Narak Chaturdashi Roop Chaturdashi
नरक चतुर्दशी / रूप चतुर्दशी
पाँच पर्वों की श्रृंखला “दीपावली” की दूसरी कड़ी है नरक चतुर्दशी, जिसे छोटी दिवाली अथवा रूप चतुर्दशी के नाम से भी जाना जाता है और प्रायः यह लक्ष्मी पूजन से पहले दिन मनाया जाता है | किन्तु यदि सूर्योदय में चतुर्दशी तिथि हो और उसी दिन अपराह्न में अमावस्या तिथि हो तो नरक चतुर्दशी लक्ष्मी पूजन के दिन ही ब्रह्म मुहूर्त में मनाया जाता है | जैसे कि इस वर्ष कल दोपहर तक त्रयोदशी तिथि है और उसके बाद दिन में 3:49 के लगभग चतुर्दशी तिथि आएगी जो अगले दिन बारह बजकर तीस मिनट तक रहेगी | इस प्रकार सूर्योदय में चतुर्दशी तिथि 27 अक्तूबर यानी रविवार को है तथा चन्द्रदर्शन प्रातः 5:16 के लगभग है | सूर्योदय 6:29 पर है, इसलिए अभ्यंग स्नान इसी अवधि में किया जाएगा – कुल अवधि एक घंटा तेरह मिनट |
नरक चतुर्दशी विषय में कई पौराणिक कथाएँ और मान्यताएँ प्रचलित हैं | जिनमें सबसे प्रसिद्ध तो यही है कि इसी दिन भगवान कृष्ण ने नरकासुर नामक राक्षस का वध करके उसके बन्दीगृह से सोलह हज़ार एक सौ कन्याओं को मुक्त कराके उन्हें सम्मान प्रदान किया था | इसी उपलक्ष्य में दीपमालिका भी प्रकाशित की जाती है |
एक कथा कुछ इस प्रकार भी है कि यमदूत असमय ही पुण्यात्मा और धर्मात्मा राजा रन्तिदेव को लेने पहुँच गए | कारण पूछने पर यमदूतों ने बताया कि एक बार अनजाने में एक ब्राह्मण उनके द्वार से भूखा लौट गया था | अनजाने में किये गए इस पापकर्म के कारण ही उनको असमय ही नरक जाना पड़ रहा है | राजा रन्तिदेव ने यमदूतों से एक वर्ष का समय माँगा और उस एक वर्ष में घोर तप करके कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को पारायण के रूप में ब्रह्मभोज कराके अपने पाप से मुक्ति प्राप्त की | माना जाता है कि तभी से इस दिन को नरक चतुर्दशी के रूप में मनाया जाता है |
इस दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नानादि से निवृत्त होकर यमराज के लिए तर्पण किया जाता है और सायंकाल दीप प्रज्वलित किये जाते हैं | माना जाता है कि विधि विधान से पूजा करने वालों को सभी पापों से मुक्ति प्राप्त हो जाती है और अन्त में वे स्वर्ग के अधिकारी होते हैं |
हमारे विचार से “स्वर्ग” हमारा अपना स्वच्छ मन ही है – हमारी अपनी अन्तरात्मा | और सभी प्रकार की नकारात्मकताएँ ही वो सर्वविध पाप हैं जिनसे मुक्ति प्राप्त करने की बात बार बार की जाती है | जब हम पूजा पाठ या जप ध्यान इत्यादि कोई
सकारात्मक कर्म करते हैं तो हमारे भीतर की सारी नकारात्मकताएँ स्वतः ही दूर हो जाती हैं और हमें उनसे मुक्ति प्राप्त होकर हमारे भीतर सकारात्मकता विद्यमान हो जाती है – जिसके कारण फिर किसी भी प्रकार के ईर्ष्या द्वेष क्रोध मोह अथवा नैराश्य आदि के लिए वहाँ कोई स्थान नहीं रह जाता – और हमारी अन्तरात्मा अथवा हमारा अपना मन स्वर्ग की भाँति निर्मल और उत्साहित हो जाता है और तब जीवन में निरन्तर हर क्षेत्र में हम प्रगतिपथ पर अग्रसर होते जाते हैं |
जब हमारा मन स्वच्छ और निर्मल होगा, किसी प्रकार की नकारात्मकता, आलस्य इत्यादि के लिए वहाँ कोई स्थान नहीं रहेगा तो हमारा शरीर भी स्वस्थ रहेगा और हम निरन्तर प्रगति के पथ पर अग्रसर रहेंगे – जिसका तेज – जिसकी चमक हमारे पूरे व्यक्तित्व में निश्चित रूप से एक निखार ले आएगी – ऐसा निखार जैसा किसी प्रकार के सौन्दर्य प्रसाधनों के द्वारा सम्भव नहीं… यही है वास्तव में रूप चतुर्दशी का भी महत्त्व… और यही है वास्तविक अर्थों में समस्त प्रकार के पापों से मुक्ति प्राप्त करना…
हम सभी अपने भीतर के नकारात्मकता रूपी पाप से मुक्त होकर सकारात्मक और रचनात्मक विचारों को अपने मन में स्थान देकर आगे बढ़ते रहें यही हम सबके लिए हमारी कामना है…