A Good life

A Good life

A Good life

अच्छा जीवन

कल कोई मित्र घर पर आए हुए थे | बातों बातों में वो कहने लगे “हम तो और कुछ नहीं चाहते, बस इतना चाहते हैं कि हमारा बेटा अच्छा जीवन जीये… अब देखो जी वो हमारे साले का बेटा है, अभी तीन चार साल ही तो नौकरी को हुए हैं, और देखो उसके पास क्या नहीं है… एक ये हमारे साहबजादे हैं, इनसे कितना भी कहते रहो कि भाई से कुछ सीखो, पर इनके तो कानों पर जूँ नहीं रेंगती… इतना कहते हैं भाई सपने बड़े देखोगे तभी बड़े आदमी बनोगे…”

उनका बेटा बहू भी वहीं बैठे थे तो बेटा “क्या पापा आप भी न हर समय बस…” बोलकर वहाँ से उठ गया और दूसरे कमरे में जा बैठा | मैं सोचने लगी “अच्छा जीवन” की हमारी परिभाषा क्या है ? ये जो इनका बेटा अभी इनसे अप्रसन्न होकर यहाँ से उठकर चला गया क्या यही है “अच्छा जीवन” ? जबकि इसके पास भी तो सारी सुख सुविधाएँ हैं, फिर ये क्यों इसकी तुलना अपने भतीजे से कर रहे हैं ? क्या तथाकथित “बड़े सपने” देखना अच्छा जीवन है ? जितना कुछ अपने पास है उससे अधिक प्राप्त करने के सपने देखना अच्छा जीवन है ? जो कुछ अपने पास है उसे सुरक्षित रखने के सपने देखना अच्छा जीवन है ? क्योंकि “बड़े सपने देखकर ही तो बड़े कार्य करने में सक्षम हो पाएँगे | क्योंकि तब हम “बड़े सपने” सत्य करने का प्रयास करेंगे” |

बड़े सपने तो कुछ भी हो सकते हैं – जैसे अथाह धन सम्पत्ति तथा भोग विलास के भौतिक साधनों को एकत्र करना भी हो सकता है, अथवा आत्मोन्नति के लिए प्रयास करना… दूसरों की निस्वार्थ भाव से सेवा करना… अपने भीतर के सुख और सन्तोष में वृद्धि करना ताकि उसके द्वारा हम दूसरों के जीवन में भी वही सुख और सन्तोष प्रदान कर सकें आदि भी हो सकता है… और इस सबके लिए अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखना भी आवश्यक है…

यों देखा जाए तो सपने “छोटे या बड़े” हमारी कल्पना की तथा पारिवारिक और सामाजिक व्यवस्थाओं की उपज होते हैं | जबकि वास्तव में सपना सपना होता है – न छोटा न बड़ा… एक साकार हो जाए तो दूसरा आरम्भ हो जाता है… कई बार जीवन में कुछ ऐसी अनहोनी घट जाती है कि हमें लगने लगता है हमारे सारे स्वप्न समाप्त हो गए, कहीं खो गए | सम्भव है जीवन की आपा धापी में हम दूसरों की अपेक्षा कहीं पीछे छूट गए हों, अथवा अकारण ही दैवकोप के कारण हमारा कुछ विशिष्ट हमसे छिन गया हो, या ऐसा ही बहुत कुछ – जिसकी कल्पना मात्र से हम सम्भव हैं काँप उठें… किन्तु इसे दु:स्वप्न समझकर भूल जाने में ही भलाई होती है… एक “बड़ा” स्वप्न टूटा तो क्या ? फिर से नवीन स्वप्न सजाने होंगे… तभी हम आगे बढ़ सकेंगे… जीवन सामान्य रूप से जी सकेंगे… अपने साथ साथ दूसरों के भी सपनों को साकार कर सकेंगे…

और यही है वास्तव में वह अनुभूति जिसे हम कहते हैं “अच्छा जीवन”… हम जीवन में कितने भी सम्बन्ध बना लें, कितनी भी धन सम्पत्ति एकत्र कर लें, किन्तु कुछ भी सदा विद्यमान नहीं रहता… सब कुछ नश्वर है… मानव शरीर की ही भाँति… जो पञ्चतत्वों से निर्मित होकर पञ्चतत्व में ही विलीन हो जाता है… तो क्यों न कोई ऐसा “बड़ा” स्वप्न सजाया जाए जो हमारे आत्मोत्थान में सहायक हो…? ताकि हमारी “अच्छे जीवन” की परिभाषा सत्य सिद्ध हो सके…