कार्तिकी पूर्णिमा गुरु परब

कार्तिकी पूर्णिमा गुरु परब

कार्तिकी पूर्णिमा गुरु परब

आज कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी यानी बैकुण्ठ चतुर्दशी है | पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान विष्णु ने काशी में भगवान शिव को एक सहस्र स्वर्ण कमल के पुष्प

बैकुण्ठ चतुर्दशी
बैकुण्ठ चतुर्दशी

चढ़ाने का संकल्प किया | भगवान शिव ने विष्णु जी की परीक्षा लेने के लिए उन पुष्पों में से एक स्वर्ण पुष्प कम कर दिया | पुष्प कम होने पर भगवान विष्णु ने सोचा कि “लोग मुझे कमल नयन कहते हैं इसका अर्थ है कि मेरे नेत्र भी कमल के समान हैं, तो क्यों न मैं पुष्प के स्थान पर अपना एक नेत्र ही समर्पित कर दूँ…” और ऐसा विचार करके ज्यों ही वे अपना नेत्र निकालने को तत्पर हुए कि भगवान शंकर प्रकट हो गए और उन्हें सारी बात बता दी | साथ ही उन्होंने विष्णु को सुदर्शन चक्र भी भेंट किया | तभी से बैकुण्ठ चतुर्दशी का व्रत रखकर भगवान शंकर और विष्णु की उपासना की जाती है | आज अबसे कुछ ही देर बाद 9:51 के लगभग धनु लग्न, गर करण और व्यातिपत योग में चतुर्दशी तिथि का आरम्भ होगा जो कल दिन में बारह बजे तक रहेगी |

कल कार्तिक पूर्णिमा है | चतुर्दशी के समाप्त होने के बाद बारह बजे के लगभग

कार्तिकी पूर्णिमा
कार्तिकी पूर्णिमा

पूर्णिमा तिथि का आरम्भ होगा जो 19 नवम्बर को दिन में दो बजकर छब्बीस मिनट तक रहेगी | रात्रि व्यापिनी पूर्णिमा कल होने के कारण व्रत कल ही किया जाएगा, और 19 को कार्तिकी स्नान के साथ दिन में समापन किया जाएगा | इसी के साथ तुलसी विवाह भी सम्पन्न हो जाएगा |

माना जाता है कि इसी दिन भगवान शिव ने त्रिपुरासुर नामक राक्षस का वध करके उसकी बसाई तीन नगरियों को ध्वस्त कर दिया था, इसलिए इस पूर्णिमा को

देव दिवाली
देव दिवाली

त्रिपुरारी (त्रिपुर का अरि अर्थात शत्रु) पूर्णिमा भी कहा जाता है | और इसीलिए इसे देव दीवाली के नाम से भी जाना जाता है | ऐसी भी मान्यता है कि प्रलय काल में वेदों की रक्षा तथा सृष्टि के पुरुत्थान हेतु भगवान विष्णु का मत्स्यावतार भी इसी दिन हुआ था | इस दिन पवित्र नदियों में स्नान करके दीपदान किया जाता है | दीपदान की प्रथा वास्तव में किसी भी प्रकार के तमस – अन्धकार – को दूर करने का प्रतीक है | ऐसी भी मान्यता है कि इस दिन चन्द्रोदय के समय शिवा, सम्भूति, सन्तति, प्रीति, अनुसूया और क्षमा इन छह कृत्तिकाओं का पूजन करने से भगवान शिव प्रसन्न होते हैं |

इस पूर्णिमा को महा कार्तिकी भी कहा जाता है, और यदि इस दिन भरणी अथवा रोहिणी नक्षत्र हों तो इस पूर्णिमा का महत्त्व कई गुना बढ़ जाता है | साथ ही यदि चन्द्रमा और गुरु कृत्तिका नक्षत्र पर हों तो इसे महा पूर्णिमा कहा जाता है | और यदि इस दिन चन्द्रमा कृत्तिका और सूर्य विशाखा नक्षत्र पर हो तो पद्मक योग बनता है जो अत्यन्त शुभ और प्रभावशाली योग माना जाता है | पद्मक योग कभी कभी ही बनता है | इस वर्ष पूर्णिमा के आरम्भ में चन्द्रमा भरणी नक्षत्र तथा समाप्ति के समय कृत्तिका नक्षत्र पर रहेगा इस प्रकार इस वर्ष बहुत ही शुभ योग बन रहा है |

सिख धर्म के संस्थापक प्रथम गुरु नानक देव जी का जन्म दिवस भी इसी दिन

गुरु परब
गुरु परब

“प्रकाश पर्व” अथवा “गुरु परब” के रूप में मनाया जाता है | इस दिन सिख सम्प्रदाय के लोग गुरुद्वारे जाकर गुरु वाणी सुनते हैं और गुरु नानकदेव के बताए मार्ग पर चलने के संकल्प लेते हैं | गुरु नानकदेव का कहना था कि चिन्तन के माध्यम से अध्यात्म के मार्ग पर आगे बढ़ा जा सकता है | उनका मानना था कि किसी भी प्रकार के दिखावे से दूर रहकर केवल मात्र चिन्तन मनन पूर्वक अपनी जीवन शैली को परिष्कृत करके – उसमें सुधार करके प्रत्येक व्यक्ति स्वयं अपने भीतर ही ईश्वर के दर्शन कर सकता है – जिसे आत्मतत्व अथवा परमात्मा कहा जाता है |

कार्तिक पूर्णिमा के दिन पुष्कर स्नान का भी बहुत महत्त्व माना गया है – विश्वामित्रोsपि धर्मात्मा भूयस्तेपे महातपाः | पुष्करेषु नरश्रेष्ठ दशवर्षशतानि च ||” – वाल्मीकि रामायण बालकाण्ड सर्ग 62 / 28 “पुष्कर” का अर्थ है एक ऐसा सरोवर जिसकी रचना पुष्प से हुई हो | शास्त्रों के अनुसार एक बार ब्रह्मा जी ने पृथ्वी पर यज्ञ करने की इच्छा प्रकट की | उस समय पृथिवी पर वज्रनाभ राक्षस का आतंक व्याप्त था जो बच्चों के जन्म लेते ही उन्हें मार दिया करता था | ब्रह्मा जी ने पुष्प के प्रहार से उस राक्षस का वध किया था | जब ब्रह्मा जी इस पुष्प का वार उस राक्षस पर

ब्रह्मा जी का मन्दिर
ब्रह्मा जी का मन्दिर

कर रहे थे तब तीन स्थानों पर इसके अंश गिरे और उन तीनों ही स्थानों से जलधार प्रवाहित होने लगी | ये तीन हैं – ज्येष्ठ पुष्कर, मध्य पुष्कर और कनिष्ठ पुष्कर | ज्येष्ठ पुष्कर में ब्रह्मा जी ने यज्ञ किया था इसलिए इस सरोवर को आदि तीर्थ होने का गौरव प्राप्त हुआ और इसी कारण से यही एकमात्र स्थान है जहाँ ब्रह्मा जी का मन्दिर भी बना हुआ है | मान्यता है कि कार्तिक शुक्ल एकादशी से कार्तिक पूर्णिमा तक ब्रह्मा जी ने यहाँ यज्ञ किया तभी से पुष्कर में पाँच दिनों का धार्मिक मेला आयोजित किया जाता है | और इसीलिए ऐसी भी मान्यता बनी कि ब्रह्मा जी के यज्ञ में भागी बनने के लिए ही समस्त देवी देवता इन पाँच दिनों की अवधि में यहाँ निवास करते हैं | एक अन्य बात जो इस घटना से समझ आती है वो ये कि सम्भव है उस समय ऐसी कोई महामारी व्याप्त रही हो जिसके कारण नवजात शिशुओं का निधन हो जाता हो | और इस क्षेत्र में कोई इस प्रकार की जड़ी बूटी (पुष्प) उपलब्ध होते हों जिनके प्रयोग से उस महामारी को दूर करने के लिए कोई औषधि बनाई जाती रही हो |

बहरहाल, मान्यताएँ और सम्भावनाएँ तो अनेकों हो सकती हैं – क्योंकि जितने भी पर्व और त्यौहार आदि हैं उन सबके पीछे वास्तव में लोक कल्याण तथा आत्मोत्थान की भावना ही निहित होती है – किन्तु इन सभी पर्वों पर ज़रूरतमंद लोगों को दान देना, भगवान विष्णु को तुलसीदल समर्पित करना, घर में सकारात्मक ऊर्जा प्रवाहित करने के लिए आम्रपत्र का तोरण लगाना, तुलसी के वृक्ष, मुख्य द्वार, पूजा गृह तथा पीपल के नीचे दीप प्रज्वलित करना आदि कार्य शुभ माने जाते हैं | और जैसा कि हम सदा ही लिखते आए हैं, वृक्षों को जल देकर उनके समक्ष दीप प्रज्वलित करना तथा उनके पत्रों से तोरण सजाना आदि कार्यों को धर्म के साथ संयुक्त करने का अभिप्राय हमारे विचार से यही रहा होगा कि हम सब प्रकृति का – वृक्षों का सम्मान करना सीखें और अनावश्यक रूप से उन्हें कष्ट न पहुँचाएँ | क्योंकि धार्मिक आस्था जिस भी पदार्थ अथवा व्यक्ति के साथ जुड़ जाती है उसे कष्ट पहुँचाने की कल्पना मात्र से ही लोग भयभीत हो जाते हैं |

हम सभी के हृदयों से अज्ञान, निराशा, भय, दुर्भाग्य तथा अन्य भी किसी प्रकार के कष्ट का अन्धकार दूर हो ताकि हम सभी गुरु नानक देव के बताए मार्ग का अनुसरण करते हुए हर दीन हीन को गले लगाते हुए प्रगति के पथ पर अग्रसर रहे, इसी कामना के साथ मन का दीप प्रज्वलित करते हुए दीपदान सहित सभी को बैकुण्ठ चतुर्दशी, कार्तिकी पूर्णिमा, देव दिवाली तथा “प्रकाश पर्व” और “गुरु पर्व” की हार्दिक शुभकामनाएँ…