अहोई अष्टमी

अहोई अष्टमी

अहोई अष्टमी

आश्विन मास में भगवती के नौ रूपों की उपासना का पर्व शारदीय नवरात्र आरम्भ हो जाते हैं | तत्पश्चात विजया दशमी और शरद पूर्णिमा के साथ आश्विन मास सम्पन्न होता है तो करक चतुर्थी और अहोई अष्टमी के साथ ही पाँच पर्वों की श्रृंखला दीपावली तथा छठ पूजा के उत्सव आरम्भ हो जाते हैं | उसके पश्चात कार्तिक पूर्णिमा को होता है गुरुपर्व – सिखों के प्रथम गुरु नानकदेव जी का जन्म महोत्सव – जिसे प्रकाश पर्व के नाम से भी जाना जाता है | ये सभी पर्व और उत्सव धार्मिक तथा आध्यात्मिक भावनाओं से ओत प्रोत होते हैं | यही तो है भारतीय दर्शन की विशेषता |

करवाचौथ के चार दिन बाद दीपावली से आठ दिन पूर्व कार्तिक कृष्ण अष्टमी अहोई अष्टमी के रूप में मनाई जाती है | यह व्रत भी करवाचौथ की ही भाँति उत्तरी और पश्चिमी अंचलों का पर्व है और प्रायः ऐसी मान्यता है कि जिस दिन दीपावली हो उसी दिन अहोई अष्टमी का व्रत किया जाना चाहिए | यद्यपि तिथि के घटने अथवा बढ़ने की स्थिति में सम्भव है इस नियम का पालन न भी हो सके | तथापि प्रायः होता इसी प्रकार है | इस वर्ष भी अहोई अष्टमी का व्रत सोमवार सत्रह अक्तूबर को है और दीपावली भी सोमवार को ही है | अष्टमी तिथि का उदय प्रातः 9:30 पर होगा तथा 18 अक्तूबर को 11:57 तक रहेगी | क्योंकि इस व्रत का भी पारायण सायंकाल ही किया जाता है अतः 17 अक्तूबर को अहोई अष्टमी का व्रत महिलाएँ करेंगी | तिथि उदय के समय बालव करण और शिव योग रहेगा | पूजा का मुहूर्त सायं 5:50 से 7:05 तक है | अधिकाँश महिलाएँ तारा देखकर व्रत का पारायण करती हैं | तारक दर्शन सायं छह बजकर तेरह मिनट से सम्भव है तथा जो लोग चन्द्रमा को अर्घ्य देकर व्रत का पारायण करती हैं उनके लिए रात्रि 11:24 के लगभग चन्द्र दर्शन का समय है |

इस दिन सभी माताएँ अपनी सन्तानों की दीर्घायु, सुख समृद्धि तथा मंगल कामना के लिए सारा दिन उपवास रखकर सायंकाल अहोई माता की पूजा करके लोक परम्परा अथवा अपने अपने परिवार की परम्परा के अनुसार तारों अथवा चन्द्रमा को अर्घ्य देकर व्रत का पारायण करती हैं | उत्तर भारत में ही कई स्थानों पर नि:सन्तान माताएँ सन्तान प्राप्ति की कामना से भी इस व्रत का पालन करती हैं | कुछ परिवारों में माता पिता दोनों ही सन्तान के सुख सौभाग्य की कामना से इस व्रत को करते हैं | इस व्रत में पूजा के समय अहोई अष्टमी व्रत से सम्बन्धित कथा सुनने की भी प्रथा है |

मूलतः सभी अष्टमी माँ दुर्गा को समर्पित होती हैं और अहोई माता भी शक्ति का ही एक रूप है जो समस्त कष्टों से परिवार की रक्षा करके सुख समृद्धि प्रदान करती हैं |

वैष्णव इस दिन बहुला अष्टमी मनाते हैं जो मुख्यतः राधा-कृष्ण को समर्पित है | माना जाता है कि वृन्दावन में स्थित राधा कुण्ड और श्याम कुण्ड बहुला अष्टमी के दिन ही प्रकट हुए थे | अहोई अष्टमी की ही तरह इन कुण्डों के विषय में भी मान्यता है कि नि:सन्तान लोग यदि आज के दिन अर्द्धरात्रि को (निशीथ काल में) इन कुण्डों में स्नान करते हैं तो उन्हें सन्तान की प्राप्ति होती है |

एक और बात, केवल भारत में ही नहीं, बल्कि संसार के हर देश में जो भी धार्मिक कथाएँ कही सुनी या पढ़ी जाती हैं उन सबके पीछे कोई न कोई नैतिक शिक्षा अवश्य होती है | कथाओं के माध्यम से तथा धर्म की भावना से जो शिक्षाएँ जन साधारण को दी जाती हैं वह सहजगम्य होती हैं, इसीलिए सम्भवतः इस प्रकार की नैतिक कथाओं को पर्वों के साथ जोड़ा गया होगा | अहोई अष्टमी की भी अलग अलग स्थानीय परम्पराओं – अलग अलग स्थानीय जीवन शैलियों तथा पारिवारिक प्रथाओं के आधार पर कई तरह की कहानियाँ प्रचार में हैं जिनको व्रत की पूजा के दौरान पढ़ा और सुना जाता है | यदि उन पर ध्यान दें तो पाएँगे कि उन सबमें तीन नैतिक शिक्षाएँ प्रमुख रूप से निहित हैं – एक ये कि कोई भी कार्य को भली भाँति सोच विचार कर करना चाहिए, बिना सोचे समझे किया गया कार्य अन्त में कष्ट का कारण बनता है | दूसरी ये कि जीव ह्त्या नहीं करनी चाहिए, यदि भूल से ऐसा हो भी जाए तो उसका पता चलने पर हृदय से उसके लिए पश्चात्ताप तथा प्रायश्चित अवश्य करना चाहिए | तीसरी ये कि सभी जीवों में अपनी आत्मा मानते हुए सब पर स्नेह का भाव रखते हुए सबकी सेवा करनी चाहिए |

हम सभी सोच विचार कर हर कार्य करते हुए, जीवमात्र के प्रति स्नेह का भाव रखते हुए तथा जीव ह्त्या से बचते हुए आगे बढ़ते रहें, साथ ही यदि किसी कारणवश तारे अथवा चन्द्रमा के दर्शन न भी हो पाएँ तो कोई बात नहीं – प्रकृति अपने रूप बदलती रहती है और हमें उसके इस परिवर्तन का स्वागत भी करना चाहिए | तारे अथवा चन्द्रमा के दर्शन न होने की स्थिति में अपने परिवार की प्रथा के अनुसार पूजा अर्चना आदि से निवृत्त होकर इनके उदय होने के समय के कुछ देर बाद इनका मन ही मन ध्यान करके अर्घ्य समर्पित कर सकते हैं | सभी माताओं तथा उनकी सन्तानों को अहोई अष्टमी और बहुला अष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ…