सूर्योपासना का चतुर्दिवसीय पर्व
आदिदेव नमस्तुभ्यं प्रसीद मम भास्कर,
दिवाकर नमस्तुभ्यं, प्रभाकर नमोस्तुते |
सप्ताश्वरथमारूढ़ं प्रचण्डं कश्यपात्मजम्,
श्वेतपद्यधरं देव तं सूर्यप्रणाम्यहम् ||
दीपावली के पाँचों पर्व हर्षोल्लास के साथ सम्पन्न होने के बाद कार्तिक शुक्ल चतुर्थी से सूर्योपासना का चार दिवसीय छठ पूजा पर्व आरम्भ हो जाता है… इन चार दिनों में सारा वातावरण हमहूँ अरघिया देबई हे छठी मैया, केलवा के पात पर, जल्दी उगी आज आदित गोसाईं, आदित लिहो मोर अरगिया, दरस दिखाव ए दीनानाथ, उगी है सुरुजदेव, हे छठी मैया तोहर महिमा अपार, कांच ही बाँस के बहंगिया बहंगी चालकत जाए जैसे अनेकों मधुर लोकगीतों से गुंजायमान हो उठता है |
अच्छी फसल, और सन्तान तथा परिवार के सुख की कामना से किया जाने वाला सूर्यदेव की आराधना का पर्व छठ पूजा चार दिवसीय पर्व होता है | प्रथम दिवस यानी चतुर्थी तिथि को नहाय खाय होता है | जैसा कि नाम से ही विदित होता है – इस दिन स्नानादि का विशेष महत्त्व होता है | इस दिन व्रत करने वाला व्यक्ति स्नानादि से निवृत्त होकर सात्विक भोजन करता है तथा चार दिनों तक पृथिवी पर शयन करता है | इस दिन विशेष रूप से लौकी की सब्ज़ी और चावल बनाए जाते हैं तथा सूर्य देवता को साक्षी मानकर व्रत का संकल्प लिया जाता है | लौकी को बहुत पवित्र माना जाता है तथा इसमें पर्याप्त मात्रा में जल होने के कारण इसके सेवन से आने वाले दिनों में व्रती को बल प्राप्त होता है |
दूसरे दिन पञ्चमी तिथि को खरना होता है जिसमें मिट्टी के चूल्हे पर गुड़ तथा साठी के चावल से खीर बनाई जाती है | साथ ही मूली, केला तथा पूरियाँ आदि रखकर छठी मैया की पूजा की जाती है | व्रती भी सारा दिन उपवास रखकर रात्रि को यही भोजन ग्रहण करता है |
तीसरे दिन षष्ठी तिथि को छठ पूजा होती है | दिन भर व्रत रखकर सायंकाल नदीतट पर जाकर सूर्यदेव को अर्घ्य समर्पित किया जाता है | इस दिन सूर्य देवता तथा छठ मैया को धन्यवाद स्वरूप कोसी भरने की भी प्रथा है | इसके लिए सबसे पहले सात गन्नों का एक छत्र सा बनाकर उसके नीचे मिट्टी के हाथी को रखकर उस पर सिंदूर लगाया जाता है | फिर उसके पास एक कोसी अर्थात घड़े में लाल वस्त्र में ठेकुआ – एक प्रकार की गुड़ और आटे की मीठी रोटी या पूरी, फल, सुथनी और केराव आदि भरकर रखा जाता है | उसके बाद उसके चारों ओर दीप प्रज्वलित किये जाते हैं तथा एक सूप में अर्घ्य की सामग्री के साथ मिट्टी अथवा ताँबे के पात्र रखे जाते हैं | अन्त में अग्नि प्रज्वलित करके सामग्री से हवन किया जाता है |
फिर अगले दिन यानी सप्तमी तिथि को ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करके उदित होते सूर्य को अर्घ्य प्रदान करके व्रत का पारायण किया जाता है | उस दिन भी कोसी भरने की प्रक्रिया दोहराई जाती है | भगवान भास्कर को जल देते समय कमर तक नदी अथवा तालाब के पानी में खड़े रहकर “ॐ सूर्याय नमः” अथवा “ॐ घृणि: सूर्याय नम:” या “ॐ घृणि: सूर्य: आदित्य:” अथवा “ॐ ह्रीं ह्रीं सूर्याय, सहस्त्रकिरणाय मनोवांछित फलं देहि देहि” इत्यादि मन्त्रों का जाप किया जाता है | या फिर गायत्री मन्त्र का जाप किया जाता है | इस प्रकार वास्तविक रूप से देखा जाए तो छठ पर्व केवल व्रत मात्र न होकर व्रती के लिए एक कठिन तपस्या भी है |
इस वर्ष यह पर्व सोमवार कार्तिक शुक्ल चतुर्थी यानी कल आठ नवम्बर से घर की साफ़ सफाई और नहाय खाय से आरम्भ होगा | नौ नवम्बर को उदया तिथि पञ्चमी है और इस दिन खरना करके व्रत आरम्भ किया जाएगा | साथ ही षष्ठी की छठ पूजा भी इसी दिन की जाएगी | दस नवम्बर को छठ व्रत का मुख्य पूजन होगा और अस्ताचलगामी भगवान सूर्य को अर्घ्य प्रदान किया जाएगा | अन्त में 11 नवम्बर को उदित होते हुए सूर्य को अर्घ्य देने के साथ पर्व सम्पन्न होगा |
जैसा कि सभी जानते हैं, छठ पर्व हिन्दू समुदाय के लिए मूलतः भगवान सूर्य की
आराधना का पर्व है | वास्तव में देखा जाए तो हिन्दू धर्म के देवताओं में केवल सूर्य और चन्द्रमा ही ऐसे देवता हैं जिन्हें मूर्त रूप में देखा तथा अनुभव किया जा सकता है | सम्भवतः इसीलिए विभिन्न पर्वों पर इन्हीं की उपासना का विधान है | साथ ही एक और उदात्त भावना भी है कि केवल उगते हुए अथवा चढ़ते हुए सूर्य की ही पूजा नहीं की जाती, अपितु अस्त होते सूर्य को भी नमन किया जाता है – धन्यवाद देते हुए कि उनके कारण हमें जीवनी शक्ति प्राप्त होती है | कितना सार्थक सन्देश इन दोनों सन्ध्या की पूजा में निहित है कि किसी भी प्राणी को केवल उसके चढ़ते हुए स्वरूप के कारण ही सम्मान नहीं देना चाहिए – उसके प्रतिकूल समय में भी उसके द्वारा किये गए कल्याण कार्यों के कारण उसे धन्यवाद देते हुए उसका सम्मान किया जाना चाहिए – तभी सम्मान की सार्थकता है, अन्यथा औपचारिकता मात्र है | साथ ही इन पर्वों के द्वारा इस वास्तविकता का भी भान होता है कि प्राचीन काल में प्रकृति के प्रति कितना अधिक सम्मान का भाव न केवल समाज के एक विशिष्ट वर्ग अपितु जन साधारण के मन में भी था – आज पर्यावरण की सुरक्षा के लिए इस प्रकार के व्रत पर्वों की अत्यन्त आवश्यकता है | दक्षिण भारत में इस पर्व को स्कन्द षष्ठी के रूप में भी मनाया जाता है | इस दिन भगवान शिव और पार्वती के पुत्र स्कन्द यानी कार्तिकेय की पूजा अर्चना का विधान है |
सूर्य की शक्तियों का मुख्य स्रोत हैं उनकी दो पत्नियाँ – उषा (भोर की प्रथम किरण) तथा प्रत्यूषा (सूर्यास्त के समय की अन्तिम किरण) अथवा सन्ध्या | छठ पर्व के अवसर पर सूर्य के साथ उनकी इन दोनों शक्तियों की भी आराधना की जाती है | प्रातःकाल में उषा की प्रथम किरण के साथ आरम्भ होकर प्रत्यूषा काल में सूर्य की अन्तिम किरण तक पूजा अर्चना चलती रहती है | ऐसा सम्भवतः इसलिए किया जाता रहा हो कि सूर्य को ऊर्जा तथा जीवनी शक्ति का स्रोत माना जाता है | यह पर्व वर्ष में दो बार मनाया जाता है – चैत्र शुक्ल षष्ठी को और कार्तिक शुक्ल षष्ठी को | जिनमें कार्तिक शुक्ल षष्ठी के छठ पर्व को विशेष धूम धाम के साथ मनाया जाता है | यह पर्व दीपावली के लगभग एक सप्ताह बाद पवित्र नदियों के तटों पर मनाया जाता है |
छठ पूजा के सम्बन्ध में अनेक कथाएँ प्रचलित हैं | माना जाता है कि भगवान राम और माता सीता जब चौदह वर्षों के वनवास के बाद अयोध्या वापस लौटे थे तो उन्होंने दीपावली के छः दिन बाद कार्तिक शुक्ल षष्ठी को उपवास रखकर छठ पूजा की थी | सूर्यवंशी होने के कारण भगवान राम के लिए भगवान सूर्य की प्रार्थना आवश्यक ही थी |
एक अन्य मान्यता के अनुसार सूर्यदेव और कुन्ती के पुत्र कर्ण ने षष्ठी पूजा के रूप में अपने पिता और समस्त चराचर के लिए ऊर्जा प्रदान करने वाले सूर्यदेव की उपासना आरम्भ की थी | उसने घण्टों जल के मध्य खड़े होकर भगवान भास्कर को अर्घ्य प्रदान किया था जिसके फलस्वरूप वह महान योद्धा बना | आज भी कमर तक जल के मध्य खड़े होकर भगवान भास्कर को अर्घ्य प्रदान किया जाता है |
एक अन्य मान्यता के अनुसार पाण्डवों के वनवास की अवधि में द्रौपदी ने कार्तिक शुक्ल षष्ठी को उपवास रखकर सूर्यदेव की उपासना की थी जिसके परिणामस्वरूप समस्त कुरुवंश का संहार करने में पाण्डव समर्थ हुए थे |
कुछ लोग इसे भगवती के कात्यायनी रूप के साथ भी जोड़ते हैं | षष्ठी तिथि माता कात्यायनी की पूजा के लिए मानी जाती है, क्योंकि नवदुर्गा में माता कात्यायनी का स्थान छठी देवी के रूप में माना जाता है |
एक मान्यता यह भी है कि कार्तिक शुक्ल पञ्चमी के सूर्यास्त तथा षष्ठी के सूर्योदय के मध्य किसी समय महर्षि वशिष्ठ की प्रेरणा से भगवान सूर्य की आराधना करते समय राजर्षि विश्वामित्र के मुख से अनायास ही गायत्री मन्त्र फूट पड़ा था |
मान्यताएँ अनेक हैं – पौराणिक भी और लोकमान्यताएँ भी – किन्तु मूल तथ्य यह है छठ पूजा मुख्य रूप से पूर्वी भारत के बिहार, झारखण्ड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई क्षेत्रों में मनाया जाने वाला भगवान भास्कर की आराधना का चार दिवसीय लोक पर्व है, जो कार्तिक शुक्ल चतुर्थी को आरम्भ होकर कार्तिक शुक्ल सप्तमी को सम्पन्न होता है |
ऊँ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि । धियो यो न: प्रचोदयात् ।।
सृष्टिकर्ता प्रकाशमान भगवान आदित्यदेव हम सबके हृदयों से जड़ता का अन्धकार दूर कर चेतना, ज्ञान तथा सद्गुणों का प्रकाश प्रसारित करें, इसी कामना के साथ सभी को छठ पूजा की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ…