गोवर्धन पूजा और अन्नकूट
धन्वन्तरी त्रयोदशी, नरक चतुर्दशी तथा लक्ष्मी पूजन के बाद पाँच पर्वों की श्रृंखला दीपावली की चतुर्थ कड़ी होती है कार्तिक कृष्ण प्रतिपदा – जिसे बलि प्रतिपदा भी कहा जाता है – यानी दीपावली के अगले दिन की जाने वाली गोवर्धन पूजा और अन्नकूट | इस वर्ष चार नवम्बर को अर्द्धरात्र्योत्तर 2:44 मिनट (पाँच नवम्बर सूर्योदय से पूर्व) के लगभग नाग करण और आयुष्मान योग में प्रतिपदा तिथि का आगमन होगा जो रात्रि ग्यारह बजकर पन्द्रह मिनट तक रहेगी | गोवर्धन पूजा प्रायः अपराह्न में की जाती है | पाँच नवम्बर को दोपहर बाद 3:22 से 5:33 तक गोवर्धन पूजा का मुहूर्त है | कुछ लोग प्रातःकाल भी गोवर्धन पूजा करते हैं | उनके लिए मुहूर्त है प्रातःकाल 6:36 से 8:47 तक | इस त्यौहार का भारतीय लोक जीवन में काफी महत्व है | इसके पीछे एक कथा प्रसिद्ध है कि एक बार बृज में मूसलाधार वर्षा के कारण बाढ़ जैसी स्थिति उत्पन्न हो गई तो उससे बचने के लिए कृष्ण समस्त बृजवासियों को गोवर्धन पर्वत के नीचे ले गए और सात दिन तक सब उसी पर्वत के नीचे रहकर मूसलाधार वर्षा से स्वयं को बचाते रहे | तब कृष्ण ने समस्त गोप ग्वालों को अपने प्राकृतिक संसाधनों की महत्ता बताई कि हमारे नदी, पर्वत, वन, गउएँ, वनस्पतियाँ सब प्राणिमात्र के लिए कितने जीवनोपयोगी हैं | तो क्यों न हम इन्द्र जैसे देवताओं की पूजा करने की अपेक्षा अपने इन प्राकृतिक संसाधनों की पूजा अर्चना करें |
इस पर्व में प्रकृति के साथ मानव का सीधा सम्बन्ध दिखाई देता है | गोवर्धन पूजा में गौ धन यानी गायों की पूजा की जाती है | शास्त्रों में गाय को गंगा नदी के समान ही पवित्र माना गया है | साथ ही लक्ष्मी का स्वरूप भी गाय को माना जाता है | जिस प्रकार देवी लक्ष्मी को समस्त प्रकार के सुखों को प्रदान करने वाली माना गया है उसी प्रकार गाय भी व्यक्ति के लिए अनेक प्रकार से सुख समृद्धिदायक होती है | गाय के दूध से जहाँ स्वास्थ्य लाभ होता है वहीं उसका गोबर खाद में काम आने के अतिरिक्त अनेक प्रकार के औषधीय गुणों से युक्त भी माना जाता है | साथ ही गाय में समस्त देवताओं का वास भी माना जाता है | इस प्रकार गौ सम्पूर्ण मानव जाति के लिए पूजनीय और आदरणीय है | गौ के प्रति श्रद्धा प्रकट करने के लिए ही कार्तिक शुक्ल पक्ष प्रतिपदा के दिन गोर्वधन की पूजा की जाती है और इसके प्रतीक के रूप में गाय की |
वैदिक संस्कृति में गौ का बहुत महत्त्व माना गया है | आश्रमों के नित्य प्रति के कार्यों में गौ से प्राप्त प्रत्येक वस्तु का उपयोग होता था इसलिए आश्रमों में गौ पालन अनिवार्य था | पंचगव्य का प्रयोग कायाकल्प करने के लिए किया जाता था | आयुर्वेद ग्रन्थों में भी इसका वर्णन उपलब्ध होता है | अथर्ववेद में तो पूरा का पूरा सूक्त ही गौ को समर्पित है |
“गावो भगो गाव इन्द्रो मे” (अथर्ववेद सा. 4/21/5) अर्थात मेरा सौभाग्य और मेरा ऐश्वर्य दोनों गायों से ही है | “स्व आ दमे सुदुधा पस्य धेनु:” (ऋग्वेद 2/35/7) अर्थात अपने घर में ही उत्तम दूध देने वाली गौ हो |
इसके अतिरिक्त गौ को रुद्रों की माता, वसुओं की कन्या तथा आदित्यों की बहिन माना गया है और ऐसी भी मान्यता है कि गाय की नाभि में अमृत होता है | इस प्रकार अनगिनती मन्त्र गौ की महिमा से युक्त वैदिक और पौराणिक साहित्य में उपलब्ध होते हैं | साथ ही गाय में समस्त देवों का वास भी माना गया है | और ऐसा सम्भवतः गौ की उपादेयता के कारण ही माना गया होगा |
इसे बलि पूजा अथवा बलि पड़वा के रूप में भी जाना जाता है | भगवान विष्णु के पंचम अवतार वामन ने अहंकारी राजा बलि पर विजय प्राप्त करके उसे पाताल में भेज दिया था | बाद में बलि ने वामन की उपासना की और उनसे वर्ष में एक बार पाताल लोक से पृथिवी पर आने का वरदान प्राप्त किया | मान्यता है कि इसी दिन बलि पाताल लोक से पृथिवी पर आता है |
इन समस्त मान्यताओं का अभिप्राय यही है कि मनुष्य को बिना किसी अभिमान के समस्त प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग सम्मान के साथ करना चाहिये… तभी प्रकृति भी हमारे अनुकूल बनी रहेगी… अस्तु ! हम सभी प्रकृति का… सभी जीव जन्तुओं का… पशुओं का… प्राणी मात्र का सम्मान करने की भावना मन में बनाए रखें और निरभिमान रहे इसी भावना के साथ सभी को गोवर्धन पूजा की हार्दिक मंगलकामनाएँ…