किस प्रकार लयबद्ध और स्थिर करना है |
  • मन की गाड़ी में चल रहे विचारों को किस प्रकार शान्तिपूर्वक देखना है |
  • अपने विचारों का किस प्रकार निरीक्षण करना है और उनमें से उन विचारों को किस प्रकार उन्नत करना है जो सकारात्मक हैं और आपकी उन्नति में सहायक हैं |
  • अच्छी बुरी जैसी भी परिस्थिति है उसमें किस प्रकार केन्द्रस्थ और अविचल रहा जाए |

आगे इन्हीं सब बातों पर विचार किया जाएगा ताकि आपका ध्यान अधिक आनन्ददायक, गहन और प्रभावशाली हो सके | यदि आप ध्यान की समझ, उचित प्रक्रिया और व्यवहार के साथ ध्यान का अभ्यास करते हैं तो आप स्वयं को चुस्त और ऊर्जा से भरा हुआ अनुभव करेंगे |

क्रमशः………