अनन्त चतुर्दशी
भाद्रपद मास के शुक्लपक्ष की चतुर्दशी को अनन्त चतुर्दशी कहा जाता है । इस वर्ष रविवार 19 सितम्बर को सूर्योदय से पूर्व छह बजे के लगभग चतुर्दशी तिथि का आगमन होगा जो अगले दिन बीस सितम्बर को सूर्योदय से पूर्व 5:28 तक रहेगी | 19 और 20 सितम्बर को सूर्योदय छह बजकर आठ मिनट पर होगा | अतः छह बजकर आठ मिनट से ही गर करण और धृति योग में पूजा का मुहूर्त आरम्भ होगा जो बीस तारीख को पाँच बजकर अट्ठाईस मिनट तक रहेगा | इस समय अत्यन्त शुभ रवि योग चल रहा होगा तथा कन्या राशि का उदय होने के साथ ही लग्न में सूर्य, मंगल तथा स्वराशिगत बुध गोचर कर रहे होंगे जिस कारण से मंगल बुधादित्य योग बन रहा है | शुक्र और शनि भी अपनी अपनी राशियों में गोचर कर रहे होंगे | इस दिन भगवान विष्णु के अनन्त रूप की उपासना की जाती है अर्थात ऐसा रूप जिसका न अन्त है न आदि | यह रूप सृष्टि की उत्पत्ति से भी पूर्व का ऐसा रूप माना जाता है जिसमें भगवान विष्णु पूर्ण विश्राम की मुद्रा में शेषनाग की शैया पर शयन कर रहे हैं | इसी दिन गणेश विसर्जन भी है | अस्तु, सभी को अनन्त चतुर्दशी और गणेश विसर्जन की हार्दिक शुभकामनाएँ…
मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु अनन्त पद्मनाभ के रूप में सर्प के ऊपर अनन्त शयन मुद्रा में प्रकट हुए थे | माना जाता है कि इस व्रत को करने से सभी संकट “अनन्त काल” अर्थात सदा के लिए दूर हो जाते हैं | इस दिन सर्वप्रथम कलश स्थापना करके उस पर एक पात्र में दूर्वा रखी जाती है | फिर उसमें सूत के चौदह धागों से बने हुए अनन्त सूत्र को रखकर कुमकुम केसर आदि के द्वारा षोडशोपचार विधि से उसकी पूजा करके उसे “ॐ अनन्तायनम:” मन्त्र के उच्चार के साथ भगवान विष्णु को समर्पित किया जाता है | उसके बाद…
“अनन्तसागरमहासमुद्रे मग्नान्समभ्युद्धरवासुदेव |
अनन्तरूपे विनियोजितात्माह्यनन्तरूपाय नमो नमस्ते ||”
मन्त्र का जाप करके पुरुष उस सूत्र को अपनी दाहिनी कलाई पर और महिलाएँ अपनी बाँई कलाई पर बाँध लेती हैं | कुछ स्थानों पर यह सूत्र चौदह धागों का न होकर चौदह गाँठों वाला भी होता है | इन चौदह धागों अथवा गाँठों को चौदह भुवनों अर्थात सूक्ष्म लोकों का प्रतीक माना जाता है | ये चौदह लोक भू:, भुवः, स्वः, मह:, जन:, तप:, ब्रह्म, अतल, वितल, सतल, रसातल, तलातल, महातल और पाताल माने गए हैं | इस प्रकार अनन्त सूत्र हर धागा अथवा गाँठ एक एक लोक का प्रतिनिधित्व करता है और सम्भवतः इसीलिए मान्यता है कि इस अनन्त सूत्र को बाँधकर चौदहों भुवनों की समृद्धि प्राप्त हो जाती है तथा मनुष्य के सभी क्लेश समाप्त हो जाते हैं | इसके अतिरिक्त कुछ स्थानों पर दूर्वा का सर्प बनाकर उसे बाँस की टोकरी में रखकर उसकी पूजा भी की जाती है |
कहा जाता है कि जब पाण्डव द्यूत क्रीड़ा में अपना सर्वस्व हारकर वनों में कष्ट भोग रहे थे उस समय भगवान श्री कृष्ण ने उन्हें अनन्त चतुर्दशी का व्रत करने का सुझाव दिया था | धर्मराज युधिष्ठिर ने अपने भाइयों तथा द्रौपदी के साथ पूरे विधि-विधान से यह व्रत किया तथा अनन्त सूत्र धारण किया | जिसके कारण उनके सभी संकट समाप्त हो गए | इसके अतिरिक्त भी अन्य कथाएँ इस व्रत के सन्दर्भ में कही सुनी जाती हैं | यह व्रत किसी जलाशय के निकट किया जाने का विधान है | किन्तु यदि ऐसा सम्भव न हो तो अपने निवास पर भी इस व्रत को किया जा सकता है | इस दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है |
जैन धर्म में भी अनन्त चतुर्दशी का बहुत महत्त्व है | इस दिन चौदहवें तीर्थंकर अनन्तनाथ की पूजा :ॐ ह्रीं श्री अनन्तनाथ जिनेंद्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा” अथवा “ॐ ह्रीं अर्हं हं स: अनन्त केवलिभ्यो नम:” अथवा “ॐ नमोSर्हते भगवते अणंताणंतसिज्झधम्मे भगवतो महाविज्जा-महाविज्जा अणंताणंतकेवलिए अणंतकेवलणाणे अणंतकेवलदंसणेअणुपुज्जवासणे अणंते अणंतागमकेवली स्वाहा” मन्त्र से की जाती है | चौदह वर्षों तक हर वर्ष अनन्त चतुर्दशी का व्रत करके इसका समापन उद्यापन किया जाता है |
गणेश चतुर्थी और गणेश विसर्जन के सम्बन्ध में मान्यता है कि महर्षि वेदव्यास ने भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को श्री गणेश को दस दिनों के लिए महाभारत की कथा सुनानी आरम्भ की थी जिसे गणेश जी साथ साथ लिखते चले गए थे | इस बीच गणेश जी को तीव्र ज्वर हो गया जिसकी शान्ति के लिए वेदव्यास जी ने उन्हें सरोवर के शीतल जल में दुबकी लगवा दी थी | इसी के प्रतीक स्वरूप भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को गणेश जी का आह्वाहन और स्थापन किया जाता है और दस दिनों के बाद यानी भाद्रपद शुक्ल चतुर्दशी को पुनः आगमन की प्रार्थना के साथ उनकी प्रतिमा का विसर्जन किया जाता है |
कथाएँ और मान्यताएँ चाहे जितनी भी हों, भगवान विष्णु, भगवान अनन्तनाथ और ऋद्धि सिद्धि दाता भगवान श्री गणेश सभी का कल्याण करें यही कामना है… सभी को अनन्त चतुर्दशी और गणेश विसर्जन की एक बार पुनः हार्दिक शुभकामनाएँ…