नक्षत्र – पञ्चांग का तीसरा अवयव
पञ्चांग के दो अंगों दिन अर्थात वार तथा तिथि के विषय में पहले लिख चुके हैं | अब तीसरा अंग – नक्षत्र |
पञ्चांग का तीसरा अंग है नक्षत्र | नक्षत्रों का विषय बहुत विशद है, जिसे एक ही लेख में पूर्ण कर पाना सम्भव नहीं | इनके विषय में विस्तार से तो बाद में चर्चा करेंगे | अभी पञ्चांग के सन्दर्भ में बात करते हैं |
तारों के एक समूह को नक्षत्र कहते हैं | वस्तुतः नक्षत्र एक ऐसा मापक यन्त्र यानी स्केल है जिसके द्वारा हम किसी ग्रह की एक राशि से दूसरी राशि तक पहुँचने की अवधि अर्थात यात्रा की लम्बाई नाप सकते हैं | उदाहरण के लिए हम जानना चाहते हैं कि मंगल को अपनी वर्तमान राशि से दूसरी राशि पर पहुँचने में कितना समय लगेगा | इसके लिए आवश्यक है कि हमें मंगल की वर्तमान स्थिति का पता हो कि वर्तमान में वह किस नक्षत्र के किस चरण अर्थात किस भाग पर स्थित है | और वहाँ से जिस राशि पर उसे जाना है वहाँ किस नक्षत्र का कौन सा चरण हो सकता है | इस सबका अध्ययन कर लेने के बाद हम कह सकते हैं कि मंगल ने इतने समय में इतनी दूर की यात्रा की है, इतनी दूर की यात्रा और शेष है, तो पिछली यात्रा की अवधि के आधार पर वह लगभग इतनी अवधि में शेष यात्रा पूर्ण करेगा |
इसे इस प्रकार भी समझ सकते हैं कि मान लीजिये हम कहीं जा रहे हैं | मार्ग में हम कुछ बोर्ड्स देखते हैं जिन पर उस स्थान का नाम तथा पहले और दूसरे स्थान से उसकी दूरी लिखी होती है | इसके द्वारा हमें पता लग जाता है कि अब तक हम इस स्थान पर पहुँच चुके हैं अथवा इतनी दूरी तय कर चुके हैं और अब हमें अपने गन्तव्य तक पहुँचने के लिए इतनी दूरी और तय करनी है जो हम लगभग इतने समय में पूरी
कर सकते हैं | मार्ग में लगे ये बोर्ड्स स्थान विशेष तथा एक स्थान से दूसरे स्थान की दूरी के सूचक होते हैं | नक्षत्र इसी प्रकार के Signboards हैं जिनके माध्यम से हम किसी ग्रह की एक राशि से दूसरी राशि पर पहुँचने की दूरी और समय का अनुमान लगा सकते हैं | इस प्रकार नक्षत्र किसी ग्रह की एक राशि से दूसरी राशि के लिए यात्रा के दौरान दोनों राशियों के मध्य की दूरी तथा मार्ग के पड़ावों यानी नक्षत्र पदों का ज्ञान कराने वाले मापक यन्त्र यानी स्केल हैं | नक्षत्रों का शाब्दिक अर्थ है “आकाश में तारा मण्डल के मध्य चन्द्रमा का मार्ग |”
जब हम कहीं यात्रा करते हैं तो मार्ग को लम्बाई को नापने के लिए मील अथवा किलोमीटर का प्रयोग किया जाता है | इसी प्रकार ग्रहों की पूर्व से पश्चिम तक की यात्रा में उनकी परस्पर दूरी तथा गति नापने के लिए नक्षत्रों का भी विभाजन किया गया है | हमारे खगोलशास्त्रियों यानी Astronauts ने समूचे भाचक्र अर्थात Zodiac को 27 बराबर भागों में विभक्त किया है | भाचक्र में राशिचक्र के ये सत्ताईस भाग ही नक्षत्र कहलाते हैं | प्रत्येक नक्षत्र में तारों का एक समूह होता है | नक्षत्र के ये तारे एक साथ मिलकर एक आकृति अथवा Image बनाते हैं जैसे हाथी, सर, सर्प, गाड़ी इत्यादि | खुले और साफ़ आकाश में हम इन आकृतियों को स्पष्ट रूप से देख सकते हैं | इन 27 नक्षत्रों से ग्रहों की स्थिति का पूर्ण ज्ञान प्राप्त हो जाता है | जिस प्रकार अपनी यात्रा के दौरान मार्ग में लगे Signboards से हमें पता चल जाता है कि हम अमुक समय अमुक स्थान पर पहुँच रहे हैं और यात्रा के आरम्भ से इतने मील या किलोमीटर तक की दूरी तक आ चुके हैं | उसी प्रकार एक ज्योतिषी अथवा खगोल वैज्ञानिक नक्षत्रों की सहायता से आसानी से यह बता सकता है कि अमुक ग्रह अमुक समय इतनी डिग्री पर अमुक नक्षत्र में होगा, या अबसे पूर्व एक विशेष समय पर यह ग्रह इतनी डिग्री में इस नक्षत्र पर था | प्रत्येक नक्षत्र की अवधि 13 डिग्री 20 मिनट की होती है तथा प्रत्येक नक्षत्र चार भागों में विभक्त होता है | ये चारों भाग नक्षत्र के चरण अथवा पद कहलाते हैं | प्रत्येक पद तीन डिग्री बीस मिनट का होता है | अब, क्योंकि प्रत्येक राशि तीस डिग्री की होती है इसलिए हर राशि में सवा दो नक्षत्र आते हैं – अर्थात दो नक्षत्र पूरे और तीसरे नक्षत्र का चौथाई भाग यानी एक पद | इस प्रकार चार राशियों में नौ नक्षत्र पूरे आ जाते हैं और इस प्रकार 27 नक्षत्र बारह राशियों में बराबर विभक्त हो जाते हैं |
क्योंकि हर नक्षत्र कुछ तारों का एक समूह होता है इसलिए प्रत्येक नक्षत्र का नाम उस नक्षत्र में सम्मिलित तारकदल में सबसे अधिक प्रकाशित तारे के नाम पर होता है | उदाहरण के लिए चित्रा नक्षत्र में सम्मिलित तारक समूह में सबसे अधिक प्रकाशित तारा है चित्रा इसलिए इस नक्षत्र का नाम चित्रा रखा गया |
किसी भी माह में आने वाली पूर्णिमा के दिन चन्द्रमा जिस नक्षत्र में होता है उस माह का नाम उसी नक्षत्र के नाम पर होता है | किसी भी शुभ, माँगलिक अथवा आवश्यक कार्य को करने के लिए जो मुहूर्त अर्थात अनुकूल समय नियत किया जाता है उसकी गणना भी नक्षत्रों के ही आधार पर होती है | विवाह से पूर्व वर वधू की कुण्डलियों का मिलान (Horoscope Matching) भी इन नक्षत्रों के ही आधार पर किया जाता है | यात्रा आरम्भ करने के लिए, कोर्ट में केस फाइल करने के लिए, किसी रोग से मुक्ति प्राप्त करने के लिए अथवा हमारे दिन प्रतिदिन के अन्य भी अनेक कार्यों में हम इन नक्षत्रों की सहायता लेते हैं | वैदिक परम्परा में तो बच्चे के विद्यारम्भ के लिए भी शुभ मुहूर्त निश्चित किया जाता है जब वह अपने गुरु के समक्ष प्रथम बार उपस्थित होता है |
भाचक्र में प्रत्येक नक्षत्र की अवधि 13 डिग्री 20 मिनट की मानी गई है | जिस राशि में जो नक्षत्र विद्यमान है उस राशि पर उस नक्षत्र का प्रभाव पड़ता है | कुछ विशिष्ट परिस्थितियों में अभिजित को 28वाँ नक्षत्र माना जाता है |
मनुष्य के स्वभाव का, उसके गुणों का ज्ञान करने के लिए नक्षत्रों का अध्ययन किया जाता है | इसके अतिरिक्त प्रत्येक नक्षत्र का अपना गुण स्वभाव होता है | कोई पुरुष नक्षत्र होता है तो कोई स्त्री नक्षत्र होता है | कोई ऊर्ध्व मुखी नक्षत्र है तो कोई अधोमुखी | प्रकृति के पाँचों तत्वों के अनुसार हर नक्षत्र के तत्व हैं | इन्हीं सबको आधार बनाकर शुभाशुभ मुहूर्त की गणना एक वैदिक ज्योतिषी करता है |
हमारे बहुत से पर्व भी चन्द्र अथवा सूर्य नक्षत्र पर आधारित होते हैं | 12 हिन्दू महीनों के नाम भी उन महीनों में उदय होने वाले नक्षत्र के नाम पर होते हैं |
मेष राशि में अश्विनी नक्षत्र से आरम्भ करके इन 27 नक्षत्रों की स्थिति होती है |
नक्षत्रों से ही तारा, योनि, गण तथा नाडी आदि का ज्ञान किया जाता है | विवाह योग्य वर वधू की कुण्डली मिलाते समय नक्षत्रों की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है | यहाँ तक कि नवजात शिशु का जन्म का नाम भी उसके जन्म के समय चन्द्रमा जिस नक्षत्र में होता है उसके ही आधार पर रखा जाता है |
नक्षत्रों के विषय में विस्तार से अगली कड़ी में लिखना आरम्भ करेंगे… अभी सदा की भाँति यही कहेंगे कि जीव मात्र तथा प्रकृति के प्रति उदारता का भाव रखते हुए हम सभी पूर्ण निष्ठा के साथ अपने कर्तव्य कर्मों को करते रहें ताकि प्रगतिशीलता बनी रहे…