Nag and Garud Panchami and Kalki Jayanti
नाग और गरुड़ पञ्चमी तथा कल्कि जयन्ती
श्रावण शुक्ल पञ्चमी नाग पञ्चमी और गरुड़ पञ्चमी के नाम से जानी जाती है | सर्प और गरुड़ दोनों ही महर्षि कश्यप की दो पत्नियों कद्रू और विनता की सन्तानें थीं जो दोनों ही दक्ष प्रजापति की पुत्रियाँ थीं | अब आप लोग सोचेंगे कि नाग और गरुड़ तो परस्पर शत्रु हैं फिर एक ही तिथि दोनों के लिए समर्पित कैसे हो सकती है ? इसका उत्तर है कि आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, गुजरात और महाराष्ट्र में कई स्थानों पर इस दिन गरुड़ देव की पूजा की जाती है और अन्य स्थानों पर नाग देवता की पूजा का चलन है | भारत ही एक ऐसा देश है जहाँ हर जड़ चेतन में आत्मा के दर्शन किये जाते हैं और उनको किसी प्रकार की कोई हानि न पहुँचे इस भावना के साथ उनकी पूजा अर्चना की जाती है |
सबसे पहले उत्तर भारत में सर्वाधिक प्रचलित नाग पञ्चमी – इस दिन भगवान शिव के साथ साथ उनके कण्ठहार नागों की भी पूजा की जाती है | है न कितनी विचित्र बात कि जिन सर्पों को देखते ही लोग भयभीत हो जाते हैं उन्हीं की पूजा अर्चना भी की जाती है | एक कहावत है – भय बिन होत न प्रीत | तो यदि व्यावहारिक दृष्टि से देखा जाए तो सर्पों के भय के कारण ही नाग देवता की पूजा आरम्भ हुई होगी | पौराणिक दृष्टि से – भविष्य पुराण और दूसरे अन्य पुराणों में एक ओर नाग को देव माना गया है तो दूसरी ओर भगवान शंकर के गले का हार होने के साथ ही भगवान विष्णु की शैया भी हैं और समुद्र मन्थन के समय मथानी बने मन्दराचल पर्वत को खींचने के लिए वासुकि नाग रज्जु भी बन गए थे | कहने का अभिप्राय है कैसी भी परिस्थिति हो – नाग सदा भला ही करते हैं | पुराणों में तो नाग लोक की चर्चा भी आती है |
भविष्य पुराण में एक कथा आती है कि राजा परीक्षित तक्षक नाग के डसने पर स्वर्गवासी हुए थे इस कारण उनके पुत्र जनमेजय नागों से क्रोधित थे और समूचे नाग वंश को ही नष्ट कर देना चाहते थे | इसके लिए उन्होंने असाध्य तप और यज्ञ आरम्भ कर दिया | तक्षक को जब ये पता चला तो वो अपने वंश के साथ पाताल में जा छिपा | लेकिन जनमेजय का यज्ञ इतना शक्तिशाली था कि नाग स्वयं ही उस ओर खिंचे चले आ रहे थे अपने प्राणों की आहुति देने के लिए | तब तक्षक ने सभी देवताओं से प्रार्थना की कि किसी तरह उन्हें बचा लिया जाए | तब ब्रह्मा जी ने उन्हें वरदान दिया कि ऋषि जरत्कारू और नाग देवी मनसा के यहाँ उत्पन्न पुत्र आस्तिक तक्षक के प्राणों की रक्षा करेगा | ऐसा ही हुआ | आस्तिक ने किसी प्रकार जनमेजय का यज्ञ समाप्त कराके नाग वंश और तक्षक के प्राण बचाए |
ऐसी मान्यता है कि जिस दिन ब्रह्मा जी ने तक्षक को वरदान दिया था उस दिन भी पञ्चमी तिथि थी और जिस दिन तक्षक की रक्षा हुई उस दिन भी पञ्चमी तिथि ही थी | यही कारण है कि पञ्चमी तिथि नाग देवता के लिए समर्पित होती है | श्रावण माह की पञ्चमी का विशेष महत्त्व इसलिए भी हो जाता है कि वर्षा के कारण साँप अधिक निकलते हैं – तो यदि उनकी पूजा करेंगे तो उनका वध करने की भावना ही मन में नहीं आएगी | क्योंकि साँपों के काटने से अधिक लोग नहीं मरते जितना उनके भय से मृत्यु होती है | इस प्रकार से देखा जाए तो यह पर्व प्रकृति के एक विशेष प्राणी की रक्षा भी करता है और इस प्रकार से प्रकृति की ही रक्षा करने का प्रयास किया जाता है |
अब गरुड़ पञ्चमी – गरुड़ को भगवान विष्णु का वाहन माना जाता है और नाग पञ्चमी की ही भाँति इस व्रत को भी महिलाएँ अपनी सन्तान के मंगल कामना तथा सुखद वैवाहिक जीवन के लिए ही करती हैं | गरुड़ के हृदय में अपनी माँ विनिता के लिए जो प्रेम स्नेह और समर्पण की भावना थी और जिस प्रकार उन्होंने अपनी माता का श्राप से उद्धार कराया उसी के कारण उन्हें मान दिया जाता है और उनकी पूजा अर्चना की जाती है |
गरुड़ को भगवन विष्णु का वाहन मानने के पीछे एक बहुत ही अच्छा आध्यात्मिक तर्क भी है | ऐसा माना जाता है कि जो व्यक्ति सदाचार और धर्म के मार्ग से नहीं डिगता – भक्ति और ज्ञान उसके दो पंखों के समान होते हैं, और गरुड़ की जो पुच्छ होती है वो ऐसी शक्ति है जो व्यक्ति को कर्म योग की ओर अग्रसर करती है | और उस सबसे भी ऊपर गरुड़ पर विराजमान भगवान विष्णु – व्यक्ति का अन्तिम लक्ष्य – परमात्मा से साक्षात्कार | इसे इस प्रकार भी समझ सकते हैं कि मनुष्य बुद्धि के द्वारा ज्ञानार्जन करता है, उसी ज्ञान के माध्यम से शरीर के द्वारा समस्त सांसारिक सुखों की प्राप्ति का उपाय करता है तथा मन के द्वारा उन समस्त सांसारिक सुखों का उपभोग करता है | इस प्रकार बुद्धि और कर्म तथा उनके द्वारा उपलब्ध सांसारिक सुख सब एक दूसरे का परिणाम ही होते हैं | इस प्रकार मन और बुद्धि व्यक्ति के दो पंख हो गए जो उसे कर्म करने के लिए प्रेरित करते हैं | यदि व्यक्ति साधना करे तो अपने कर्म करने वाली शरीर रूपी पुच्छ से बुद्धि और मन अर्थात ज्ञान और भौतिक सुखों में सन्तुलन स्थापित करके सबसे ऊपर विराजमान ईश्वर प्राप्ति की दिशा में प्रयासरत हो सकता है |
कल्कि अवतार की बात करें तो पुराणों के अनुसार जब कलियुग अपने चरम पर होगा तब श्रावण शुक्ल पञ्चमी को कलियुग का विनाश करके सृष्टि की एक अन्य नवीन रचना रचने के लिए – अर्थात कलियुग और सतयुग के सन्धिकाल में कल्कि भगवान के रूप में भगवान विष्णु अवतरित होंगे और इस प्रकार भगवान श्री कृष्ण के प्रस्थान के बाद आरम्भ हुए कलियुग का अन्त होगा | यहाँ एक विशेष रूप से ध्यान देने की बात ये है कि हिन्दू धर्म में उन अवतारों के जन्मदिन मनाए जाते हैं जो पूर्व में अवतरित हो चुके हैं, किन्तु भगवान विष्णु का कल्कि के रूप में अवतार ऐसा प्रथम अवतार है जिसकी जयन्ती अवतार से पूर्व ही प्रत्येक वर्ष मनाई जाती है | श्रीमद्भागवत महापुराण के बारहवें स्कन्द के द्वितीय अध्याय के सोलहवें श्लोक से लेकर अध्याय के अन्त तक कल्कि अवतार तथा उसके शुभ परिणामों के विषय में ही शुकदेव ने परीक्षित को बताया है… जिसमें कल्कि अवतार कहाँ तथा किस दम्पति के घर में होगा इसके विषय में भी बताया गया है…
इत्थं कलौ गतप्राये जने तु खरधर्मिणि |
धर्मत्राणाय सत्त्वेन भगवान् अवतरिष्यति |||
चराचर गुरोर्विष्णोः ईश्वरस्याखिलात्मनः ।
धर्मत्राणाय साधूनां जन्म कर्मापनुत्तये ||
संभलग्राम मुख्यस्य ब्राह्मणस्य महात्मनः |
भवने विष्णुयशसः कल्किः प्रादुर्भविष्यति ||
यदा चन्द्रश्च सूर्यश्च तथा तिष्यबृहस्पती |
एकराशौ समेष्यन्ति भविष्यति तदा कृतम् ||
इन श्लोकों का अभिप्राय यही है कि कलियुग जब अपने चरम पर होगा तब धर्म की रक्षा के लिए सर्वव्यापक सर्वशक्तिमान भगवान विष्णु कल्कि के रूप में अवतरित होंगे | उस समय गुरु, सूर्य और चन्द्रमा तीनों एक साथ पुष्य नक्षत्र पर भ्रमण कर रहे होंगे |
इस समस्त व्याख्या का तात्पर्य यही है कि व्यक्ति का सबसे बड़ा धर्म होता है उसके कर्तव्य कर्मों का पूर्ण निष्ठा से निर्वाह करना | जब हम अपने उत्तरदायित्वों के पूर्ण निष्ठा से निर्वाह नहीं कर पाते और अपने मार्ग से भटक जाते हैं वही समय कलियुग कहलाता है और उसी का अन्त करने के लिए भगवान को कल्कि के रूप में अवतरित होना पड़ता है |
कल श्रावण शुक्ल पञ्चमी अर्थात नाग और गरुड़ पञ्चमी के पर्व हैं | आज दिन में 3:26 के लगभग बव करण और सिद्ध योग में पञ्चमी तिथि का आगमन होगा जो कल दिन में 1:42 तक रहेगी | कल सूर्योदय 5:49 पर कर्क लग्न में होगा | तब से लेकर आठ बजकर छब्बीस मिनट अर्थात सिंह लग्न की समाप्ति तक विशेष पूजा का मुहूर्त विद्वानों ने माना है |
अस्तु, हम सभी अपने अपने कर्तव्य कर्मों का निर्वाह करते हुए धर्म के मार्ग पर अग्रसर रहें… समस्त जीवों में अपनी ही आत्मा के दर्शन करते हुए किसी को भी किसी प्रकार की हानि पहुँचाए बिना तथा किसी भी प्रकार के भय से मुक्त रहते हुए अपने लक्ष्य के प्रति अग्रसर रहें… इसी भावना से सभी को नाग और गरुड़ पञ्चमी तथा कल्कि जयन्ती की अनेकशः हार्दिक शुभकामनाएँ…